नोबेल विजेता सुब्रह्मण्यन चन्द्रशेखर की खोजें क्या थी? What was the discovery of Nobel laureate Subrahmanyan Chandrasekhar?

 


सुब्रमण्यम चंद्रशेखर का जन्म 19 अक्टूबर 1910 को लाहौर(अब पाकिस्तान मे) ब्रिटिश भारत में हुआ था। उनका परिवार 1916 में लाहौर से इलाहाबाद स्थानांत्रित हो गया था। और फिर 1918 में मद्रास में बस गये उनके पिता सुब्रमण्यम अय्यर भारतीय लेखा परीक्षा में एक अधिकारी थे। उनकी माता एक गृहणी थी।1930 में विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले भौतिकी मे पहले भारतीय वैज्ञानिक सी बी रमन उनके चाचा थे। सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने 12 साल की उम्र तक अपने माता-पिता से ही घर पर पढाई  की। 1922 में उनको मद्रास के ट्रिप्लीकेन हिन्दू हाईस्कूल मे रखा गया।1930 मे उन्होने प्रेसिडेंसी कालेज से जो मद्रास विश्वविद्यालय से संबंध था।बी एस सी पूरी की। वे पहले से ही मेधावी छात्र थे। बी एस सी के उपरान्त उनको भारत सरकार ने स्कालरशिप दी।बाद मे वे स्कालरशिप की मदद से इंग्लैण्ड के कैंम्ब्रिज विश्व विद्यालय चले गये।वे अपने चाचा सीबी रमन से काफी प्रभावित थे।बाद मे उन्हीं के पद चिह्नों पर चलकर वे महान वैज्ञानिक बने। वर्ष  1933 में उन्हें कैंब्रिज ट्रनिटी वि वि मे गुरुत्वाकर्षण पालीट्रोप्स पर एक शोध प्रबन्धन के साथ-साथ पीएच डी की डिग्री प्रदान की गयी।और स्कालरशिप भी दी गयी। दिसंबर 1936 में सुब्रमण्यम चंद्रशेखर को यार्केस में आर्कियोलॉजी एस्ट्रोलॉजी के सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया। और वे शिकागो विश्वविद्यालय में रहे। बाद में उन्हें एसोसिएट प्रोफेसर 1941 के रूप में नियुक्त किया गया। 1953 में उनको पुरातात्विक पुरातत्व के मार्टनडी एच एल विशिष्ट सेवा प्रदाता के रूप में नियुक्त किया गया।

ब्लैकहोल रहस्य- 

वर्ष 1934 में मात्र 24 वर्ष की आयु में ही उन्होंने तारों के गिरने और लुप्त होने की गुत्थी सुलझा ली थी। 11 जनवरी 1935 को लंदन की रॉयल एस्टॉनोमिकल सोसायटी में उन्होंने इसको लेकर अपना रिसर्च पेपर भी सब्मिट कर दिया था।इस रिसर्च के मुताबिक सफेद बौने तारे जिसको व्हाइट ड्वॉर्फ स्टार कहा जाता है। वह एक निश्चित द्रव्यमान यानी डेफिनेट मास हासिल करने के बाद अपने भार में वृद्धि नहीं कर सकते हैं।यही वजह है कि वो अंत में ब्लैक होल में तब्दील हो जाते हैं। उनके रिसर्च में कहा गया था कि जिन तारों का डेफिनेट मास आज सूर्य से 1.4 गुना अधिक होगा, वे तारे आखिर में सिकुड़ कर बहुत भारी हो जाएंगे। इस तरह से वो अपने अंत तक पहुंच जाते हैं। उनकी इस रिसर्च को पहले ऑक्सफोर्ड के सर आर्थर एंडि गटन ने खारिज कर दिया था। इतना ही नहीं उनके इस रिसर्च पेपर पर चंद्रशेखर का मजाक तक उड़ाया गया था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी रिसर्च की पुष्टि के लिए हुए लगातार शोध करते रहे। उनके इस शोध को उस वक्त बल मिला जब 1983 में उनके सिद्धांत को मान्यता मिली। उनकी वर्षों पुरानी रिसर्च को सही पाया गया। 1983 में उन्हे  भौतिकी के क्षेत्र में डॉक्टर विलियम फाउलर के साथ संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बहुत कम उम्र में ही उन्होंने अपनी पहचान एक खगोल भौतिकविद के रूप में बना ली थी। उनकी खोज से न्यूट्रान तारे और ब्लैक होल के अस्तित्व की धारणा कायम हुई ।जिसे समकालीन खगोल विज्ञान की रीड प्रस्तावना माना जाता है।खगोल भौतिकी के क्षेत्र में चंद्रशेखर के सिद्धांत चंद्रशेखर लिमिट के नाम से जाने जाते हैं। उन्होंने पूर्णत गणितीय गणनाओं और समीकरणों के आधार पर चंद्रशेखर सीमा का विवेचन किया था।उनके शोध के बाद सभी खगोल वैज्ञानिकों ने पाया कि सभी स्वेत वामन तारों का द्रव्यमान चंद्रशेखर द्वारा निर्धारित सीमा में ही सीमित रहता है। चंद्रशेखर ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में तारों के वायुमंडल को समझने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। और बताया कि एक आकाशगंगा में तारों में पदार्थ और गति का वितरण कैसे होता है। रोटेटिंग फ्लूइड मास तथा आकाश  के नीलेपन पर किया गया उनका शोध कार्य भी प्रसिद्ध है। चंद्रशेखर करीब 20 वर्ष तक एस्ट्रोफिजिकल जनरल के ऐडिटर भी रहे। वर्ष 1969 में  उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्म विभूषण से  भी सम्मानित किया गया। चंद्रशेखर अपनी पूरी जिंदगी रिसर्च करते रहे और अपना ज्ञान दूसरों में बांटते रहे। चंद्रशेखर का 21 अगस्त 1995 को 84 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से शिकागो में निधन हो गया।

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