क्या कारण हैं बादल फटने और बाढ़ के ? Cloud burst and flood

 


बादल (cloudburst)फटने की ज्यादातर घटनाएं भारत के उत्तर पूर्व,ऊपरी और मध्य हिमालय के पहाड़ी इलाकों में जून,जुलाई से लेकर अगस्त के प्रथम पखवाड़े तक काफी आम है।यह तब होता है जब दक्षिण पश्चिम मानसून हवायें अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से चलती हैं।और मैदानों को बायपास करते हुए भारत के पहाड़ी उत्तरी भाग की ओर बढ़ती है।शुरू में अत्यधिक गर्म हवाओं के ऊपर की ओर बढ़ने और नमी से भरे बादल कोई वर्षा नहीं कर पाते,और इन गर्म हवा के प्रवाह के कारण वर्षा की बूंदें आकार में बड़ी हो जाती हैं।नीचे गिरने की बजाय ऊपर की और बढ़ती रहती हैं।इसके अलावा कम तापमान और हवा की धीमी गति के साथ उच्च सापेक्ष आर्द्रता के कारण तेजी से बादलों का संघनन होता है।और यह भी एक कारण है कि  पहाड़ी इलाकों में बादलों का सरकना धीमा पड़ जाता है।जिस कारण अचानक  किसी स्थान पर भारी वर्षा होती है।यह वर्षा का एक चरम रूप होता है।और इस घटना में जोर-जोर से बादल भी गरजते हैं।यह कुछ मिनटों के लिए मूसलाधार वर्षा होती है और उस क्षेत्र मे बाढ़,और तबाही जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है दक्षिण पश्चिम मानसून के मौसम में बादल फटने की घटनाएं बहुत आम हैं। भारत के हिमालयी राज्य  जैसे हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, सिक्किम, और अरुणाचल प्रदेश नियमित रूप से इस प्राकृतिक आपदा के कारण जीवन और संपत्ति  का हर वर्ष भारी हानि झेलते हैं।हर वर्ष सैकड़ों जाने जाती हैं।और सम्पत्ति को भारी नुक्सान होता है।बादल फटने  की घटना अमूमन पृथ्वी से 12 से 15 किलो मीटर की ऊंचाई पर होती है। लगभग 60 मिनट के अन्तराल मे 10 सेंटीमीटर या 100मिमीटर से अधिक की वर्षा को बादल फटना कहते हैं।यह लगभग 20 से 25 किलोमीटर का दायरा होता है।अभी तक 2024 मे हिमाचल प्रदेश के मंडी और अन्य स्थानों, उत्तराखंड के केदारनाथ रूद्रप्रयाग में बादल फटने की घटनाएं हुई हैं।जिसमें कई जानें गयी हैं।और सम्पत्ति को बड़ा नुकसान हुआ है।याद होगा

2013 मे उत्तराखण्ड के केदारनाथ मे बादल फटने के कारण उस समय मानसून पूरे देश में रिकॉर्ड समय 16 जून तक  पहुंच गया था। और केदारनाथ में बादल फटने सहित उत्तराखंड में भयंकर बारिश भी हुई।रिपोर्ट के अनुसार इस जल प्रलय के कारण आई बाढ़ और भूस्खलन में 5000 से ज्यादा लोग मारे गए।और 5,00000 से ज्यादा लोग विस्थापित हैं।इस प्रकार मानसून के मौसम में बादल फटने की घटना अधिकतर सामने आती हैं। जब बादल फटता है तो बाढ़ और भूस्खलन जैसे हालत पैदा हो जाते हैं। और बड़ी मात्रा में जनधन के साथ-साथ समाज और राष्ट्र की सम्पत्ति  को बड़ा नुकसान होता है वैज्ञानिकों के मुताबिक गर्म होती दुनिया में इस प्रकार के संगम के कारण होने वाली बारिश की तीव्रता बढ़ सकती है। इस बार हिमाचल प्रदेश में हुई सबसे ज्यादा तबाही। भारी बारिश के कारण हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में लोगों की मौत हुई है। जबकि दिल्ली में भी भारी वर्षा के कारण जानें गयी हैं। मनाली में दुकानों के बह गयी हैं।।हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में से एक है।मौसम विभाग के अनुसार उत्तर भारत में बारिश अभी जारी रहेगी।

 *शहरी क्षेत्रों मे बाढ के कारण* 

भारी वारिश के बाद जब प्राकृतिक जल संग्रहण,भूमि,जल स्रोतों,मार्गों,की जल को धारण करने की क्षमता का सभी तरह से दोहन हो जाता है।तो जल उन स्रोतों से निकलकर आस-पास की सूखी भूमि को डुबो देता है या कटाव कर देता है।बाढ प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही कारणों का परिणाम है।पहाड़ी राज्यों मे बादल अक्सर पहाडो़ के नजदीक ही फटते हैं।विगत वर्षों मे उत्तराखण्ड मे इसी कारण बहुत तबाही हुई।

गाद का संचय होना,नदियों की सफाई न होना।नदियों का मार्ग अवरूद्ध होना।

मानवनिर्मित अवरोध तटबन्धों,नहरों और रेलवे सम्बंधित निर्माण,जिससे नदियों की प्रवाह क्षमता मे कमी आती है।

वनों की कटाई। जिससे बाढ़ मे मिट्टी और पत्थर बहकर आते हैं।और बाढ का भयंकर रूप बन जाता है। ये बादल फटने की घटनाएं और बाढ़ के हालातों  के बढ़ने के कारण मानव गतिविधियों भी जिम्मेदार हैं। प्राकृतिक पर्यावरणीय तन्त्र को लगातार नुकसान पहुंचाने और असुन्तलित मानव विकास कार्यों के कारण भी ये घटनाएं बढ़ रही हैं।इस मानसून में सबको संवेदनशील रहना चाहिए और इस प्राकृतिक आपदा में सबको समाज और आपदा पीड़ितों का सहयोग करने का प्रयास करना चाहिए।

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