शिरोमणि संत रविदास जी को क्यों समरसता समाज,और वैदिक धर्म पर आस्था थी?Sant Ravidas

 


[12/02, 6:19 am] sr8741002@gmail.com: संत शिरोमणि रविदास जी का संक्षिप्त जीवन परिचय Sant Ravidas Jayanti 

रविदास जी को पंजाब में रविदास कहा। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में उन्हें रैदास के नाम से ही जाना जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र के लोग 'रोहिदास'


और बंगाल के लोग उन्हें ‘रुइदास’ कहते हैं। कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी जाना गया है। कहते हैं कि माघ मास की पूर्णिमा को जब रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया। उनका जन्म माघ माह की पूर्णिमा को हुआ था। इस वर्ष 12 फरवरी 2025 को उनकी जयंती मनाई जा रही है।

संत शिरोमणि कवि रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) था। उनके दादा का नाम श्री कालूराम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती जी, पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्रीविजय दास जी है। रविदास जी चर्मकार कुल से होने के कारण वे जूते बनाते थे। ऐसा करने में उन्हें बहुत खुशी मिलती थी और वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे।

 उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था चारों ओर अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा का बोलबाला था। उस समय मुस्लिम शासकों द्वारा प्रयास किया जाता था कि अधिकांश हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया जाए। संत रविदास की ख्याति लगातार बढ़ रही थी जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे जिनमें हर जाति के लोग शामिल थे। यह सब देखकर एक परिद्ध मुस्लिम 'सदना पीर' उनको मुसलमान बनाने आया था। उसका सोचना था कि यदि रविदास मुसलमान बन जाते हैं तो उनके लाखों भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे। ऐसा सोचकर उनपर हर प्रकार से दबाव बनाया गया था लेकिन संत रविदास तो संत थे उन्हें किसी हिन्दू या मुस्लिम से नहीं मानवता से मतलब था।

 संत रविदासजी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। संत रविदास ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता पर बल दिया और मानवतावादी मूल्यों की नींव रखी। रविदासजी ने सीधे-सीधे लिखा कि 'रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच' यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है। कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कभी नीच नहीं होता। संत रविदास ने अपनी कविताओं के लिए जनसाधारण की ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। साथ ही इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता यानी उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रविदासजी के लगभग चालीस पद सिख धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ 'गुरुग्रंथ साहब' में भी सम्मिलित किए गए है।कहते हैं कि स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णव भक्तिधारा के महान संत हैं। संत रविदास उनके शिष्य थे। संत रविदास तो संत कबीर के समकालीन व गुरूभाई माने जाते हैं। स्वयं कबीरदास जी ने 'संतन में रविदास' कहकर इन्हें मान्यता दी है। राजस्थान की कृष्णभक्त कवयित्री मीराबाई उनकी शिष्या थीं। यह भी कहा जाता है कि चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी उनकी शिष्या बनीं थीं। वहीं चित्तौड़ में संत रविदास की छतरी बनी हुई है। मान्यता है कि वे वहीं से स्वर्गारोहण कर गए थे। हालांकि इसका कोई आधिकारिक विवरण नहीं है लेकिन कहते हैं कि वाराणसी में 1540 ईस्वी में उन्होंने देह छोड़ दी थी।

 वाराणसी में संत रविदास का भव्य मंदिर और मठ है। जहां सभी जाति के लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। वाराणसी में श्री गुरु रविदास पार्क है जो नगवा में उनके यादगार के रुप में बनाया गया है जो उनके नाम पर 'गुरु रविदास स्मारक और पार्क' बना है।

संत रविदास की शिक्षाएं जातिवाद, भेदभाव, और असमानता के ख़िलाफ़ थीं. उन्होंने लोगों को प्रेम और सौहार्द का पाठ पढ़ाया. उनके उपदेशों और भजनों ने लोगों के जीवन में सही रास्ते पर चलने में मदद की. 

संत रविदास की शिक्षाएं :-

जातिवाद को त्यागकर प्रेम से रहना चाहिए,

अच्छे कर्मों और गुणों को ज़रूरी मानना चाहिए. 

कर्म करना हमारा धर्म है, तो उसका फल पाना हमारा सौभाग्य है,

किसी को सिर्फ़ इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह किसी पूजनीय पद पर है. 

मन ही पूजा मन ही धूप है,

निर्मल मन में ही भगवान वास करते हैं. 

आध्यात्मिक उन्नति के लिए आत्मा का परमात्मा के प्रति प्रेम ज़रूरी है,

मांसाहार से कर्मों का बोझ बढ़ता है, जिससे परमात्मा को पाना मुश्किल हो जाता है,

अभिमान और बड़प्पन का भाव त्यागकर विनम्रतापूर्वक आचरण करना चाहिए, 

विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य, और सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाते हैं, 

संत रविदास ने भक्ति के भाव से कई गीत, दोहे, और भजनों की रचना की थी, 

संत रविदास की सीख: कर्म करना हमारा धर्म है तो उसका फल पाना सौभाग्य

संत रविदास की सीख: कर्म करना हमारा धर्म है तो उसका फल पाना, रविदास ने हमेशा जातिवाद को त्यागकर प्रेम से रहने की शिक्षा दी। उन्होंने अच्छे कर्मों और गुणों को जरूरी माना है।


[12/02, 7:25 am] sr8741002@gmail.com: संत शिरोमणि गुरु रविदास जी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन!

उनका जीवन दर्शन एवं उनके विचार हमें सत्य और परोपकार के मार्ग पर चलने तथा समरस समाज के निर्माण हेतु प्रतिबद्ध करते हैं।

Popular posts from this blog

वक्फ बोर्ड क्या है? वक्फ बोर्ड में संशोधन क्यों जरूरी?2024 Waqf Board

सात युद्ध लड़ने वाली बीरबाला तीलू रौतेली का जन्म कब हुआ?Veerbala Teelu Rauteli

संघ(RSS) के कार्यक्रमों में अब सरकारी कर्मचारी क्यों शामिल हो सकेंगे? Now goverment employees are also included in the programs of RSS