भारत मे मकर संक्रान्ति क्यों और किस-किस नाम से मनाते हैं? Makar sankranti
इस साल मकर संक्रांति 15 जनवरी को है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य देव मकर राशि मे प्रवेश करते हैं। तो उस दिन मकर संक्रान्ति मनायी जाती है। मकर संक्रान्ति संस्कृति और धर्म का पर्व, इससे
देश एकता के सू्त्र में बंधता है।
हर साल 14-15 जनवरी को धनु से मकर राशि व दक्षिणायन से उत्तरायण में सूर्य के प्रवेश के साथ यह पर्व संपूर्ण भारत सहित विदेशों में भी अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।
पंजाब व जम्मू-कश्मीर में 'लोहड़ी' के नाम से प्रचलित यह पर्व भगवान बाल कृष्ण के द्वारा 'लोहिता' नामक राक्षसी के वध की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन पंजाबी लोग जगह-जगह अलाव जलाकर उसके चहुंओर भांगड़ा नृत्य कर अपनी खुशी जाहिर करते हैं। व पांच वस्तुएं तिल, गुड़, मक्का, मूंगफली व गजक से बने प्रसाद की अग्नि में आहुति प्रदान करते हैं।
भारतीय संस्कृति में त्योहारों, मेलों, उत्सवों व पर्वों का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जहां हर दिन कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है।
यभारत मे त्योहार और मेले ही हैं जो हमारे जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार करने के साथ परस्पर प्रेम और भाईचारे को बढ़ाते हैं। मकर संक्रांति ऐसा ही 'तमसो मा ज्योर्तिगमय' का साक्षात् प्रेरणापुंज, अंधकार से उजाले की ओर बढ़ने व अनेकता में एकता का संदेश देने वाला पर्व है।
वहीं देश के दक्षिणी इलाकों में इस पर्व को 'पोंगल' के रूप में मनाने की परंपरा है। फसल कटाई की खुशी में तमिल हिंदुओं के बीच हर्षोल्लास के साथ चार दिवस तक मनाये जाने वाले 'पोंगल' का अर्थ विप्लव या उफान है। इस दिन तमिल परिवारों में चावल और दूध के मिश्रण से जो खीर बनाई जाती है, उसे 'पोंगल' कहा जाता है।
यह दिन श्रद्धा, भक्ति, जप, तप, अर्पण व दान-पुण्य का दिन माना जाता है।
इसी तरह गुजरात में मकर संक्रांति का ये पर्व 'उतरान' के नाम से मनाया जाता है, तो महाराष्ट्र में इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर तिल और गुड़ से बने लड्डू खिलाकर मराठी में 'तीळ गुळ घ्या आणि गोड गोड बोला' कहते हैं। जिसका हिन्दी में अर्थ होता है तिल और गुड़ के लड्डू खाइए और मीठा-मीठा बोलिए। वहीं असम प्रदेश में इस पर्व को 'माघ बिहू' के नाम से जाना जाता है।
इसी तरह प्रयागराज में माघ मेले व गंगा सागर मेले के रूप में मनाए जाने वाले इस पर्व पर 'खिचड़ी' नामक स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर खाने की परंपरा है। जनश्रुति है कि शीत के दिनों में खिचड़ी खाने से शरीर को नई ऊर्जा मिलती है।
मकर संक्रांति को मनाने के पीछे अनेक धार्मिक कारण भी हैं। इसी दिन गंगा भागीरथ के पीछे चलकर कपिल मनु के आश्रम से होते हुए सागर में जा मिली थीं। इस दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण की दिशा में गमन के साथ ही स्वेच्छा से अपना देह त्यागा था।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व
यह दिन श्रद्धा, भक्ति, जप, तप, अर्पण व दान-पुण्य का दिन माना जाता है। सनातन धर्मावलंबियों के लिए मकर संक्रांति का महत्व वैसा ही जैसा कि वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाड़ों में हिमालय का है। भले मकर संक्रांति का पर्व देश के विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता हों पर इसके पीछे समस्त लोगों की भावना एक ही है।
मकर संक्रांति के दौरान लोगों में पतंगबाजी का उल्लास चरम पर होता है। देश में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के त्योहार के एक महीने पहले ही पतंगबाजी का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। शीतलहर के साथ पतंगबाजी का लुत्फ़ उठाने को लेकर बच्चों के साथ बड़े भी अपने को रोक नहीं पाते हैं।
इस दौरान बाजार भी पतंगों से गुलज़ार होने लग जाते हैं। लेकिन हर साल पतंगबाजी के दरमियान जो चिंताजनक पहलू निकल कर सामने आता है वो है चाइनीज मांझे के कारण बेजुबान पक्षियों की होने वाली मौतें। हालांकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने देशभर में पतंग उड़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाले नायलॉन और चाइनीज मांझे की खरीद फरोख्त, स्टोरेज और इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। फिर भी हमे ध्यान रखना चाहिए।