बीराँगना लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों के आगे समर्पण की बजाय युद्ध क्यों चुना ? Why did brave woman Lakshmi Bai choose war instead of surrendering to the British?

 



रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका बाज था। उनके पिता का नाम मोरोपन्त ताम्बे और माता का नाम भागीरथी बाई था। जब लक्ष्मी बाई 4 वर्ष की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गई।उनके पिता मराठा बाजीराव द्वित्तीय के दरबार मे सेवारत थे।बचपन मे ही उन्होंने शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा घर पर ही ली।1842 मे  लक्ष्मीबाई का विवाह गंगाधर राव के साथ हुआ।बाद मे 1853 मे गंगाधर राव की मृत्यु के बाद वह  झांसी की रानी बनी। गंगाधर राव ने एक पुत्र को गोद लिया था। जिसका नाम दामोदर राव रखा गया था।और दामोदर राव को अपने वारिस के रुप मे रखा गया। उस समय लार्ड डलहौजी ने यह  नियम बनाया था। कि जिस राज्य के राजा की मृत्यु होगी वह राज्य स्वतः ही अंग्रेजी हुकूमत मे विलय हो जायेगा। जिसका नाम हड़प नीति से जाना जाता है।अंग्रेजों ने1854 में 60000₹लक्ष्मीबाई को वार्षिक पेंशन के रूप में दिया गया।1857 को भारत मे अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत हुई। जब यह खबर झांसी तक पहुंची। तो लक्ष्मी ने अपनी सुरक्षा बढ़ा दी। 23 मार्च 1858 को ब्रिटिश सेना के कमांडिंग आफिसर सर हैरिस ने रानी से शहर को आत्मसमर्पण करने की मांग की। और चेतावनी दी। जिसे रानी ने साफ मना कर दिया। और साफ कहा कि मै अपनी झाँसी किसी भी कीमत पर अंग्रेजों को नहीं दूंगी। उन्होंने मना किया तो अंग्रेजों ने  शहर को नष्ट करना शुरु कर दिया गया। इस पर लक्ष्मीबाई ने घोषणा की। हम आजादी के लिए हैं। 28 मार्च 1858 को  अंग्रेजों ने झांसी पर आक्रमण किया रानी लक्ष्मीबाई की सेना ने 7 दिनों तक झांसी की सुरक्षा की। और अंग्रेजी हुकूमत के छक्के छुडा़ दिये।

अपनी छोटी सी सेना के दम पर रानी की सेना ने अंग्रेजों की बड़ी सेना का मुकाबला किया।रानी ने खुले रूप से शत्रु का सामना किया।और युद्ध में अपनी बहादुरी का परिचय दिया। उसने अपनी पीठ के पीछे दामोदर राव को बैठाकर घोड़े पर सवार होकर अंग्रेजों की सेना से युद्ध किया।यह युद्ध बहुत दिनों तक नहीं खिंच सकता था।इसलिए रानी के  सरदारों ने रानी से आग्रह किया कि वह यहां से कालपी प्रस्थान कर दें। और महारानी कालपी चली गई।यहाँ उन्होंने नाना साहब और उनके योग्य सेनापति ताँत्या टोपे से सम्पर्क स्थापित किया। और विचार विमर्श किया। रानी की वीरता और साहस का लोहा अंग्रेज मान चुके थे।लेकिन उन्होंने रानी का पीछा किया। रानी का घोड़ा पूरी तरह घायल हो गया। और उनका घोडा़ बादल।स्वर्ग सिधार गया।रानी ने  साहस नहीं छोड़ा।कालपी मे रानी ने नाना साहब और ताँत्या टोपे के साथ  योजना बनाई और भगवानपुर के राजा मर्दान सिंह आदि सभी ने रानी का साथ दिया। रानी ने अपनी सेना को संगठित किया। लेकिन अंग्रेज सेना रानी का पीछा करती रही।और आखिर वह दिन आ गया।जब अंग्रेजों ने ग्वालियर के किले को अपने कब्जे में ले लिया। रानी लक्ष्मी बाई युद्ध लड़ती रही। और आखिकार18 जून 1858 को ग्वालियर के किले को बचाते हुए बीरगति को प्राप्त हो गयी।इस भारतीय बीरांगना ने अंग्रेजों के सामने समर्पण को न चुनकर आजादी के लिए लड़कर मरना पसंद किया।स्वराज और भारतीय स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों से समर्पण की बजाय युद्ध लड़ना स्वीकार किया। और भारतीय इतिहास मे अमर हो गयी।

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