क्यों रामधारी सिंह दिनकर को राष्ट्रकवि कहा जाता है? Why is Ramdhari Singh Dinkar called the national poet?

 ‘राष्ट्रकवि’ रामधारी सिंह दिनकर 



रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय-रामधारी सिंह दिनकर अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय भाव को जनमानस की चेतना में नई स्फूर्ति प्रदान करने वाले कवि के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें हिंदी साहित्य के कालखंड में ‘छायावादोत्तर काल’ का प्रमुख कवि माना जाता है।इसके साथ ही उन्हें प्रगतिवादी कवियों में भी उच्च स्थान प्राप्त हैं। 


रामधारी सिंह दिनकर ने हिंदी साहित्य में गद्य और पद्य दोनों ही धाराओं में अपनी रचनाएँ लिखी हैं। वह एक कवि, पत्रकार, निबंधकार होने के साथ साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे।  रामधारी सिंह दिनकर जी को ‘क्रांतिकारी कवि’ के रूप में भी ख्याति मिली हैं। उन्होंने ‘रश्मिरथी’, ‘कुरूक्षेत्र’ और ‘उर्वशी’ जैसी रचनाओं में अपनी जिस काव्यात्मक प्रतिभा का परिचय दिया, वह हिंदी साहित्य जगत में अविस्मरणीय रहेगा। आइए जानते हैं अब हम ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से सम्मानित रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay) और उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानते हैं। 


  रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908  को सिमरिया ग्राम, बेगूसराय, बिहार में हुआ।उनके पिता का नाम रवि सिंह तथा माता जी का नाम मनरूप देवी था।

उनकी भाषा -परिष्कृत खड़ी बोली थी।

उनकी प्रमुख रचनाएँ उर्वशी, कुरुक्षेत्र, परशुराम की प्रतीक्षा, रेणुका आदि। 

उपाधि- राष्ट्रकवि

 रामधारी सिंह दिनकर जी की प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही सीमित साधनों के बीच हुई थी। इसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए पटना चले गए और पटना विश्वविद्यालय से उन्होंने वर्ष 1932 में B.A. में स्नातक की डिग्री हासिल की।  


स्वतंत्रता आंदोलन का दौर

इसके पश्चात् उन्होंने अपनी आजीविका चलाने के लिए माध्यमिक विद्यालय में अध्यापक के रूप में कार्य किया। फिर उन्होंने कुछ समय तक बिहार सरकार में सब-रजिस्टार की नौकरी की। यह वो समय था जब भारत में स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था। रामधारी सिंह दिनकर भी अंग्रेजों के खिलाफ अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से जन भावना में देश के प्रति नई चेतना को जगाने का कार्य कर रहे थे। उन्हें हिंदी भाषा के साथ साथ संस्कृत, उर्दू, बांग्ला और अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान था।  1947 में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् रामधारी सिंह दिनकर ने मुजफ्फरपुर के एक कॉलेज में हिंदी के विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। इसके बाद वर्ष 1952 में उन्हें राज्यसभा सदस्य के रूप में चुन लिया गया जहाँ उन्होंने तीन कार्यकालों तक अपना अहम योगदान किया। फिर उन्हें ‘भागलपुर विश्वविद्यालय’ में कुलपति के रूप में नियुक्त किया गया, और इसके एक वर्ष बाद ही भारत सरकार ने उन्हें अपना मुख्य ‘हिंदी सलाहकार’ बना दिया। यहाँ उन्होंने 1965 से 1971 तक कार्य किया।  24 अप्रैल 1974 को हिंदी साहित्य के इस महान कवि का चेन्नई, तमिलनाडु में निधन हुआ।

 

रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय -

उनके साहित्यिक जीवन के बारे में, आपको बता दें कि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी काव्य रचनाओं की शुरुआत हाई स्कूल से ही शुरू कर दी थी। सबसे पहले उन्होंने सुप्रसिद्ध साहित्यकार ‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ द्वारा प्रकाशित ‘युवक’ पत्र में ‘अमिताभ’ नाम से अपनी रचनाएँ भेजनी शुरू की थी। इसके बाद वर्ष 1928 में उनका ‘बारदोली-विजय संदेश’ नाम से पहला काव्य-संग्रह प्रकाशित हुआ था। रामधारी सिंह दिनकर ने काव्य के साथ साथ अन्य गद्य साहित्य में भी लेखन कार्य किया है।  रामधारी सिंह दिनकर की काव्य प्रतिभा ने उन्हें हिंदी साहित्य जगत में अपार प्रसिद्धि प्रदान की। उन्होंने राष्ट्र-प्रेम, सौन्दर्य और लोक कल्याण को अपने काव्य का विषय बनाया। लेकिन उनकी राष्ट्रीय भाव पर आधारित कविताओं ने भारतीय जनमानस को सबसे अधिक प्रभावित किया। रामधारी सिंह दिनकर की साहित्यिक कृतियाँ रामधारी सिंह दिनकर जी की काव्य कृतियाँ-

काव्य कृति प्रकाशन वर्ष 

बारदोली-विजय संदेश वर्ष- 1928

रेणुका वर्ष -1935

हुंकार वर्ष -1938

रसवन्ती वर्ष- 1939

द्वंद्वगीत वर्ष -1940

कुरूक्षेत्र वर्ष -1946

इतिहास के आँसू वर्ष -1951

रश्मिरथी वर्ष -1952

उर्वशी वर्ष -1961

परशुराम की प्रतीक्षा वर्ष -1963

हारे को हरिनाम वर्ष -1970

रश्मिलोक वर्ष- 1974


गद्य कृतियाँ

रचना  प्रकाशन वर्ष 

मिट्टी की ओर वर्ष- 1946

अर्धनारीश्वर वर्ष -1952

रेती के फूल वर्ष -1954

हमारी सांस्कृतिक एकता वर्ष -1955

भारत की सांस्कृतिक कहानी वर्ष -1955

संस्कृति के चार अध्याय वर्ष -1956

उजली आग वर्ष -1956

काव्य की भूमिका वर्ष -1958

राष्ट्रभाषा आंदोलन और गांधीजी वर्ष -1968

भारतीय एकता वर्ष -1971

मेरी यात्राएँ वर्ष -1971

दिनकर की डायरी वर्ष -1973

चेतना की शिला वर्ष -1973

आधुनिक बोध वर्ष -1973



साहित्यिक सम्मान 

वर्ष 1946 में प्रकाशित ‘कुरुक्षेत्र’ रचना के लिए उन्हें काशी नागरी प्रचारिणी सभा, उत्तर प्रदेश और भारत सरकार से सम्मान मिला था।  

इसके बाद उन्हें वर्ष 1959 में ‘संस्कृति के चार अध्याय’ रचना के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। 

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ‘डॉ. राजेंद्र प्रसाद’ ने उन्हें वर्ष 1959 में ‘पद्म विभूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया था। 

वर्ष 1961 में रामधारी सिंह दिनकर उनकी प्रसिद्ध काव्य रचना ‘उर्वशी’ के लिए ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। 


बिहार राज्य के राज्यपाल ‘जाकिर हुसैन’ जो बाद में भारत के तीसरे राष्ट्रपति भी बने। उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर जी को ‘डाक्ट्रेट’ की मानद उपाधि से सम्मानित किया था। 

 वर्ष 1999 में भारत सरकार ने उनकी स्मृति में ‘डाक टिकट’ भी जारी किया था। इतने पद्य,और गद्य रचनाओं, सम्मानों के बाबजूद भी वे निरंतर भाषा जागरण, राष्ट्रीय भाव से ओत-प्रोत रचनाओं को रचते रहे।महान कवि,साहित्यिकार,रचनाकार, पत्रकार,स्वतंत्रता सेनानी, जिन्होंने स्वतन्त्रता और राष्ट्र उत्थान के लिए अनमोल‌ कार्य किया हो। अर्थात एक ऐसा कवि जिसकी कविता वीर रस से ओतप्रोत हो,जिसे समाज की विसंगतियों को अपनी कविता में ढालना आता हो ,जो कविताओं के माध्यम से शोषण के खिलाफ आवाज उठाता हो, जिसकी कविताएं अनपढ़ से लेकर ज्ञानी तक को भाती हो, उसे राष्ट्र कवि ना कहें  तो क्या कहें इन्हीं गुणों के कारण उन्हें राष्ट्रकवि की संज्ञा दी गयी।

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