कौन थे कर्पूरी ठाकुर जिन्हें मिलेगा भारत रत्न ?Karpuri Thakur
जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गांँव से ही हुई।मैट्रिक की परीक्षा1940 मे पास करने के बाद वे आजादी के आन्दोलन मे कूद पडे़। और वर्ष 1942 में पटना विश्वविद्यालय में आने के बाद वह गांधी जी के असहयोग आन्दोलन का हिस्सा बने।एक सभा मे उन्होने अपने भाषण मे कहा था। कि भारत की जनसंख्या इतनी है कि अगर एक साथ इतनी बडी़ जनसंख्या थूकेगी तो अंग्रेज बह जायेंगे। और वे अंग्रेजों के द्वारा गिरफ्तार किये गये। कर्पूरी ठाकुर के पिता का नाम गोकुल ठाकुर और माता का नाम रामदुलारी देवी था। भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को उनके जन्मशताब्दी वर्ष 2024 मे भारत रत्न दिया जाएगा।कर्पूरी ठाकुर को उनकी लोकप्रियता के कारण जननायक कहा जाता है। कर्पूरी ठाकुर भारत छोडो़ आन्दोलन के दौरान 26 महीने जेल मे रहे।
कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे।
राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था। ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए।
जब करोड़ो रुपयों के घोटाले में आए दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों।कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, विश्वास ही नहीं होता। उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में सुनने को मिलते हैं।
उनसे जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके रिश्ते में उनके बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा।उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए। उसके बाद अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, “जाइए, उस्तरा आदि ख़रीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।
कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने या फिर मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को पत्र लिखना नहीं भूले। इस पत्र में क्या था, इसके बारे में रामनाथ कहते हैं, पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।
रामनाथ ठाकुर इन दिनों भले राजनीति में हों और पिता के नाम का लाभ भी उन्हें मिला हो, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन में उन्हें राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने का काम नहीं किया।
उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में लिखा, कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था।कि कर्पूरी जी कभी आपसे पांच-दस हज़ार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा। भई कर्पूरी जी ने कुछ मांगा। हर बार मित्र का जवाब होता नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं।
कर्पूरी जी के मुख्यमंत्री रहते हुये ही उनके क्षेत्र के कुछ सामंती जमींदारों ने उनके पिता को सेवा के लिये बुलाया। जब वे बीमार होने के नाते नहीं पहुंच सके तो जमींदार ने अपने लठैतों से मारपीट कर लाने का आदेश दिया। जिसकी सूचना किसी प्रकार जिला प्रशासन को हो गयी तो तुरन्त जिला प्रशासन कर्पूरी जी के घर पहुंच गया और उधर लठैत पहुंचे ही थे। लठैतो को बंदी बना लिया गया किन्तु कर्पूरी ठाकुर जी ने सभी लठैतों को जिला प्रशाशन से बिना शर्त छोडने का आग्रह किया तो अधिकारी गणों ने कहा कि इन लोगों ने मुख्यमंत्री के पिता को प्रताडित करने का कार्य किया इन्हे हम किसी शर्त पर नही छोड़ सकते थे।
कर्पूरी ठाकुर जी ने कहा इस प्रकार के पता नहीं कितने असहाय लाचार एवं शोषित लोग प्रतिदिन लाठियां खाकर दम तोडते हैं काम करते हैं।कहां तक और किस किस को बचाओगे?क्या सभी मुख्यमंत्री के मां बाप है? इनको इसलिये दंडित किया जा रहा है कि इन्होने मुख्यमंत्री के पिता को उत्पीड़ित किया है। सामान्य जनता को कौन बचायेगा। जाओ प्रदेश के कोने कोने में शोषण उत्पीड़न के खिलाफ अभियान चलाओ और एक भी परिवार सामंतों के जुल्मो सितम का शिकार न होने पाये। लठैतों को कर्पूरी जी ने छुडवा दिया। इस प्रकार उन्हें पक्षपात एवं मानवता का मसीहा कहा जाना अतिश्योक्ति नहीं है।
अस्सी के दशक की बात है. बिहार विधान सभा की बैठक चल रही थी।कर्पूरी ठाकुर विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे, उन्होंने एक नोट भिजवा कर अपने ही दल के एक विधायक से थोड़ी देर के लिए उनकी जीप मांगी। उन्हें लंच के लिए आवास जाना था.उस विधायक ने उसी नोट पर लिख दिया।मेरी जीप में तेल नहीं है, कर्पूरी जी दो बार मुख्यमंत्री रहे।कार क्यों नहीं खरीद पाये। यह संयोग नहीं था कि संपत्ति के प्रति अगाध प्रेम के चलते वह विधायक बाद के वर्षों में अनेक कानूनी परेशानियों में पड़े, पर कर्पूरी ठाकुर का जीवन बेदाग रहा।
एक बार उप मुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से ही चलते थे।क्योंकि उनकी जायज आय कार खरीदने और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती थी।कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गांव गए थे। बहुगुणा जी कर्पूरी ठाकुर की पुश्तैनी झोपड़ी देख कर रो पड़े थे।
स्वतंत्रता सेनानी कर्पूरी ठाकुर 1952 से लगातार विधायक रहे, पर अपने लिए उन्होंने कहीं एक मकान तक नहीं बनवाया।
सत्तर के दशक में पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए सरकार सस्ती दर पर जमीन दे रही थी, खुद कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ विधायकों ने कर्पूरी ठाकुर से कहा कि आप भी अपने आवास के लिए जमीन ले लीजिए,कर्पूरी ठाकुर ने साफ मना कर दिया,तब के एक विधायक ने उनसे यह भी कहा था कि जमीन ले लीजिए,अन्यथा आप नहीं रहिएगा तो आपका बाल-बच्चे कहां रहेंगे? कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि अपने गांव में रहेगे।
कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ नेता अपने यहां की शादियों में करोड़ों रुपए खर्च कर रहे थे।पर जब कर्पूरी ठाकुर को अपनी बेटी की शादी करनी हुई तो उन्होंने इस मामले में भी आदर्श को उपस्थित किया।
1970-71 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री थे,रांची के एक गांव में उन्हें वर देखने जाना था,तब तक बिहार का विभाजन नहीं हुआ था,कर्पूरी ठाकुर सरकारी गाड़ी से नहीं जाकर वहां टैक्सी से गये थे,शादी समस्तीपुर जिला स्थित उनके पुश्तैनी गांव पितौंजिया में हुई, कर्पूरी ठाकुर चाहते थे कि शादी देवघर मंदिर में हो, पर उनकी पत्नी की जिद पर गांव में शादी हुई. कर्पूरी ठाकुर ने अपने मंत्रिमंडल के किसी सदस्य को भी उस शादी में आमंत्रित नहीं किया था,यहां तक कि उन्होंने संबंधित अफसर को यह निर्देश दे दिया था कि बिहार सरकार का कोई भी विमान मेरी यानी मुख्यमंत्री की अनुमति के बिना उस दिन दरभंगा या सहरसा हवाई अड्डे पर नहीं उतरेगा।पितौंजिया के पास के हवाई अड्डे वहीं थे।
हालांकि उनकी साधनहीनता भी उन्हें दो बार मुख्यमंत्री बनने से रोक भी नहीं सकी। 1977 में जेपी आवास पर जयप्रकाश नारायण का जन्म दिन मनाया जा रहा था।
पटना के कदम कुआं स्थित चरखा समिति भवन में, जहां जेपी रहते थे,देश भर से जनता पार्टी के बड़े नेता जुटे हुए थे. उन नेताओं में चंद्रशेखर, नानाजी देशमुख शामिल थे। मुख्यमंत्री पद पर रहने बावजूद फटा कुर्ता, टूटी चप्पल और बिखरे बाल कर्पूरी ठाकुर की पहचान थी। उनकी दशा देखकर एक नेता ने टिप्पणी की।किसी मुख्यमंत्री के ठीक ढंग से गुजारे के लिए कितना वेतन मिलना चाहिए?’ सब निहितार्थ समझ गए। हंसे... फिर चंद्रशेखर जी अपनी सीट से उठे. उन्होंने अपने लंबे कुर्ते को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर सामने की ओर फैलाया. वह बारी-बारी से वहां बैठे नेताओं के पास जाकर कहने लगे कि आप कर्पूरी जी के कुर्ता फंड में दान कीजिए।तुरंत कुछ सौ रुपए एकत्र हो गए. उसे समेट कर चंद्रशेखर जी ने कर्पूरी जी को थमाया और कहा कि इससे अपना कुर्ता-धोती ही खरीदिए,कोई दूसरा काम मत कीजिएगा, चेहरे पर बिना कोई भाव लाए कर्पूरी ठाकुर ने कहा, ‘इसे मैं मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करा दूंगा।
यानी तब समाजवादी आंदोलन के कर्पूरी ठाकुर को उनकी सादगी और ईमानदारी के लिए जाना जाता था। आज समाजवाद विचारधारा पर जीने वाले ब्यक्ति अब बहुत कम ही देखने को मिलेंगे।कर्पूरी जीने समाजवाद को पूरे जीवनभर ब्यवहार से जिया।उन्होंने कभी खुद कोअपने संकल्प से विचलित नहीं होने दिया।स्वतन्त्र के बाद मैट्रिक मे अंग्रेजी की अनिवार्यता को समाप्त भी कर्पूरी जी ने किया और मैट्रिक तक की मुफ्त शिक्षा भी।इस प्रकार इस जननायक का स्वर्गवास 17 फरवरी 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ।लेकिन कर्पूरी ठाकुर अपने संकल्प और कार्यों से भारत रत्न बनकर अमर हो गये।