भारत के स्वतन्त्रता संग्राम मे संघ का योगदान Cotribution of Rss in Indias freedom struggle
1925 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना का तात्कालिक उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्त ही था। जो उन दिनों प्रत्येक स्वयंसेवक को दिलाए जाने वाली प्रतिज्ञा में वर्णित था। संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार जी किशोर अवस्था से ही स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े हुए थे। 1905 में बंगाल विभाजन की आहट सुनकर लोकमान्य तिलक जी की प्रेरणा से डॉक्टर हेडगेवार जी द्वारा छात्रों का संगठन और स्वदेशी जागरण के लिए गांव-गांव प्रवास,हुआ था।भाषण व स्वदेशी बिक्री केंद्र आदि आरंभ किये गये। क्रांतिकारियों के बीच डॉक्टर हेडगेवार जी का गुप्त नाम कोकीन था।तथा वे शस्त्रों के लिए एनाटमि शब्द का प्रयोग करते थे।
प्रथम विश्व युद्ध 1915 के समय संपूर्ण भारत के सैनिक छावनियों में क्रांति की गुप्त योजना हुई।मध्य भारत का उत्तरदायित्व डॉक्टर की हेडगेवार जी को ही दिया गया था। 11 जुलाई 1922 को डॉक्टर हेडगेवार जी के स्वागतार्थ अंजनी जेल के मुख्य द्वार के सामने प्रांतीय कांग्रेस के सभी प्रमुख नेता उपस्थित थे। जिनमे डॉक्टर मुंजे,डॉक्टर खरे ,डॉक्टर प्रांन्जये,बलवंतराव, मंडेलकर,आदि उपस्थित थे।अगले दिन डॉक्टर हेडगेवार जी के स्वागत समारोह में हकीम अजमल खाँ, पंडित मोतीलाल नेहरू,चक्रवर्ती राजगोपालाचारी,डा अंसारी,विट्ठल भाई पटेल,जैसे कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता भी उपस्थित थे।
वर्धा में 27- 28 अप्रैल 1929 को 100 स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण वर्ग में वक्ताओं ने प्रशिक्षणार्थिर्यों से भाषण में कहा स्वराज प्राप्ति के लिए वे अपना सर्वस्व त्याग करने हेतु तैयार रहे।वहीं सार्वजनिक रूप से घोषणा की गई कि संघ का अंतिम लक्ष्य स्वराज्य प्राप्त करना है। 30 जनवरी 1927 को ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय सेनाओं को चीन भेजने के विरोध का प्रस्ताव डॉक्टर हेडगेवार जी द्वारा तैयार किया गया था।उस प्रस्ताव को संघ के नेता प्रांजपे द्वारा सभा के सामने रखा गया। 1928 में सांडर्स वध के बाद डॉक्टर जी ने राजगुरु को अपने पास कुछ समय के लिए छिपा कर रखा था।और 1928 में ही साइमन कमीशन विरोधी आंदोलन के प्रचार -प्रसार एवं लोगों को जागृत करने का दायित्व डॉक्टर हेडगेवार जी को ही सोंपा गया था।
दिसंबर 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पारित पूर्ण स्वतंत्रता के ऐतिहासिक प्रस्ताव का डॉक्टर हेडगेवार जी द्वारा स्वागत किया गया।कांग्रेस द्वारा स्वतंत्रता दिवस 26 जनवरी 1930 रविवार को मनाने के निर्णय को संघ ने सभी शाखाओं में क्रियान्वित करने के लिए दिशा निर्देश दिये।।संघ स्थापना के बाद संघ की ओर से पहली बार कोई दिशा निर्देश शाखाओं को भेजा गया। 1930 के जंगल सत्याग्रह में डॉक्टर जी एवं संघ के अनेक स्वयंसेवकों ने सक्रियता से भाग लिया तथा जेल भी गये। 1932 में पालाघाट कांड (सरकारी खजाना लूटने) में बाघा जतीन आदि अनेक क्रांतिकारियों का बलिदान हुआ। वहीं संघ के सरकार्यवाह माननीय बालाजी हुद्दार भी बन्दी बनाये गये। विदर्भ के आष्टी चिम्मूर क्षेत्र मे समानान्तर सरकार पर संघ के स्वयंसेवकों पर अमानवीय अत्याचार हुए।
एक दर्जन से अधिक स्वयंसेवकों का बलिदान हुआ। मवाना मेरठ में तिरंगा फहराने पर अंग्रेजों द्वारा गोली पर अंग्रेज गुप्तचरों के द्वारा आंदोलनकारियों को पकड़वाते समय स्वयंसेवकों द्वारा आंदोलनकारियों का पूर्ण सहयोग एवं सहायता की गयी।संघ के चतुर्थ सरसंघचालक माननीय राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भय्या ने भी प्रयाग में हुए आंदोलन में सहभागिता की थी। संघ द्वारा माननीय दत्तोपन्त ठेंगडी़ जी को 1942 के आंदोलन में आंदोलनकारियों से संपर्क संवाद व सहयोग हेतु वार्ता के लिए भेजा गया था।स्वयंसेवकों द्वारा क्रांतिकारियों व आंदोलनकारिर्यों को देशभर में शरण दी गयी। दिल्ली प्रांत के माननीय प्रांत संघ चालक श्री हंसराज गुप्ता जी के निवास पर अरुणा आसिफ अली, व जयप्रकाश नारायण, पुणे के माननीय संघ चालक श्री भाऊ साहब देशमुख जी के यहां प्रमुख समाजवादी नेता अच्युत पटवर्धन,आंध्र प्रदेश के माननीय प्रांत संघचालक सातवलेकर जी के यहां क्रांतिकारी नाना पाटिल आदि ने आवास के साथ-साथ अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया था। (रामटेक) नागपुर नगर कार्यवाह तथा बनवासी कल्याण आश्रम के संस्थापक श्री रमाकांत देशपांडे को तहसील व थाने पर कब्जा करने व जलाने पर मृत्यु दंड की घोषणा की गई। पुणे शिविर में द्वितीय सरसंघ चालक श्री गुरुजी तथा बाबा साहब आप्टे ने स्वतंत्रता प्राप्ति तथा अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने का आह्वाहन किया। संघ क्रांतिकारियों के सम्बधों का गुप्तचर विभाग की अनेक फाइलों में वर्णन है। हैदराबाद 15 जून 1947 को निजाम ने हैदराबाद को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया।
संघ की स्वयंसेवकों के सहयोग की अपेक्षा की संघ की सक्रिय भागीदारी के कारण हैदराबाद की राजा कर सैनिक हिंदुओं को हैदराबाद से नहीं भगा सके अंत में 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेनानी हैदराबाद में प्रवेश किया 14 सितंबर 1948 को हैदराबाद का भारत में पूर्ण विलय संभव सका दादरा नगर हवेली अंग्रेजों के चली जाने से ही पूर्ण देश स्वतंत्र नहीं हुआ दादरा और नगर हवेली तथा गोवा पर अभी पुर्तगालियों का नियंत्रण था 2 अगस्त 1954 को 100 स्कोवयं सेवकों ने दादराऔर नगर हवेली की स्वतंत्रता के लिए पुर्तगालियों की बस्ती पर अचानक आक्रमण कर दिया उनका नेतृत्व पुणे की मान्य संघ चालक श्री विनायक राव आपके कर रहे थे इसमें अनेक संघ कार्यकर्ताओं ने भाग लिया सेलवास की पुलिस मुख्यालय पर आक्रमण करके वहां उपस्थित 175 सैनिकों का आत्म समर्पण कराकर वहां राष्ट्रीय तिरंगा फहरा दिया गया इस प्रकार संघ की स्वयंसेवकों ने दादरा और नगर हवेली को स्वतंत्र कर लिया 1955 गोवा की स्वतंत्रता के लिए सर्वाधिक राष्ट्रीय संघर्ष में स्वयंसेवकों ने प्रमुख भूमिका निभाई देशभर की कार्यकर्ता विभिन्न भागों से सत्याग्रह के रूप में आ रही थी गोवा की सीमा पर रहने व भोजन की व्यवस्था संघ के स्वयंसेवक ने की सत्याग्रहियों के अनेक जाटों का नेतृत्व संघ व जनसंख्या की प्रमुख कार्यकर्ताओं ने किया जिनमें से अनेक गोलियों से घायल हुई बहुत उन्हें पुर्तगाली जेल में मानवीय यात्राएं होगी अनेक स्वयंसेवकों का बलिदान हुआ इनमें 1955 में पंडित सच वाला पर राष्ट्रध्वज फहराने वाले गोवा के अध्यापक स्वयंसेवक मोहन रानडे को 14 वर्ष तक इंग्लिश वन पुर्तगाल की जेल में रहना पड़ा 1961 में हुए कारागार से मुक्त हुए मथुरा के स्वयंसेवक श्री अमीर चंद्रगुप्त का भी इसी अभियान में बलिदान हुआ जनसंघ की अखिल भारतीय नेता जगन्नाथ राव जोशी को अमन में यातनाओं को झेलना पड़ा उज्जैन के राजा भाव महाकाल का बलिदान हुआ सागर की वीरांगना सहोदर देवी घायल हुई इस प्रकार 1961 में गोवा को स्वाधीनता प्राप्त हुई