25 दिसम्बर तुलसी पूजन दिवस का इतिहास क्या है?Tulsi diwas

 


तुलसी श्रीर्महालमीर्विद्याविद्या यशसाविनी।धम्यर्या धर्मानना देवीदेवमनः प्रिया।।लभते सुतरां भक्तिमन्तेविष्णुप लभेत।


भारतीय संस्कृति मे तुलसी माता की पूजा अनादि काल से होती आ रही है।

 तुलसी पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिसका नाम वृंदा था राक्षस कुल में जन्मी यह बच्ची बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी। जब वह बड़ी हुई तो उसका विवाह राक्षस कुल में ही दानव राज जालंधर से हुआ। जालंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी। सदा अपने पति की सेवा किया करती थी। एक बार देवताओं और दैत्यों में युद्ध छिड़ गया। जब जालंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं तो आप जब तक युद्ध में रहेंगे मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करूंगी जब तक आप नहीं लौट आते मैं अपना संकल्प नहीं छोडूंगी। जालंधर तो युद्ध में चला गया और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उसके व्रत के प्रभाव से देवता भी जालंधर को हार ना सके सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास पहुंचे और सभी ने भगवान से प्रार्थना की।भगवान बोले वृंदा मेरी परम भक्त है। मैं उसे छल नहीं कर सकता इस पर देवता बोले कि भगवान दूसरा कोई उपाय हो तो बताएं। लेकिन हमारी मदद जरूर करें? इस पर भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धरा और वृंदा के महल में पहुंच गए वृंदा ने जैसी अपने पति को देखा तो तुरंत पूजा से उठ गई और उनके चरणों को छू लिया।इधर वृंदा का संकल्प टूटा उधर युद्ध में देवताओं ने जालंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया।जालंधर का कटा हुआ सिर जब वृंदा के पास गिरा तो वृंदा ने आश्चर्य से भगवान की ओर देखा जिन्होंने जालंधर का रूप धारण रखा था इस पर भगवान विष्णु अपने रूप में आ गए पर कुछ बोल न सके। वृंदा ने कुपित होकर भगवान को श्राप दे दिया कि वह भी पत्थर के हो जाए। इसके चलते भगवान तुरंत पत्थर के हो गए सभी देवताओं में हाहाकार मच गया देवताओं की प्रार्थना की बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया। और इसके बाद अपने पति का सिर लेकर सती हो गई। उनकी राख से एक पौधा निकला  तब भगवान विष्णु जी ने उसे पौधे का नाम तुलसी रखा। और कहां की मैं इस पत्थर रूप में भी रहूंगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि किसी भी शुभ कार्य में बिना तुलसी जी के भोग के पहले कुछ भी स्वीकार नहीं करूंगा। तभी से ही तुलसी जी की पूजा होने लगी कार्तिक मास में तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ किया जाता है। साथ ही देव उठवानी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूम में मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तुलसी में देवी लक्ष्मी का वास होता है और उनकी पूजा से सुख समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। तुलसी पूजन की शुरुआत 2014 से संतों ने की। भारत मे 25 दिसम्बर से1 जनवरी तक तुलसी पूजन ,माला जप पूजन,गौ पूजन,हवन,गौ,गीता,गंगाजल जागृति यात्रा,और सतसंग आदि कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।भारतीय संस्कृति में तुलसी को माता का दर्जा दिया गया है। तुलसी माता की भारी महिमा है नित्य एक तुलसी के पत्ते का सेवन से बीपी, ब्लड शुगर,आदि ऐसे अनेक प्रकार के अनगिनत विमारियों से मुक्ति मिलती है। 25 दिसंबर सोमवती अमावस्या के दिन घर में तुलसी  पूजन दिवस मनाया जाता है।तुलसी माता को गमले में जल चढ़ाया जाता है। और नई तुलसी के पौधे का रोपण किया जाता है। और तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है।

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