धन्वंतरि का जन्म इतिहास और आर्युर्वैदिक चिकित्सा Dhanwantari

 


श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय स्वाहा।

धन की देवी माता लक्ष्मी को माना जाता है।और धन के देवता कुबेर कहे जाते हैं।लेकिन ऐसे मे धन्वंतरि का धनतेरस से क्या नाता?और उनको देवता की उपाधि कैसे मिली?इसकी रोचक पौराणिक कथा है।श्रीमदभागवत पुराण में कहा गया है कि जब प्राचीन समय मे देवता गंभीर संकट में थे। तो उन्होंने मदद के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की।भगवान विष्णु ने देवताओं और राक्षसों को महान मंदार पर्वत और नाग वासुकी की सहायता से समुद्र मंथन करने के लिए कहा। समुद्र की आदि ब्रह्मण्डीय जीवन सामग्री की तरल गहराई से 14 वें रत्न के रुप मे देवताओं के चिकित्सक धन्वंतरी प्रकट हुए। जो सफेद वस्त्र पहने हुए थे। उनके हाथों में अमृत का कलश था।वह उन 14 रत्नों में से एक है। जो  सागर मंथन की इस महत्वपूर्ण पौराणिक प्रक्रिया के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि के रूप मे प्रकट हुए थे। वे भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से12वें अवतार माने गए हैं। जिनके हाथों में अमृत कलश था। अमृत के लिए देव और राक्षसों मे छीना -झपटी हुई थी। धन्वंतरि के अमृत कलश को प्रकट होने के कारण उनका बरतनों से गहरा नाता है।अमृत कलश एक तरह से सुख समृद्धि का प्रतीक है।धनतेरस पर बर्तन खरीदना खास तौर पर कलश खरीदना शुभ माना जाता है।सोने,चाँदी की वस्तुयें खरीदना शुभ माना जाता है।धन्वंतरि को देवताओं का चिकित्सक माना जाता है।और चिकित्सा का देवता माना जाता है।समुद्र मंथन मे देवताओं के पहले प्रकट होने और उनमे धन्वंतरि के प्रकट होने से पहले ही यज्ञ का भाग बंट जाने से धन्वंतरि को देव नहीं माना गया।जब धन्वंतरि अमृत कलश लेकर बाहर आये तो उन्होंने भगवान विष्णु से इस लोक मे अपने काम और स्थान के लिए पूछा?भगवान विष्णु ने कहा अभी आप धन्वंतरि के नाम से जाने जायेंगे।और अगला जन्म आपका द्वापर मे होगा।जहाँ आप धन्वंतरि द्वित्तीय के नाम से जाने जायेंगे।और द्वापर मे ही आपको सभी सिद्धियाँ प्राप्त होंगी।और तब से आप देवता हो जायेंगे।और आपकी पूजा भी होगी।तो द्वापर मे काशी मे एक राजा थे।धन्व जिन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया।उनके तप से प्रसन्न होकर शिवजी ने धन्वंतरि को उनके पुत्र रत्न मे प्रदान किया। इसी जन्म में धन्वंतरि ने ऋषि भारद्वाज से   आयुर्वेद विद्या ग्रहण की थी। और उसे अष्टांग में विभक्त कर अपने शिष्यों में बांटा था। उन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। उनके वंशज दिवोदास ने शल्य चिकित्सा का पहला विद्यालय स्थापित किया था। वैदिक काल में जो महत्व और स्थान अश्वनी को प्राप्त था वही पौराणिक काल में धन्वंतरि को प्राप्त था। जहां अश्विनी के हाथों मे मधु कलश था।वही धन्वंतरि को अमृत कलश मिला था।

 यह प्रसंग हर 12 वर्ष बाद कुंभ मेला उत्सव के दौरान भी मनाया जाता है। द्वापर मे मानव पीड़ा ने धन्वंतरि को इतना द्रवित कर दिया कि उन्होंने पृथ्वी पर पुनर्जन्म लेने की इच्छा की।उन्होंने अपना दूसरा दर्शन तब किया जब काशी वाराणसी के राजा दीर्घतमा ने पुत्र प्राप्त के लिए घोर तपस्या की काशी के राजकुमार के रूप में जन्मे उनको धन्वंतरि के नाम से ही  जाना जाता है।धन्वंतरि ने आयुर्वेद को दुनिया के सामने प्रकट किया उन्हें चिकित्सा विज्ञान की सभी शाखाओं के संरक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है। उन्होंने व्यवस्थित रूप से आयुर्वेद को अष्टांग में विभाजित किया। जिनमें से प्रत्येक विभाग आयुर्वेद चिकित्सा का प्रतिनिधित्व करता है। चिकित्सा की इस प्रणाली को उनके शिष्यों द्वारा आयर्वेद को और अधिक लोकप्रिय बनाया गया। तथा सिखाया गया और आगे की पीढियों को सौंपा गया। जिनमें सुश्रुत अग्रणी थे। सुश्रुत ने वाराणसी में चिकित्सा और शल्य चिकित्सा के एक स्कूल की स्थापना की। जिसमें कई शिष्यों को प्रशिक्षण दिया गया। बाद में उन्होंने सुश्रुत संहिता लिखी और उन्हें भारतीय सर्जरी के जनक के रूप में जाना जाता है। धन्वंतरि द्वारा सिखाई गई राइनो प्लास्टिक और लिथोटोमी जैसी सर्जिकल प्रक्रिया विश्व प्रसिद्ध हो गई।विभिन्न आधुनिक विद्वान उस समय भारतीय चिकित्सा की ऊंचाई को देखकर चकित रह गए।धन्वंतरि की शिक्षाएं उनके प्रसिद्ध शिष्य सुश्रुत की शिक्षाओं के माध्यम से अग्नि पुराण में दर्ज हैं नो खण्डों मे मटेरिया मेडिका की एक विशाल शब्दावली जिसे धन्वंतरि निघन्टु के रूप मे जाना जाता है।आयुर्वेद मे सभी प्रकार के चिकित्सा का उल्लेख मिलता है। धन्वंतरि ने मानव पीड़ा को कम करने का मार्ग दिखाया। आयुर्वेद केवल चिकित्सा विज्ञान की उपचारात्मक पहलू पर ही नहीं बल्कि मानव स्वास्थ्य के समग्र संवर्द्धन पर भी जोर देता है। आधुनिक विज्ञान आज इसे वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में स्वीकार करता हैं। दक्षिण भारत में विशेष रूप से केरल और तमिलनाडु में धन्वंतरि को कुछ मंदिर समर्पि हैं। जहां आयुर्वेदिक चिकित्सा के  अत्यधिक संवर्द्धन पर जोर दिया गया है।आयुर्वेद के क्षेत्र मे भारत सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले व्यक्तियों को धन्वंतरि पुरस्कार दिया जाता है।

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