कैसे वीर सावरकर एक समर्पित देशभक्त थे?vinayak sawarkar
स्वतन्त्रता सेनानी वकील एवं समाज सुधारक वीर विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक के भागपुर गांव मे हुआ था। अंग्रेजी दमनकारी हुकूमत ने वर्षों तक जेलों मे यातनायें दी ,लेकिन मातृभूमि की स्वतन्त्रता और स्वाभिमान के लिए समर्पित सावरकर जी का संकल्प अटल रहा।और असंख्य राष्ट्रभक्तों के प्रेरणा स्रोत बने।सावरकर जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होने स्नातक की पढाई फर्गयूसन कालेज से पूर्ण की युवावस्था मे उन्होने मित्र मेला नाम से एक युवा समूह का आयोजन किया। उनके प्रेरणा के स्रोत लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक, और विपिनचन्दपाल जैसे गरम दल के नेता थे। वे भारत की स्वतन्त्रता के लिए कई क्रान्तिकारी गतिविधियों को चलाते रहते थे।
और अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण अंग्रेजो ने उनको पचास साल की 1911मे सजा सुनाई। और उसमे भी उन्हें काला पानी के नाम से मशहूर सेलुलर जेल मे बन्द कर दिया गया था। उन्हें जेल मे कठोर यातनायें दी जाती थी। फिर भी उन्होने हार नहीं मानी।अर्थात काला पानी की क्रूर यातनाओं को झेलकर भी अडिग भाव से राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए संघर्ष करते रहे। अंडमान की सेल्यूलर जेल की कालकोठरी मे आज भी उनके राष्ट्र तप की अमिट स्मृतियां संचित हैं।
एक कल्पना करने वाला विषय सावरकर जी के बारे में है।30 वर्ष का पति जेल के सलाखों के भीतर खड़ा है। और बाहर उसकी युवा पत्नी खड़ी है। जिसका बच्चा हाल ही में मृत हुआ है। इस बात की पूरी संभावना है कि अब शायद इस जन्म में पत्नी को इन्तजार करना बेकार है। ऐसे कठिन समय पर इन दोनों ने क्या बातचीत की होगी। कल्पना मात्र से शेहर उठेंगे।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सबसे चमकते सितारे विनायक दामोदर सावरकर जी की बुरी परिस्थितियां उनके जीवन में आई थी। जब अंग्रेजों ने उन्हें काला पानी के कठोरतम सजा के लिए अंडमान जेल भेजने का निर्णय लिया। और उनकी पत्नी उनसे मिलने जेल में आई तो मजबूत इरादों वाले सावरकर ने अपनी पत्नी से एक ही बात कही। तिनके-तिनके करके तिलिया बिनना और उनसे एक घर बनाकर उसमें बाल बच्चों का पालन पोषण करना।यदि इसी को परिवार और कर्तव्य कहते हैं। तो ऐसा संसार तो कौआ और चिड़िया भी बसाते हैं। अपने घर परिवार बच्चों के लिए तो सभी काम करते हैं।मैंने अपने देश को ही अपना परिवार माना है।
और फिर कहा। यमुनाबाई बुरा ना माने मैंने तुम्हें एक ही जन्म में इतना परेशान कर दिया है। यदि अगला जन्म मिला तो हमारी भेंट होगी। यहीं से विदा लेता हूंँ। यही माना जाता था कि जिसे काला पानी की भयंकर सजा मिली है वह वहां से जीवित वापस नहीं आता।मात्र 26 वर्ष की युवा स्त्री ने अपने पति वीर सावरकर से क्या कहा होगा?वह धीरे से नीचे बैठी। और जाली में से अपने हाथ अंदर करके उन्होंने सावर के पैरों को स्पर्श किया। चरणों की धूल अपने मस्तक पर लगाई सावरकर भी अंदर से हिल गए।उन्होंने पूछा यह क्या कर रही हो। क्रांतिकारी के यह चरण मै अपनी आंखों में बसा लेना चाहती हूं। ताकि अगले जन्म में कहीं मुझ से कोई चूक न हो जाए।अपने परिवार का पोषण और चिंता करने वाले मैंने बहुत देखे हैं। लेकिन समूचे भारतवर्ष को अपना परिवार मानने वाला व्यक्ति मेरा पति है। इसमें बुरा मानने वाली बात ही क्या है।
यदि आप सत्यवान है तो मैं सावित्री हूं। मेरी तपस्या में इतना दम है कि मैं यमराज से आपको वापस छीन लाऊंगी। आप चिंता ना करें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें।हम इसी स्थान पर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।उसी अवस्था में पति को हुए काला पानी की सजा से विदा लेती है ।और पतिव्रता का पालन करते हुए वर्षों इन्तजार करती हैं। इससे यह मालूम होता है कि किस तरह राष्ट्र भक्ति उनके अन्दर कूट-कूट कर भरी थी।घर परिवार की चिन्ता छोड़ राष्ट्र की स्वतन्त्रता हेतु ही एक मात्र चिन्तन करना। ही उनकी राष्ट्र भक्ति को दर्शाता है। जेल मे उन्होने साथी कैदियों को पढाना - लिखाना सिखाया। और जेल मे एक बुनियादी पुस्तकालय भी बनाया। जिसे अंग्रेज भी पसन्द नहीं करते थे। सावरकर 6 जनवरी 1924 को जेल से रिहा हुए।फिर वे हिन्दू महासभा से जुड़े रहे। और 1937 मे हिन्दू महासभा के अध्यक्ष बने। भारत के इतिहास मे उनकी पहचान एक स्वतंत्रता सेनानी,वकील,समाज सुधारक और राजनेता, के रूप मे जानी जाती है। इस प्रकार से इस महान स्वतन्त्रता सेनानी की मृत्यु 26फरवरी 1966 को हुई।