भारतीय संस्कृति मे क्यों है गुरु पूर्णिमा का बड़ा महत्व ? Guru Purnima

 


किसी भी मनुष्य के जीवन निर्माण में उसके गुरुओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।भारतीय समाज मे वैदिक काल के समय से ही गुरु शिष्य परम्परा विद्यमान रही है।भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है,गुरु नश्वर सत्ता का नहीं ,चैतन्य विचारौं का प्रतिरुप होता है।        किसी उपकार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करना भारतीय समाज की विशेषता रही है। गुरु पूर्णिमा के पर्व का महत्व इसी दृष्टि से समझने की आवश्यकता है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को  भारतीय समाज यह पर्व गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के नाम से मनाता है। भारतीय समाज मे यह मान्यता है कि बिना गुरु के ज्ञान की प्राप्त सम्भव नहीं है। जीवन की सही दृष्टि गुरु के मार्गदर्शन से ही प्राप्त होती हैं। उदाहरण देवताओं के गुरु "बृहस्पति "हैं। भगवान श्री रामचंद्र जी के गुरु "वशिष्ठ" और "विश्वामित्र" रहे हैं। भगवान कृष्ण के गुरु "संदीपनी "रहे हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु "समर्थ रामदास "बंदा बैरागी के गुरु "गुरुगोविंद सिंह," स्वामी विवेकानंद के गुरु "रामकृष्ण परमहंस,"ऋषि दयानंद के गुरु ऋषि "विरजानन्द,"आदि अनेक महापुरूषों के गुरु कोई न कोई रहे हैं। गुरुजनों के प्रति पूज्यभाव यह भारतीय संस्कृति की प्रकृति है। आध्यात्मिक विद्या का उपदेश देने और ईश्वर का साक्षात्कार करा देने वाले गुरु को अपनी भूमि मे साक्षात् परम ब्रह्म कहा गया है।  मां ही प्रथम गुरु होती है।
 पौराणिक मान्यता के अनुसार गुरु पूर्णिमा को महाभारत के रचितयता वेदव्यास का जन्म दिवस माना जाता है। उनके सम्मान में इस दिन को व्यास पूर्णिणा भी कहा जाता है।शास्त्रों में यह भी कहां जाता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने चारों वेदों की रचना की थी। और इसी कारण से उनका नाम वेदव्यास पड़ा भारत में प्राचीन काल से ही गुरुओं की भूमिका काफी अहम रही है चाहे प्राचीन कालीन सभ्यता हो या आधुनिक दौर समाज के निर्माण में गुरुओं की अहम भूमिका रही है।भारतीय संस्कृति में व्यक्ति को ही नहीं तत्व को भी गुरु के रूप मे स्वीकार करने की परंम्परा ध्यान में आती है। गुरु के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन एवं समर्पण का प्रतीक गुरु दक्षिणा यह हमारी प्राचीन पद्धति है। भारतीय समाज का सबसे बड़ा सामाजिक और राष्ट्र को समर्पित संगठन संघ अपना गुरु किसी ब्यक्ति के स्थान पर तत्व को ही गुरु मानता है। संघ ने परम पवित्र भगवा ध्वज को गुरु के स्थान पर स्वीकार किया है। क्योंकि यह भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। 
और मौन रहकर अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का ज्ञान देता है। यह दिन अपने गुरू के प्रति समर्पण भाव को प्रकट करने का होता हैं।लोग अपने गुरु  को दक्षिणा समर्पित करते हैं। प्राचीन कल्पना के अनुसार अपनी आय का दसवाँ भाग गुरु को साक्षी मानकर समाज को समर्पित करना चाहिए। यह भाव भारतीय समाज मे वैदिक काल से रहा है। जो आज भी चलता आ रहा है।और संघ के स्वयंसेवक भी अपने गुरु के सामने वर्ष मे एक बार अपना पूजन और समर्पण इसी भाव से समर्पित करते हैं कि गुरू को साक्षी मानकर समाज और राष्ट्र का कल्याण हो।और मुझे लेशमात्र का प्रतिफल की भी चाह न हो।इसलिए भारतीय संस्कृति मे गुरुपूर्णिमा का बड़ा महत्व है। 

Popular posts from this blog

वक्फ बोर्ड क्या है? वक्फ बोर्ड में संशोधन क्यों जरूरी?2024 Waqf Board

सात युद्ध लड़ने वाली बीरबाला तीलू रौतेली का जन्म कब हुआ?Veerbala Teelu Rauteli

संघ(RSS) के कार्यक्रमों में अब सरकारी कर्मचारी क्यों शामिल हो सकेंगे? Now goverment employees are also included in the programs of RSS