कल्याण सिंह कैसे एक प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे?और क्यों 1992 मे कल्याण सरकार बर्खास्त हुई?Kalyan Singh
प्रखर राष्ट्रवादी नेता कल्याण सिंह का जन्म 6 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री तेजपाल सिंह लोधी और माता का नाम श्रीमती सीता देवी था। शिक्षा पूर्ण करने के बाद कुछ समय कल्याण सिंह ने एक शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दी। कल्याण सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये थे। बाद में वे राम मंदिर आंदोलन से जुड़ गए,वे राम मंदिर आंदोलन के बड़े नेताओं में से एक थे।कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री बने वे कई बार अतरौली से विधानसभा सदस्य के रूप में रह चुके हैं। पहली बार 1991 में कल्याण से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और दूसरी बार 1997 में मुख्यमंत्री बनी थे।वे उत्तर प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक चेहरों में से एक इसलिए माने जाते हैं क्योंकि उनके पहले कार्यकाल के दौरान बाबरी मस्जिद की घटना घटी थी।
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 6 दिसंबर 1992 को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद वह 1993 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अतरौली और कासगंज दोनों जगहों से विधायक निर्वाचित हुए। चुनाव में उनकी पार्टी बड़े दल के रूप में उभरी। लेकिन वे सरकार न बना सके। इसलिए वे विधानसभा में विपक्ष के नेता बने। सितम्बर 1997 मे वे फिर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। बाद मे वे राजस्थान के राज्यपाल बने, एक राज्यपाल के रूप में उन्हें वीआइपी कल्लर के खिलाफ दिए गए फैसलों के करण याद किया जाता है। कल्याण सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान राज्यपाल के आगे लगने वाला महामहिम शब्द हटवाकर इसकी जगह माननीय शब्द करवा दिया था। राज्यपाल को जयपुर से बाहर जाने पर दिया जाने वाला गार्ड ऑफ ऑनर भी उन्होंने बंद करवा दिया था।
विश्वविद्यालय में 26 साल बाद किसी समारोह को हर वर्ष करवाने की शुरुआत हुई।उन्होंने इसके लिए विद्यार्थियों को दी जाने वाली र्डिग्रियां आवश्यक रूप से तैयार किये जाने चाहिए को कहा।कल्याण सिंह पहले ऐसे राज्यपाल थे जो अपना खाना खुद ही बनाते थे। और पद पर रहते हुए भी उनकी थाली में केवल चटनी रोटी के साथ छांछ का एक गिलास होता था। यह उनकी सादगी का एहसास कराता था उनसे कोई खास मिलने आता तो वह अपनी स्टाफ को बोलते कि मेरी वाली चाय लेकर आना इसका मतलब होता था केवल दूध वाली चाय।
कल्याण सिंह ने रामभक्ति की प्रति वशीभूत होकर अपना सर्वोच्च न्योछावर कर दिया। कल्याण सिंह ने अपने संघर्ष के बल पर यूपी में पहली बार भाजपा की सरकार बनाई और राम के नाम पर साल भर के भीतर उनकी सरकार भी चली गई। राम मंदिर आंदोलन में आगे रहे कल्याण सिंह की पहचान उग्र हिंदुत्व वाली और प्रखर वक्ता की थी। 30 अक्टूबर 1990 को जब मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे और कार सेवकों पर गोलियां चली तब बीजेपी ने उग्र हिंदुत्व को तूफान देने के लिए कल्याण सिंह को ही आगे किया। अपने संघर्ष के बल पर उन्होंने 1991 में भाजपा की सरकार बनाई मंत्री मंडल गठन के बाद उन्होंने रामलाल परिसर का पूरे मंत्री मंडल के साथ दौरा किया।और राम मंदिर बनाने का संकल्प लिया। उनकी सरकार के1 साल भी नहीं गुजरे थे कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया गया। इसके लिए उन्होने नैतिक जिम्मेदारी लेकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और केंद्र सरकार ने उनकी सरकार बर्खास्त कर दी। कल्याण सिंह का कहना था कि वे राम मन्दिर के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी को कितनी बार भी ठोकर मार देंगे।
कल्याण सिंह का राजनीतिक सफर-
कल्याण सिंह 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए और 1980 तक इस पद पर रहे। कल्याण सिंह को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान 21 महीने के लिए जेल में डाल दिया गया था।
जून 1991 में, भाजपा ने विधानसभा चुनाव जीता और कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
उन्होंने 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस की पूर्व संध्या पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
नवंबर 1993 में, उन्होंने अलीगढ़ के दो विधानसभा क्षेत्रों, अतरौली और कासगंज से चुनाव लड़ा और दोनों निर्वाचन क्षेत्रों से जीत हासिल की. उन्होंने विपक्ष के नेता के रूप में कार्य किया।
सितंबर 1997 से नवंबर 1999 तक, उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में फिर कार्य किया।
उनकी सरकार ने जोर देकर कहा कि सभी प्राथमिक कक्षाओं को भारत माता की पूजा के साथ दिन की शुरुआत करनी चाहिए और वंदे मातरम को रोल कॉल के दौरान 'यस सर' की जगह लेनी चाहिए।
फरवरी 1998 में, उनकी सरकार ने राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े लोगों के खिलाफ मामले वापस ले लिए. उन्होंने कहा, "केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने पर राम मंदिर का निर्माण उसी स्थान पर होगा." उन्होंने 90 दिनों के भीतर उत्तराखंड राज्य बनाने का वादा किया।
भारतीय जनता पार्टी के साथ मतभेदों के कारण, उन्होंने पार्टी छोड़ दी और 1999 में राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का गठन किया. 2004 में, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध पर, वे फिर से भाजपा में शामिल हो गए और अपनी पार्टी का विलय कर दिया।उसी वर्ष, उन्होंने बुलंदशहर से भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा।
20 जनवरी 2009 को, उन्होंने भाजपा छोड़ दी और एटा लोकसभा सीट से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और जीत हासिल की।
वह उसी वर्ष समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए और 2009 के लोकसभा चुनावों में सपा के लिए प्रचार किया।
उनके बेटे राजवीर सिंह भी पार्टी में शामिल हुए।
2010 में, उन्होंने समाजवादी पार्टी छोड़ दी, उन्होंने 5 जनवरी 2010 को जन क्रांति पार्टी की स्थापना की।
21 जनवरी 2013 को पार्टी को भंग कर दिया गया।
2013 में, वह फिर से भाजपा में शामिल हो गए।उनका कहना था। कि वे कमल में लपेटकर मरना चाहेंगे। इसीलिए उनको प्रखर राष्ट्रवादी नेता कहा जाता था।
4 सितंबर 2014 को, उन्होंने राजस्थान के राज्यपाल के रूप में शपथ ली और 8 सितंबर 2019 तक सेवा की।
28 जनवरी 2015 को, उन्होंने हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल (अतिरिक्त प्रभार) के रूप में शपथ ली और 12 अगस्त 2015 तक सेवा की। मरणोपरांत उन्हें वर्ष 2022 में भारत का दूसरा सर्वोच्च पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।