बांग्लादेशी हिंसा में हिन्दुओं का नरसंहार क्यों? यूएन और विश्व समुदाय मौन क्यों? Why is there massacre of Hindus in Bangladesh why is UN and world comedy silent?

 


बांग्लादेश की हिंसा अपने 1971के इतिहास को दोहरा रहा है।जहां हिन्दूओं,जैनों, बौद्धों, सिक्खों का अब नरसंहार हो रहा है। लेकिन हैरानी में डालती है विश्व समुदाय की खामोशी?

भारत को यूएनओ के माध्यम से तुरंत बांग्लादेश की हिंसा रुकवाने के लिए पहल करनी चाहिए। दंगाईयों को हिंदुओं का कत्लेआम रोकने की चेतावनी देनी चाहिए। जरूरत पड़े तो प्रभावी हस्तक्षेप करने से भी नहीं चूकना चाहिए। 

बांग्लादेश में दंगाई हिंसा का नंगा नाच कर रहे हैं और पूरा विश्व खामोशी से तमाशा देख रहा है। हस्तक्षेप करना तो दूर शांति की एक अपील तक किसी ने नहीं की? बांग्लादेश की सेना और पुलिस दंगाईयों को संरक्षण दे रही है, वहां की हिंसा 1971 के पाक सेना के अत्याचार और व्यभिचार की याद दिला रही है। तब पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) पाकिस्तान से मुक्ति की लड़ाई लड़ रहा था। उस समय भारत ने अपनी सेना नहीं भेजी होती, तो बांग्लादेश का नाम न होता। 

जब पाक सेना गाजर मूली की तरह बंगाल की मांग करने वाले लोगों को काट रही थी। उनकी महिलाओं से सामूहिक दुष्कर्म खुलेआम किए जा गए थे।प्रधानमंत्री के सरकारी आवास  में घुसकर दंगाईयों ने शेख हसीना के अंतर्वस्त्रों का जिस तरह से सार्वजनिक प्रदर्शन किया।ऐसे ही प्रदर्शन बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय पाकिस्तानी सेना किया करती थी। यह साम्यता अनायास तो नहीं है? इस उपद्रव के तार कहां से जुड़े हैं? जिस मुजीबुर्रहमान (शेख हसीना के पिता) की अगुवाई में बंगाली लोगों ने पाकिस्तान से लड़कर बांग्लादेश बनाया, ढाका में लगी उनकी मूर्ति को भीड़ ने गिरा दिया। उस भीड़ में कौन थे? इतना तो तय है कि वे बांग्लादेशी नहीं हो सकते, तभी अपने राष्ट्रपिता की मूर्ति से इस तरह की बदसलूकी की गई? इसके पीछे दंगाईयों की बंगबंधु के प्रति घृणा साफ झलकती है। मंदिरों को जलाने और हिंदुओं की हत्या हिंदुस्तान के प्रति उनकी नफरत दर्शाती है। यह नोट करने लायक है कि किसी मस्जिद या चर्च पर हमले नहीं हुए।


ढाका के मशहूर हिंदू सिंगर राहुल आनंद के घर में पहले लूटपाट की गई फिर उसे आग के हवाले कर दिया। उनका घर 140 साल पुराना था। यानी वह घर तब बना था जब भारत अखंड था। विभाजन नहीं हुआ था। बांग्लादेश के निर्माण में हिंदुओं और हिंदुस्तानियों का भी खून बहा था,फिर हिंदू और हिंदुस्तान के प्रति इतनी घृणा क्यों?यह किसी बड़ी साजिश की कहानी कहती है।भारत को यूएनओ के माध्यम से तुरंत बांग्लादेश की हिंसा रुकवाने के लिए पहल करनी चाहिए। दंगाईयों को हिंदुओं का कत्लेआम रोकने की चेतावनी देनी चाहिए। जरूरत पड़े तो प्रभावी हस्तक्षेप करने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए। बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ शुरू हुआ प्रदर्शन प्रधानमंत्री की इस्तीफे तक आ पहुंचा बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आखिरकार इस्तीफा दे दिया। और देश छोड़कर भारत में शरण ली। अब बांग्लादेश में सेना प्रमुख का नियंत्रण है। आज बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार है,लेकिन अल्पसंख्यकों के ऊपर अत्याचार रुकने की  बजाय बढ़ते जा रहे हैं । इतनी खराब हालत के पीछे आखिर कौन जिम्मेदार है? खबरों की माने तो इसके पीछे पाकिस्तानी एजेंसी (आई एस आई ) और कट्टरपंथी संगठन जमाते इस्लाम की साजिश हो सकती है। या हो सकता है की तख्ता पलट के पीछे चीन का हाथ हो, क्योंकि भारत और बांग्लादेश की अच्छी दोस्ती के कारण चीन बांग्लादेश में दखल नहीं दे पा रहा था। भारत के दो पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान ने हमेशा से भारत में अशांति फैलाने की कोशिश की है।1971 में बांग्लादेश के आजाद होने के बाद ही चीन‌और पाकिस्तान के द्वारा बांग्लादेश में अशांति फैलायी जा रही थी।बांग्लादेश में इस बार के आंदोलन में कट्टर पंथी ताकतें और गैर सरकारी संगठन शामिल हैं। इन्हें आई एस आई ने ही फंडिंग किया हो।चीन भी  बांग्लादेश में निवेश करना चाह रहा था।मगर भारत से अच्छी दोस्त के कारण बांग्लादेश में चीन अपनी मंशा में सफल नहीं हो पाया। इसलिए माना जा रहा है कि इस स्थिति के पीछे चीन पाकिस्तान जिम्मेदार हो सकते है।
 2022 में जनता के विद्रोह के कारण श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति को देश छोड़कर भागना पड़ा था, 2021 में अफगानिस्तान में आतंकवादी संगठन तालिबान ने लोकतांत्रिक सरकार पर कब्जा कर लिया था। फिर 2021 में म्यांमार में सेना ने चुनी हुई  सरकार को गिराकर सैन्य शासन लागू कर दिया था।और अब  2024 मे  बांग्लादेश में भी सेना ने कमल संभाल ली है। इन सभी देशों से भारत की गहरी दोस्ती है।और सभी भारत के अच्छे दोस्त हैं।और पड़ोसी देश हैं।लेकिन आन्दोलन‌ का इतना उग्र होना और खासकर हिन्दुओं का कत्ले आम करना, कहीं न कहीं बड़ी साजिश है। जिस प्रकार से मालदीव,पाकिस्तान,अफगानिस्तान में हिन्दू,जैन, बौद्ध और सिक्ख खत्म किये गये उसी प्रकार से बांग्लादेश में हो रहा है। बांग्लादेश में अब इस्कान को टारगेट किया जा रहा है। स्वामी चिन्मय प्रभु को गिरफ्तार कर उनको सभी पदों से हटा दिया है।जो गलत है।इस्कान जो एक अन्तर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ है,इसकी स्थापना 13 जुलाई 1966 को अमरीका के न्यूयॉर्क शहर में हुआ था।इसके संस्थापक आचार्य भक्ति वेदांत स्वामी जी थे। इस्कान के विश्वभर में  650 से ज्यादा मन्दिर हैं। इस्कान का उद्देश्य  आध्यात्मिक ज्ञान और विश्व शांति और एकता का अनुभव करना है।लेकिन जिस तरह से बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों,खासकर हिन्दुओं का नरसंहार हो रहा है। वह निंदनीय है। बांग्लादेश में मानवाधिकारों का पूरा हनन हुआ है। यूएन और  विश्व समुदाय तमाशा देख रहा है। यह हिन्दू, बौद्ध, सिक्ख,जैन,और अन्य अल्पसंख्यकों के लिए कट्टरपंथी देशों में खतरे का संकेत है।जिस पर विश्व समुदाय को आगे आने की आवश्यकता है। बांग्लादेश सरकार के सामने इन अत्याचारों के विरोध मे खड़े होने और विश्व समुदाय को तुरंत रोक लगवानी चाहिए।


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