नोबेल और भारत रत्न सम्मानित अर्थशास्त्री अमृत्य सेन के क्या सिद्धान्त हैं?Amrtya sen
भारतीय मूल के अर्थशास्त्री नोबेल पुरस्कार और भारत रत्न से सम्मानित अमृत्य सेन एक विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री सिद्धांत, दार्शनिक, और लेखक हैं। उन्होंने सामाजिक चयन सिद्धांत राजनीतिक और नैतिक दर्शन और निर्णय सिद्धांत सहित कई क्षेत्रों में अभूतपूर्व शोध किये हैं। वे भारत के संदर्भ में गरीबी उन्मूलन,भूमि सुधारो पर अधिक बल देते हैं।वे भूमंडलीकरण उदारीकरण एवं निजीकरण के आर्थिक सुधारो से सहमत हैं। परंतु उनका मानना है कि पूंजीवादी सरकारों को सामाजिक क्षेत्र, सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी योजनाओं पर भी धन खर्च करना चाहिए। अमर्त्य सेन को अकाल की समस्या पर उनके काम के लिए जाना जाता है।अकाल जिसके कारण भोजन की वास्तविक स्थिति, कमी के प्रभाव को रोकने या सीमित करने के लिए व्यावहारिक समाधान का विकास और समाधान के लिए जाना जाता है। अमृत्य सेन के अनुसार विकास स्वतंत्रताओं का विस्तार करने की प्रक्रिया है।अकाल, मानव विकास सिद्धांत,कल्याणकारी अर्थशास्त्र,गरीबों के अंतर्गत लैंगिक असमानता और राजनीतिक उदारवाद पर उनके काम के लिए अमृत्य सेन को आर्थशास्त्र का पितामह कहा जाता है।
भारतीय मूल के अमर्त्य सेन को विश्व अर्थशास्त्र में उनके योगदान के लिए 1998 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।तथा 1999 में उनको भारत के सबसे बडे़ सम्मानित पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
अमृत्य सेन का जन्म 3 नवम्बर 1933 को रविंद्र नाथ टैगोर के शांतिनिकेतन शिक्षण संस्थान में हुआ था। शांतिनिकेतन जहां उनके नाना जी संस्कृत पढ़ाते थे। मूल रूप से अमृत्य सेन का परिवार ढाका का निवासी है।जो अखंड भारत का हिस्सा था।जो अब वर्तमान में बांग्लादेश की राजधानी है। उनके पिता आशुतोष सेन ढाका विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे।अमृत्य सेन की प्रारंभिक शिक्षा 1940 में ढाका मे हुई थी। 1941 से उन्होंने विश्व भारती शान्ति निकेतन स्कूल में पढ़ाई की।वे आई एस सी की परीक्षा में प्रथम आए। और उसके बाद कोलकाता के प्रिसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया वहां से उन्होंने अर्थशास्त्र और गणित में बी ए किया। 1953 में वे कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज चले गये। यहां उन्होने अर्थशास्त्र में दोबारा बीए किया। और अपनी कक्षा में प्रथम रहे।उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी की।उसके बाद वे जादवपुर विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे। 1960 से 1970 के दशक में अमर्त्य सेन ने अपने शोध पत्रों के माध्यम से सोशल च्वाइस के सिद्धांत को बढा़या।1943 में बंगाल में पड़े अकाल की स्मृति की गहरी छाप उनके मन मे थी। 1943 के अकाल को उन्होंने शहरी विकास (जिसमें वस्तुओं की कीमतें बढ़ गई थी)। के कारण गरीब लोग,और ग्रामीण मजदूर, जो भुखमरी का शिकार हुए। क्योंकि उनकी मजदूरी और वस्तुओं की कीमतों मे बहुत अन्तर हो गया था।। को मुख्य कारण मानते है।और उस समय लगभग 2,3 मिलियन लोग अकाल से मरे। डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स के क्षेत्र में अमृत्य सेन ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की मानव विकास रिपोर्ट के प्रतिपादन में विशेष प्रभाव डाला।संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की मानव विकास रिपोर्ट एक वार्षिक रिपोर्ट है जो विभिन्न प्रकार की सामाजिक और आर्थिक सूचकों के आधार पर विश्व के देशों को रैंक प्रदान करती है। डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स और सामाजिक सुधारों में अमृत्य सेन का सबसे महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी योगदान है। कैपेबिलिटी का सिद्धांत और उन्होंने जो इक्वलिटी का ह्वाट सिद्धान्त प्रतिपादित किया। अमर्त्य सेन ने अपने लेखों और शोधों के माध्यम से गरीबों के उत्थान के ऐसे तरीके विकसित किये जिससे गरीबों के आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए उपयोगी जानकारी उत्पन्न की जा सके। सेन के अनुसार शिक्षा और जन चिकित्सा सुविधाओं के सुधार के बिना आर्थिक विकास संभव नहीं है।1971 तक वे दिल्ली मे इकोनामिक्स के प्रोफेसर रहे। अमृत्य सेन 1972 में लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स से जुड़ गये।और सामाजिक चयन सिद्धान्त पर काम शुरु किया।और सन 1977 से 86 के मध्य उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाया। सन 1987 में हुए हावार्ड चले गए। और सन 1998 में उन्हें ट्रिनटी कॉलेज कैंब्रिज का मास्टर बना दिया गया। सन 2007 में उन्हें नालंदा मैटर ग्रुप का अध्यक्ष बनाया गया। इसका उद्देश्य था प्राचीन काल में स्थित इस शिक्षण केंद्र की पूनः स्थापना सन 2012 में सेन को इस विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया। और अगस्त 2014 में विश्वविद्यालय में शैक्षणिक कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ। फरवरी 2015 में अमृत्य सेन ने दूसरी अवधि के लिए अपना नाम वापस ले लिया।
अमृत्य सेन की लिखी प्रमुख किताबें
1-सामाजिक विकास एवं समाज कल्याण-(1970)
2-गरीबी और अकाल(1981)
3-तर्ख संगतता और स्वतन्त्रता(2002)
4-पहचान और हिंसा(2006)
5-न्याय का विचार(2009)
6-चाबी छीनना
अमृत्य सेन के अनुसार विकास का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता में वृद्धि है। अर्थात स्वास्थ्य, शिक्षा या अभिव्यक्त की स्वतंत्रता जैसे अधिकारों का मानव विकास में बहुत महत्व है। विकास अर्थशास्त्र के लिए क्षमता दृष्टिकोण है। अमृत्य सेन का मानना है कि शिक्षा का पिछड़ापन ही गरीबों का मूल कारण है। शिक्षित व्यक्ति अज्ञानता एवं अंधकार से स्वयं को बचाता है। तथा संचित धन का उपयोग करता है। उनका मानना है कि सरकार को शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए। ताकि शिक्षित समाज का निर्माण हो सके। एवं देश का विकास हो।
सेन सूचकांक- सेन सूचकांक गरीबी सूचकांक एक समग्र गरीबी माप है जो गरीबों के जोखिमों की घटनाओं और तीव्रता को गरीबों के जोखिमों वाले लोगों के बीच आय के वितरण के साथ जोड़ता है। इसकी गणना गरीबी अंतर अनुपात के वर्ग की औसत से की जाती है।