मकर संक्रान्ति का भारतीय संस्कृति में क्यों इतना महत्व है?2025 why is Makar Sankranti so important in Indian culture?2025
[14/01, 4:11 am] sr8741002@gmail.Com: Makar Sankranti 2025
Makar Sankranti 2025- मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है.यह दिन सिर्फ धार्मिक महत्व नहीं रखता, बल्कि इसका संबंध विज्ञान, कृषि और सामाजिक जीवन से भी है, मकर संक्रांति को नई ऊर्जा, नई फसल, और नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है. साथ ही, इस दिन खिचड़ी बनाने और दान करने की परंपरा भी विशेष महत्व रखती है।
मकर संक्रांति का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश को “संक्रांति” कहा जाता है।इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है, यानी उसकी दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर हो जाती है।
धार्मिक दृष्टिकोण
उत्तरायण को शुभ समय माना गया है, जब सकारात्मक ऊर्जा अपने चरम पर होती है,यह समय देवताओं की कृपा पाने के लिए विशेष माना जाता है,
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
सूर्य के उत्तरायण होने से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं.
सर्दियों के अंत और गर्मी के आगमन का यह संकेत पर्यावरण और कृषि के लिए महत्वपूर्ण है,
सूर्य की बढ़ती ऊर्जा से शरीर और मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है,
क्यों बनाई जाती है मकर संक्रांति पर खिचड़ी?
मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने और खाने की परंपरा के पीछे धार्मिक, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक कारण छिपे हैं,
धार्मिक कारण
खिचड़ी को सूर्य और शनि ग्रह से जोड़ा गया है, खिचड़ी का सेवन और दान करने से ग्रह दोष शांत होते हैं और घर में सुख-शांति आती है,
स्वास्थ्य कारण
खिचड़ी में दाल, चावल, और सब्जियों का संतुलित मिश्रण होता है, जो ठंड के मौसम में शरीर को गर्म और ऊर्जावान बनाए रखता है,तिल और गुड़ के साथ इसका सेवन पाचन और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है
सामाजिक कारण
खिचड़ी एक ऐसा भोजन है, जिसे आसानी से बनाया और साझा किया जा सकता है, इसे दान करने की परंपरा समाज में समानता और भाईचारे को बढ़ावा देती है.
मकर संक्रांति पर दान का महत्व
दान-पुण्य मकर संक्रांति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है,इस दिन गंगा स्नान और दान को शास्त्रों में अत्यधिक शुभ बताया गया है,
मकर संक्रांति को लेकर धार्मिक मान्यताएं और पौराणिक कथाएं
भगवान सूर्यदेव इस दिन अपने पुत्र शनिदेव से मिलने उनके घर गए थे, जिससे पिता-पुत्र के संबंध का महत्व दर्शाया गया.
महाभारत के भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के समय शरीर त्यागा, क्योंकि यह समय मोक्ष के लिए सर्वोत्तम माना जाता है,
गंगा नदी इसी दिन सागर में समाहित हुई थीं, जिससे गंगा स्नान का महत्व बढ़ गया,
मकर संक्रांति को भारत के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है,
उत्तर भारत : गंगा स्नान, खिचड़ी दान और पतंगबाजी,
महाराष्ट्र : तिल-गुड़ बांटने और मीठे बोलने की परंपरा,
पश्चिम बंगाल: गंगा सागर मेला का आयोजन,
तमिलनाडु: पोंगल उत्सव, जो चार दिनों तक चलता है,
मकर संक्रांति सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह धर्म, विज्ञान और समाज का संगम है. खिचड़ी और दान की परंपराएं न केवल हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण को संतुलित करती हैं, बल्कि समाज में सद्भाव और भाईचारे का संदेश भी देती हैं।
[14/01, 4:20 am] sr8741002@gmail.Com: भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जहां हर दिन कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है।
इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य देव मकर राशि मे प्रवेश करते हैं। तो उस दिन मकर संक्रान्ति मनायी जाती है। मकर संक्रान्ति संस्कृति और धर्म का पर्व, इससे
देश एकता के सू्त्र में बंधता है।
हर साल 14-15 जनवरी को धनु से मकर राशि व दक्षिणायन से उत्तरायण में सूर्य के प्रवेश के साथ यह पर्व संपूर्ण भारत सहित विदेशों में भी अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।
पंजाब व जम्मू-कश्मीर में 'लोहड़ी' के नाम से प्रचलित यह पर्व भगवान बाल कृष्ण के द्वारा 'लोहिता' नामक राक्षसी के वध की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन पंजाबी लोग जगह-जगह अलाव जलाकर उसके चहुंओर भांगड़ा नृत्य कर अपनी खुशी जाहिर करते हैं। व पांच वस्तुएं तिल, गुड़, मक्का, मूंगफली व गजक से बने प्रसाद की अग्नि में आहुति प्रदान करते हैं।
भारतीय संस्कृति में त्योहारों, मेलों, उत्सवों व पर्वों का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत मे त्योहार और मेले ही हैं जो हमारे जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार करने के साथ परस्पर प्रेम और भाईचारे को बढ़ाते हैं। मकर संक्रांति ऐसा ही 'तमसो मा ज्योर्तिगमय' का साक्षात् प्रेरणापुंज, अंधकार से उजाले की ओर बढ़ने व अनेकता में एकता का संदेश देने वाला पर्व है।वहीं देश के दक्षिणी इलाकों में इस पर्व को 'पोंगल' के रूप में मनाने की परंपरा है। फसल कटाई की खुशी में तमिल हिंदुओं के बीच हर्षोल्लास के साथ चार दिवस तक मनाये जाने वाले 'पोंगल' का अर्थ विप्लव या उफान है। इस दिन तमिल परिवारों में चावल और दूध के मिश्रण से जो खीर बनाई जाती है, उसे 'पोंगल' कहा जाता है।
यह दिन श्रद्धा, भक्ति, जप, तप, अर्पण व दान-पुण्य का दिन माना जाता है।
इसी तरह गुजरात में मकर संक्रांति का ये पर्व 'उतरान' के नाम से मनाया जाता है, तो महाराष्ट्र में इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर तिल और गुड़ से बने लड्डू खिलाकर मराठी में 'तीळ गुळ घ्या आणि गोड गोड बोला' कहते हैं। जिसका हिन्दी में अर्थ होता है तिल और गुड़ के लड्डू खाइए और मीठा-मीठा बोलिए। वहीं असम प्रदेश में इस पर्व को 'माघ बिहू' के नाम से जाना जाता है।
इसी तरह प्रयागराज में माघ मेले व गंगा सागर मेले के रूप में मनाए जाने वाले इस पर्व पर 'खिचड़ी' नामक स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर खाने की परंपरा है। जनश्रुति है कि शीत के दिनों में खिचड़ी खाने से शरीर को नई ऊर्जा मिलती है। इस बार तो प्रयागराज में 144सिल बाद दुनिया का सबसे बड़ा मेला महाकुंभ का भी आयोजन हो रहा है।
मकर संक्रांति को मनाने के पीछे अनेक धार्मिक कारण भी हैं। इसी दिन गंगा भागीरथ के पीछे चलकर कपिल मनु के आश्रम से होते हुए सागर में जा मिली थीं। इस दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण की दिशा में गमन के साथ ही स्वेच्छा से अपना देह त्यागा था।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व
यह दिन श्रद्धा, भक्ति, जप, तप, अर्पण व दान-पुण्य का दिन माना जाता है। सनातन धर्मावलंबियों के लिए मकर संक्रांति का महत्व वैसा ही जैसा कि वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाड़ों में हिमालय का है। भले मकर संक्रांति का पर्व देश के विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता हों पर इसके पीछे समस्त लोगों की भावना एक ही है।
मकर संक्रांति के दौरान लोगों में पतंगबाजी का उल्लास चरम पर होता है। देश में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के त्योहार के एक महीने पहले ही पतंगबाजी का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। शीतलहर के साथ पतंगबाजी का लुत्फ़ उठाने को लेकर बच्चों के साथ बड़े भी अपने को रोक नहीं पाते हैं।
इस दौरान बाजार भी पतंगों से गुलज़ार होने लग जाते हैं। लेकिन हर साल पतंगबाजी के दरमियान जो चिंताजनक पहलू निकल कर सामने आता है वो है चाइनीज मांझे के कारण बेजुबान पक्षियों की होने वाली मौतें। हालांकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने देशभर में पतंग उड़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाले नायलॉन और चाइनीज मांझे की खरीद फरोख्त, स्टोरेज और इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। फिर भी हमे ध्यान रखना चाहिए। कि हम सभी अपने त्योहारों पर अपने स्वदेशी सामानों का ही उपयोग करेंगे।