वक्फ बोर्ड क्या है? वक्फ बोर्ड में संशोधन क्यों जरूरी?2024 Waqf Board

 


वक्फ बोर्ड वह संस्था है जो अल्लाह के नाम पर दान में दी गयी सम्पत्ति का रख रखाव करता है।भारत में वक्फ बोर्ड का इतिहास-

मुसलमानों की मजहबी संपत्ति (मस्जिद, मजार, कब्रिस्तान) आदि की देखरेख के लिए पहली बार 7 मार्च 1913 को एक कानून बनाया गया। इसके बाद 5 अगस्त 1923 को इसमें कुछ सुधार किया गया, यहां तक तो इसमें ऐसी कोई बात नहीं थी, जिससे किसी को कोई आपत्ति हो, इसके बाद 25 जुलाई 1930 को इसमें कुछ और प्रावधान जोड़े गए। 7 अक्टूबर 1937 को भी इसमें कुछ बदलाव किये गये 21मई 1954 को इसमें और थोड़ा बदलाव किया गया, 1984 में भी इसमें कुछ परिवर्तन किए गए,फिर 22 नवंबर 1995 को इसे ज्यादा ताकतवर बनाया गया।  इसके बाद 20 सितंबर 2013 को वक्फ अधिनियम 1995 में कुछ संशोधन किया और बोर्ड को अपार शक्ति दे दी गई। वक्फ बोर्ड इन शक्तियों का इस्तेमाल जमीन कब्जाने के लिए कर रहा है। इसलिए आज वक्फ बोर्ड के पास रेलवे और सेना के बाद सबसे अधिक जमीन है। वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 के अनुसार किसी भी सम्पत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले उसके मालिक को सूचित करना जरूरी नहीं है।चुपके से वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जाता है।और बाद में असली मालिक वक्फ काउंसिल में मुकदमा लड़ता रहता है। इसलिए प्रस्तावित विधेयक में कहा गया है कि अब किसी भी संपति को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले उससे संबंधित लोगों को सूचित करना अनिवार्य है।1995,और 2013 के संशोधनों ने वक्फ को  भस्मासुर बना दिया है। जो किसी भी संपत्ति पर अपना दावा ठोक देता है कुछ समय पहले वक्त बोर्ड ने श्री कृष्णा की नगरी बेट द्वारका और तमिलनाडु के एक 1500 वर्ष पुराने मणेंडियावल्ली चंद्रशेखर स्वामी मंदिर और उसके पास के गांव की 369 एकड़ जमीन पर दावा कर दिया था। वक्फ अधिनियम 1995के अनुसार यदि किसी गैर मुस्लिम की सम्पत्ति वक्फ बोर्ड में दर्ज हो गयी तो आदेश की तारीख से एक साल के अन्दर वक्फ बोर्ड में मुकदमा करिये और यदि आपको आदेश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो आपकी सम्पत्ति हमेशा के लिए गयी।वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 के अनुसार कोई भी व्यक्ति वक्फ बोर्ड में अपनी अर्जी लगाकर अपनी सम्पत्ति वक्फ बोर्ड को दे सकता है।

किसी कारण से यदि वह सम्पत्ति बोर्ड में पंजीकृत नहीं होती है, तो भी 50 साल‌ बाद वह सम्पत्ति वक्फ संपत्ति हो जाती है।इस कारण से सैकड़ों अवैध मजारें और मस्जिदें वक्फ संपत्ति हो चुकी हैं। वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 89 में व्यवस्था है कि वक्फ बोर्ड के विरुद्ध कोई भी दावा करने से पहले 60 दिन पूर्व नोटिस देना आवश्यक है। ऐसा कोई प्रावधान किसी हिंदू ट्रस्ट/ मठ की संपत्ति के बारे में नहीं है। इस अधिनियम की धारा 90 के अनुसार वक्फ प्राधिकरण के समक्ष दाखिल संपत्ति पर कब्जा या मुतवल्ली(केयरटेकर )के अधिकार से संबंधित कोई वाद लाया जाता है तो प्राधिकरण उसी व्यक्ति के खर्चे पर बोर्ड को नोटिस जारी करेगा। जिसने वाद दायर किया है। धारा 91 में यह व्यवस्था है कि यदि वक्फ बोर्ड की कोई जमीन सरकार द्वारा अधिगृहित की जानी है तो पहले वक्फ बोर्ड को बताया जाएगा। धारा 104 (बी) जो कि 2013 में जोड़ी गई है, में व्यवस्था है कि यदि किसी सरकारी एजेंसी ने वक्फ संपत्ति पर कब्जा कर लिया है तो उसे बोर्ड या दावेदार को प्राधिकरण के आदेश पर 6 महीने के अंदर वापस करना होगा। इस अधिनियम की धारा 107 के अनुसार वक्फ संपत्ति वापस लेने के लिए कोई समय सीमा नहीं है, जबकि हिंदू धार्मिक संपत्तियों को ऐसी छूट नहीं है,ऊपर से 1991 में पूजा स्थल विधेयक कानून पारित कर हिंदुओं से यह अधिकार ले लिया गया है, कि 15 अगस्त 1947 से पहले टूटे मंदिरों को वापस नहीं ले सकते हैं।

बेट द्वारका के मामले में तो गुजरात उच्च न्यायालय ने वक्फ बोर्ड को फटकार लगाई थी, इसके बाद यह मामला शांत है,जबकि मर्णेडियावल्ली मंदिर के मामले पर अभी तक कोई खास प्रगति नहीं हुई है। वहां के लोग अपनी ही जमीन के लिए लड़ रहे हैं। यही कारण है कि कई संगठन वक्फ बोर्ड मे संशोधन की मांग वर्षो से कर रहे हैं। वर्तमान में वक्फ बोर्ड के पास 8 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन है। केंद्र सरकार ने लोगों की पुकार सुनकर वक्फ संशोधन (विधेयक) 2024 को संसद में प्रस्तुत किया है।जिसे सरकार ने संसदीय संयुक्त समिति के पास भेजा है।और इस विधेयक का पारित होना भारत और भारतीयता के लिए बहुत जरूरी है।

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