राष्ट्रीय युवा दिवस क्यो?और स्वामी विवेकानन्द National youth Day2024

 


भारत के युवा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 मे कोलकत्ता मे हुआ था।देश का भविष्य कहे जाने वाले युवाओं के लिए स्वामी जी की विचार धारा,आदर्श,और उनके कार्यों का माध्यम भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। इसीलिए  भारत मे 12 जनवरी 1984 से उनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप मे घोषित किया गया।स्वामी जी का बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था।उन्होंने शिक्षा ग्रहण के बाद 25 वर्ष मे सन्यास ले लिया था। युवाओं को प्रेरित करने वाले उनके विचार  
1-उठो जागो और तब तक मत रुको।
जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये।
2- खुद को कमजोर समझना सबसे बडा़ पाप है।
3-तुम्हें कोई पढा नहीं सकता कोई आध्यात्मिक नहींबना सकता।तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना है।आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नहीं।
4-सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है।फिर भी हर बार एक ही सत्य होगा।
5-बाहरी स्वभाव केवल अंदरुनी स्वभाव का बडा़ स्वरूप है।
6-ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियाँ पहले से हमारी हैं।वो हम ही हैं जो अपनी आँखो पर हाथ रख लेते हैं।और फिर रोते हैं।कि कितना अंधकार है।
7- विश्व एक विशाल ब्यायामशाला है।जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
8-दिल और दिमाग के टकराव मे दिल की सुनो। 
9-शक्ति जीवन है,निर्बलता मृत्यु है।विस्तार जीवन है संकुचन मृत्यु है।प्रेम जीवन है,द्वेष मृत्यु है।
10-किसी दिन जब आपके सामने कोई समस्या न आये तो आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं। 
ये विचार स्वामी जी के युवाओं को प्रेरणा और जीवन मे आगे बढने के लिए बल देते हैं।राष्ट्रीय युवा दिवस 2024 की थीम -सब कुछ आपके दिमाग मे है।(इट्स आल इन द माइंड) भारत के अध्यात्म और जीवन दर्शन के मार्ग दर्शन हेतु
11 सितम्बर 1893 का विश्व धर्म सम्मेलन के आयोजन हेतु अमेरिका के न्यूयार्क,वाशिंगटन,सेंटलुइस और शिकागो के बीच मतदान करना पडा़। और शिकागो शहर को ज्यादा मत मिला।स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो धर्म सम्मेलन मे कहा था मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं। जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया। 

हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं उसे देश से हूं जिसने सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी। मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इजरायल की वह पवित्र यादें संजो रखी है जिनमें उनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था। फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली।  मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी। और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है। 

मैं इस मौके पर श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया है।और जिसे रोज करोड़ों लोग दोहराते हैं। जिस तरह अलग-अलग जगह से निकली नदियां अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं। ठीक उसी तरह से मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है। यह रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं। लेकिन यह सब ईश्वर तक ही जाते हैं। स्वामी विवेकान्न्द जी को पश्चिम को वेदान्त,और योग के भारतीय दर्शन से परिचित कराने का श्रेय दिया जाता है। स्वामी जी ने शिकागो धर्म सम्मेलन में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। स्वामी विवेकानंद ने भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदांत दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश तक पहुंचाया। 

धर्म सम्मेलन मे स्वामी विवेकानंद को 2 मिनट का समय दिया गया था।किंतु उन्होंने प्रमुख रूप से अपने भाषण का आरंभ मेरे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों कहकर सम्बोधित किया। जिसके लिए उनको जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था। विवेकानन्द जी का मन प्रारम्भ से ही आध्यात्मिकता की ओर झुका था। वह अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे।विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। 

भारत में विवेकानंद को एक देशभक्त सन्यासी के रूप में माना जाता है।और उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।स्वामी विवेकानंद का मानना था कि बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बनकर अपने पैरों पर खड़ा करना है। स्वामी विवेकानंद ने प्रचलित शिक्षा को निषेधात्मक शिक्षा की संज्ञा देते हुए कहा है। कि आप उस व्यक्ति को शिक्षित मानते हैं जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हो तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो।पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती। जो चरित्र निर्माण नहीं करती, जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती,तथा जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती, फिर ऐसी शिक्षा से क्या लाभ?  स्वामी सैद्धांतिक शिक्षा के पक्ष में नहीं थे ।वे व्यावहारिक शिक्षा को व्यक्ति के लिए उपयोगी मानते थे। व्यक्ति की शिक्षा ही उसे भविष्य के लिए तैयार करती है। इसलिए शिक्षा में उन तत्वों का होना आवश्यक है जो उसके भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हो। 

स्वामी विवेकानंद जी के शब्दों में तुमको कार्य के सभी क्षेत्रों में व्यावहारिक बनना पड़ेगा। सिद्धांतों की शिक्षा ने संपूर्ण देश का विनाश कर दिया है। स्वामी शिक्षा के द्वारा लौकिक एवं पारलौकिक दोनों जीवन के लिए तैयार करना चाहते थे। लौकिक दृष्टि शिक्षा के संबंध में उन्होंने कहा है कि हमें शिक्षा चाहिए जिससे चरित्र का गठन हो।बालकों के बुद्धि का   विकास हो।और व्यक्ति स्वावलंबी बने। पारलौकिक दृष्टि से उन्होंने कहा है कि शिक्षा मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है। शिक्षा गुरुगृह में प्राप्त की जा सकती हैं।शिक्षक एवं छात्र का संबंध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए। सर्वसाधारण में शिक्षक का प्रचार एवं प्रचार किया जाना चाहिए।देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी शिक्षा जरुरी है।सामाजिक एवं राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू करनी चाहिए। शिक्षा ऐसी हो जो सिखाने वाले को जीवन संघर्ष से लड़ने की शक्ति दे।स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि मनुष्य को अपनी रुचि के अनुसार ही ब्यावसायिक शिक्षा को महत्व देना चाहिए। शिक्षा का उपयोग किस प्रकार चरित्र गठन के लिए किया जाना चाहिए इस विषय में विवेकानंद कहते हैं शिक्षा का मतलब यह नहीं है कि तुम्हारे दिमाग में ऐसी बहुत सी बातें इस तरह ठोस दी जाऐं जो आपस में लड़ने लगे।और तुम्हारा दिमाग उन्हें जीवन भर में हजम न कर सके। जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सकें, मनुष्य बन सके,चरित्र गठन कर सकें, और विचारों का सामंजस्य कर सके, वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है। स्वामी जी का कहना है कि हमारी सभी प्रकार की शिक्षाओं का उद्देश्य तो मनुष्य के इसी व्यक्तित्व का निर्माण करना होना चाहिए।परंतु इसके विपरीत हम केवल बाहर से पॉलिश करने का ही प्रयत्न करते हैं।शिक्षा का लक्ष्य अथवा उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व निर्माण से है।स्वामी विवेकान्द जी ने भारत मे रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जो शैक्षिक,आध्यात्मिक योग,वेदान्त और दर्शन के लिए प्रसिद्ध है।

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