सिक्ख सैनिक और सारागढी युद्ध Battle of saragarhi
वैसे तो इतिहास मे बहुत से युद्ध लडे़ गये हैं।मगर सारागढी़ का युद्ध कुछ अलग ही था।सारागढ़ी का युद्ध 12 सितंबर 1857 को लड़ा गया था। इस युद्ध में 36 सिख रेजीमेंट की चौथी बटालियन के 21 जाट सैनिकों ने 10000 से ज्यादा अफगान हमलावरों का सामना किया था।और शहीद होने से पहले 600 से ज्यादा अफगानिस्तानियों को मार गिराया था। यह युद्ध ब्रिटिश भारतीय सेना और अफगान कर्जजतियों के बीच लड़ा गया था। यह स्थान आज के समय में पाकिस्तान में स्थित है ।इतिहास में अद्भुभुत पराक्रम तथा वीरता दिखाने वाले सैनिकों में इन युद्ध के सिक्ख सैनिकों के नाम जाता है।
इस प्रसिद्ध युद्ध पर केसरी नाम की एक हिंदी फिल्म भी बन चुकी है। अभिनेता अक्षय कुमार अभिजीत फिल्म केसरी ने इस युद्ध को बखूबी से दिखाया है। 12 सितंबर 1897 को सुबह 8:00 बजे सारागढी किले के लेकर संतरी ने अंदर आकर यह खबर दी। कि हजारों पठानों का एक लश्कर झंडों और भालों के साथ उत्तर की तरफ सारागढी किले की तरफ बढ़ रहा है। संतरी के अनुसार उनकी तादात 10000 से ज्यादा थी। उस समय अंग्रेज सेना का नेतृत्व हवलदार ईशर सिंह कर रहे थे जब उन्होंने संतरी से यह खबर सुनी तो उसको फोरन अंदर बुला लिया। और तुरंत उन्होंने सिग्नल दिया। गुरमुख सिंह को आदेश दिया कि पास मे तैनात अंग्रेज अफसर को तुरंत हालात से अवगत कराया जाए। और उनसे पूछा जाए कि उनके लिए क्या आदेश है।
कर्नल हॉर्टन ने आदेश दिया कि होल्ड योर पोजिशन यानी अपनी जगह फर डटे रहो। अफगानी हमलावरों ने किले को एक घंटे के अंदर ही चारों तरफ से घेर लिया। और एक सैनिक हाथ में सफेद झंडा लिए किले की तरफ बढ़ा उसने चिलाकर कहा हमारा तुमसे कोई झगड़ा नहीं है।हमारी लड़ाई अंग्रेजों से है तुम तादाद में बहुत कम हो मर जाओगे।हमारे सामने हथियार डाल दो हम तुम्हारा ख्याल रखेंगे। और तुमको यहां से सुरक्षित निकाल जाने का रास्ता देंगे। लेकिन हवलदार ईशर सिंह ने इसका प्रस्ताव का जवाब और कजरिया को उनकी ही भाषा पश्तो में दिया। उनकी भाषा न सिर्फ शक्ति बल्कि गलियों से भी भरी हुई थी। उन्होंने कहा कि यह अंग्रेजों की नहीं महाराजा रणजीत सिंह की जमीन है।और हम इसकी आखिरी सांस तक रक्षा करेंगे। और फिर सभी सिख सैनिकों ने जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल का जयकारा किया ।जिससे सारागढी का किला गूंज उठा। हवलदार की ईशर सिंह ने जीवनपर्यंत युद्ध लड़ने का निर्णय लिया था। सारागढी का युद्ध सैन्य इतिहास के सबसे निर्णयाक युद्धों में से एक माना जाता है।हालांकि युद्ध में सारे जाट सिख सैनिक मारे गए लेकिन मरने से पहले उन्होंने 600 से ज्यादा अफगानों को मार दिया था। युद्ध के दो दिन बाद अन्य ब्रिटिश सैनिकों की मदद से फिर से उसी स्थान पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया। इस लड़ाई को दुनिया के सबसे बड़े लास्ट स्टैंड्स में स्थान दिया गया। जब सिक्ख सैनिकों के बलिदान की खबर लंदन पहुंची तो उस समय ब्रिटिश संसद का सत्र चल रहा था। सभी सदस्यों ने खड़े होकर इन 21 सैनिकों को स्टैंडिंग पोजीशन दिया। लंदन गजट की 11 फरवरी 1898 के अंक में ब्रिटिश संसद की टिप्पणी छपी थी। सारे ब्रिटेन और भारत को 36 सिक्ख रेजीमेंट के इन सैनिकों पर गर्व है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि जिस सेना मे सिक्ख सैनिक लड़ रहे हो उन्हें कोई नहीं हरा सकता है। इस खबर के मिलने के बाद महारानी बिक्टोरिया ने सभी 21 सैनिकों को इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट देने का ऐलान किया।
यह उस समय तक भारतीयों को मिलने वाला सबसे बड़ा वीरता पदक था। जो अब तक विक्टोरिया क्रास और आज के परमवीर चक्र के बराबर था। तब उस समय विक्टोरिया क्रॉस सिर्फ अंग्रेज सैनिकों को ही मिल सकता था। और वह भी सिर्फ जीवित सैनिकों को। 1911 में जाकर चार्ज पंचम ने पहली बार यह घोषणा की कि भारतीय सैनिक भी विक्टोरिया क्रॉस जीतने के हकदार होंगे। उस समय अंग्रेज हुकूमत ने इन 21 सैनिकों के आश्रितों को 500-500₹ और दो मुरब्बा जमीन जो कि आज 50 एकड़ के बराबर है।सरकार की तरफ से दी गई।सारागढी का यह युद्ध 21 सिक्ख सैनिकों के वीरता,साहस,पराक्रम और अदम्य साहस के लिए जाना जाता है।