144 साल बाद 2025 प्रयागराज में लगने वाला महाकुंभ क्यों इतना अदभुत है? Why is the mahakumbh to be held in prayagraj after 144 years in 2025 so amazing?
कुंभ मेले का इतिहास बहुत पुराना है और इसकी शुरुआत समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी हुई है।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश निकला था, इस कलश को पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था,
इस युद्ध के दौरान, देवताओं ने अमृत कलश को असुरों से बचाने के लिए ब्रहस्पति, सूर्य, चंद्र, और शनि को सौंप दिया था।
ये चारों देवता असुरों से अमृत कलश को बचाकर भाग गए और इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरी, ये स्थान हैं,
प्रयागराज,
हरिद्वार,
उज्जैन,
और नासिक.
इन चारों स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी होने की वजह से इन्हें पवित्र माना जाता है। और यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है,
कुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल में होता है और इसे महाकुंभ कहते हैं। वहीं, हर 6 साल बाद अर्धकुंभ मेला लगता है,
कुंभ मेले का आयोजन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ भारतीय संस्कृति, परंपरा, और इतिहास को भी समृद्ध करता है।
कुंभ मेले का संक्षिप्त इतिहास :-
कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में जनवरी माह से किया जाता है। अर्द्ध कुम्भ का आयोजन 6 वर्ष और पूर्ण कुम्भ का आयोजन 12 वर्षों के बाद किया जाता है। यह मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और संस्कृति का प्रतीक है। कुम्भ मेला 48 दिनों तक चलता है।
कुंभ मेले का इतिहास:-
देखा जाए तो कुंभ मेले का इतिहास काफी पुराना है,भारत में यह मेला बहुत अनूठा है जिसमें पूरी दुनिया से लोग आते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं, इसका अपना ही धार्मिक महत्व है और यह संस्कृति का भी एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है। यह मेला लगभग 48 दिनों तक चलता है। मुख्य रूप से दुनिया भर से साधू, संत, तपस्वी, तीर्थयात्री, और भक्त इसमें भाग लेते हैं।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुंभ मेला 12 वर्षों के दौरान चार बार मनाया जाता है। कुंभ मेले का आयोजन 4 तीर्थ स्थलों में होता है।
कुंभ मेले के स्थान हैं :-
1-उत्तराखंड में गंगा नदी पर हरिद्वार,
2-मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी पर उज्जैन,
3- महाराष्ट्र में गोदावरी नदी पर नासिक
4- उत्तर प्रदेश में गंगा, यमुना और सरस्वती तीन नदियों के संगम पर प्रयागराज में
इस वर्ष महाकुंभ मेला 13 जनवरी, 2025 को प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में शुरू हुआ होगा।और 26 फरवरी 2025 तक चलेगा।
इससे पहले 2003-04 में नासिक - त्र्यंबकेश्वर में कुंभ मेला आयोजित किया गया था।
कुंभ मेले का इतिहास
कुंभ मेला दो शब्दों कुंभ और मेला से बना है। कुंभ नाम अमृत के अमर पात्र या कलश से लिया गया है, जिसे देवता और राक्षसों ने प्राचीन वैदिक शास्त्रों में वर्णित पुराणों के रूप में वर्णित किया था, मेला, जैसा कि हम सभी परिचित हैं, एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'सभा' या 'मिलना'.
इतिहास में कुंभ मेले की शुरुआत कब हुई, किसने की, इसकी किसी ग्रंथ में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है, परन्तु इसके बारे में जो प्राचीनतम वर्णन मिलता है वह सम्राट हर्षवर्धन के समय का है, जिसका चीन के प्रसिद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग द्वारा किया गया है, पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी और कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन से ही हो गई थी,
आइये समुद्र मंथन से जुड़ी हुई इस खानी के बारे में अध्ययन करते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तब राक्षस ने देवताओं पर आक्रमण करके उन्हें परास्त कर दिया था,ऐसे में सब देवता मिलकर विष्णु भगवान के पास गए और सारा व्रतांत सुनाया, तब भगवान ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र यानी क्षीर सागर में मंथन करके अमृत निकालने को कहा, ये दूधसागर ब्रह्मांड के आकाशीय क्षेत्र में स्थित है,सारे देवता भगवान विष्णु जी के कहने पर दैत्यों से संधि करके अमृत निकालने के प्रयास में लग गए,जैसे ही समुद्र मंथन से अमृत निकला देवताओं के इशारे पर इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर उड़ गया।इस पर गुरु शंकराचार्य के कहने पर दैत्यों ने जयंत का पीछा किया और काफी परिश्रम करने के बाद दैत्यों ने जयंत को पकड़ लिया और अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव और राक्षसों में 12 दिन तक भयानक युद्ध चला रहा।ऐसा कहा जाता है कि इस युद्ध के दौरान प्रथ्वी के चार स्थानों पर अमृत कलश की कुछ बूंदे गिरी थी, जिनमें से पहली बूंद प्रयाग में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन और चौथी नासिक में गिरी थी। इसीलिए इन्हीं चार जगहों पर कुम्ब मेले का आयोजन किया जाता है. यहीं आपको बता दें कि देवताओं के 12 दिन, पृथ्वी पर 12 साल के बराबर होते हैं, इसलिए हर 12 साल में महाकुम्भ का आयोजन किया जाता है।
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दूध सागर के मंथन से एक घातक जहर भी उत्पन्न हुआ जिसे भगवान शिव ने बिना प्रभावित हुए पी लिया था।
अब जानते हैं कि कुंभ के आयोजन की तिथि कैसे निर्धारित की जाती है?
किस स्थान पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाएगा यह राशियों पर निर्भर करता है। कुंभ मेले में सूर्य और ब्रहस्पति का खास योगदान माना जाता है,जब सूर्य एवं ब्रहस्पति एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तभी कुंभ मेले को मनाया जाता है और इसी आधार पर स्थान ओत तिथि निर्धारित की जाती है।
1-जब ब्रहस्पति वर्षभ राशि में प्रवेश करते हैं और सूर्य मकर राशि में तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है।
2-जब सूर्य मेष राशि और ब्रहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन हरिद्वार में किया जाता है।
3-जब सूर्य और ब्रहस्पति का सिंह राशि में प्रवेश होता है तब यह महाकुंभ मेला नासिक में मनाया जाता है।
3-जब ब्रहस्पति सिंह राशि में और सूर्य देव मेष राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन उज्जैन में किया जाता है।
4- जब सूर्य देव सिंह राशि में प्रवेश करते हैं, इसी कारण उजैन, मध्यप्रदेश में जो कुंभ मनाया जाता है उसे सिंहस्थ कुंभ कहते हैं।
कुंभ में कौन से ग्रह महत्वपूर्ण माने जाते हैं?
सारे नवग्रहों में से सूर्य, चंद्र, गुरु और शनि की भूमिका कुंभ में महत्वपूर्ण मानी जाती है,जब अमृत कलश को लेकर देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध चल रहा था तब कलश की खींचा तानी में चंद्रमा ने अमृत को बहने से बचाया, गुरु ने कलश को छुपाया था, सूर्य देव ने कलश को फूटने से बचाया और शनि ने इंद्र के कोप से रक्षा की। इसीलिए ही तो जब इन ग्रहों का योग संयोग एक राशि में होता है तब कुंभ मेले का आयोजन होता है।
हर तीसरे वर्ष कुंभ का आयोजन होता है।गुरु ग्रह एक राशि में एक साल तक रहता है और हर राशि में जाने में लगभग 12 वर्षों का समय लग जाता है।इसीलिए हर 12 साल बाद उसी स्थान पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। निर्धारित चार स्थानों में अलग-अलग स्थान पर हर तीन साल में कुंभ लगता है। प्रयाग का कुंभ के लिए आशिक महत्व है। 144 वर्ष बाद यहां पर महाकुंभ का आयोजन होता है।
कुंभ मेलों के प्रकार
महाकुंभ मेला : - यह केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है,यह प्रत्येक 144 वर्षों में या 12 पूर्ण कुंभ मेले के बाद आता है जो इस बार 2025 मे आया है
पूर्ण कुंभ मेला: यह हर 12 साल में आता है। मुख्य रूप से भारत में 4 कुंभ मेला स्थान यानि प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किए जाते हैं, यह हर 12 साल में इन 4 स्थानों पर बारी-बारी आता है।
अर्ध कुंभ मेला:- इसका अर्थ है आधा कुंभ मेला जो भारत में हर 6 साल में केवल दो स्थानों पर होता है
1- हरिद्वार
2- प्रयागराज
कुंभ मेला : -चार अलग-अलग स्थानों पर राज्य सरकारों द्वारा हर तीन साल में आयोजित किया जाता है। लाखों लोग आध्यात्मिक उत्साह के साथ भाग लेते हैं,
माघ कुंभ मेला:- इसे मिनी कुंभ मेले के रूप में भी जाना जाता है जो प्रतिवर्ष और केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है। यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ के महीने में आयोजित किया जाता है।
कुंभ मेले के बारे में कुछ रोचक तथ्य
- कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक सम्मेलन है जिसे "धार्मिक तीर्थयात्रियों की दुनिया की सबसे बड़ी मंडली" के रूप में भी जाना जाता है।
- कुंभ मेले का पहला लिखित प्रमाण भागवत पुराण में उल्लिखित है।कुंभ मेले का एक अन्य लिखित प्रमाण चीनी यात्री ह्वेन त्सांग (या Xuanzang)
- के कार्यों में उल्लिखित है,
- जो हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान 629-645 ईस्वी में भारत आया था, साथ ही, समुंद्र मंथन के बारे में भागवत पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत और रामायण में भी उल्लेख किया गया है।
- चार शहरों में से प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन, प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेला सबसे पुराना है।
- स्नान के साथ कुंभ मेले में अन्य गतिविधियां भी होती हैं, प्रवचन, कीर्तन और महा प्रसाद,
- इसमें कोई संदेह नहीं कि कुंभ मेला कमाई का भी एक प्रमुख अस्थायी स्रोत है जो कई लोगों को रोजगार देता है,
- कुंभ मेले में, पहले स्नान का नेतृत्व संतों द्वारा किया जाता है, जिसे कुंभ के शाही स्नान के रूप में जाना जाता है और यह सुबह 3 बजे शुरू होता है। संतों के शाही स्नान के बाद आम लोगों को पवित्र नदी में स्नान करने की अनुमति मिलती है।
- हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि जो इन पवित्र नदियों के जल में डुबकी लगाते हैं, वे अनंत काल तक धन्य हो जाते हैं. यही नहीं, वे पाप मुक्त भी हो जाते हैं और उन्हें मुक्ति के मार्ग की ओर ले जाता है,
- दुनिया की सबसे बड़ी सभा कुंभ मेले को यूनेस्को की प्रतिनिधि सूची 'मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत' में शामिल किया गया है।
- कुंभ मेला उन तिथियों पर लगता है जब अमृत पवित्र कलश से इन नदीयों में गिरा था। हर साल, तिथियों की गणना बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा की राशि के पदों के संयोजन के अनुसार की जाती है।
- कुंभ का अर्थ है 'अमृत' कलश से, कुंभ मेला की कहानी उस समय की है जब देवता पृथ्वी पर निवास करते थे, वे ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण कमजोर हो गए थे और राक्षस पृथ्वी पर तबाही मचा रहे थे।
MahaKumbh Mela 2025 : तीर्थराज प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुम्भ में बस थोड़ा समय शेष है। इस आयोजन को विराट और अभूतपूर्व बनाने के लिए हर सम्भव प्रयास किया जा रहा है । इस बार करीब 4000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बसने जा रहे महाकुंभ मेले में जानिए क्या है खास।
महाकुम्भ का मेला दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन है जिसमें श्रद्धालुओं की भीड़ को अन्तरिक्ष से भी देखा जा सकता है, महाकुम्भ मेले का हर कोना अपने आप में अनोखा है,
mahakumbh 2025
महाकुंभ 2025 में दुनियाभर से 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के शामिल होने की उम्मीद है।
नागा संन्यासियों का जप-तप आकर्षण का केंद्र रहेगा, उनका धर्म के प्रति समर्पण कौतूहल बढ़ाऐगा।
किन्नर संन्यासी भी महाकुंभ का हिस्सा बनकर भजन-पूजन करेंगे। उनका दर्शन व आशीर्वाद लेने के लिए भीड़ जुटेगी।
दंडी संन्यासियों की तपस्या, वैष्णव संतों का त्याग, अखाड़ो के महामंडलेश्वरों का वैभव, योगी संतों का योग भी प्रयागराज के महाकुम्भ में आकर्षण का केन्द्र बनेगा।
कल्पवासियों की साधना अद्भुत होती है। संगम की रेती में धूनी रमाकर गृहस्थ समर्पित भाव से संतों के सानिध्य में भजन-पूजन करते हैं।
13 अखाड़े वैभव बढ़ाएंगे। इन अखाड़ों के 15 लाख से अधिक संत मेला क्षेत्र में प्रवास कर जप-तप में लीन रहेंगे।
श्रद्धालुओं को यमुना तट पर किले के अंदर स्थित प्राचीन अक्षयवट वृक्ष के दर्शन का सौभाग्य मिलेगा। कॉरिडोर बनाकर उसे भव्यता दी गई है।
मंदिर में कॉरिडोर के कारण बांध स्थित लेटे हनुमान जी का दर्शन-पूजन करने में श्रद्धालुओं को समस्या नहीं आएगी।
तीर्थराज प्रयाग को बसाने वाले महर्षि भरद्वाज का आश्रम भी लुभाएगा, भरद्वाज आश्रम कारिडोर में प्राचीनता के साथ आधुनिकता की अनुभूति होगी।
तीर्थराज प्रयाग माधव की नगरी है, इसे देखते हुए द्वादश माधव मंदिरों का जीर्णाेद्धार कराया गया है, द्वादश माधव के दर्शन-पूजन का विशेष प्रबंध किया गया है।
महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं को इन विशेष तिथियों को नोट करना चाहिए, ताकि प्रमुख स्नान पर्वों के बारे में उन्हें पता रहे। महाकुम्भ मेला 2025 के मुख्य स्नान पर्वों एवं शाही स्नान की तिथियां,
पौष पूर्णिमा - 13.01.2025, सोमवार,
मकर संक्रांति - 14.01.2025, मंगलवार (शाही स्नान), मौनी अमावस्या - 29.01.2025, बुधवार
(शाही स्नान), बसंत पंचमी - 03.02.2025, सोमवार
(शाही स्नान), माघी पूर्णिमा - 12.02.2025, बुधवार,
महाशिवरात्रि - 26.02.2025, बुधवार।
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