सनातन मे श्राद्ध क्या है ,क्यों और कैसे दें?
भारतीय सनातन संस्कृति इसीलिए महान है।क्योंकि सनातन के अनुसार आत्मा अमर है। वह मरती नहीं है।केवल शरीर बदलती है।यहांँ जीते जी रिश्तों का महत्व तो है ही। परन्तु मरने के बाद भी उनकी आत्मा की सन्तुष्टि या उनके प्रति भूलोक मे श्रद्धा तीन पीढियों तक बनी रहती है।श्राद्ध ही श्रद्धा से बना है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य नारायण कन्या राशि में विचरण करते हैं तब पितृ लोक पृथ्वी लोक के सबसे अधिक नजदीक आता है। श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से है।जिसे मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार उनकी तिथि पर अन्न,फल-फूल,मिठाई,वस्त्र किसी ब्राह्मण,गरीबों या जरुरतमंदो को भोजन जलपान कराके,और वस्त्र आदि उन पित्रों के नाम से दान करते हैं। ताकि पित्रों की आत्मा को सन्तुष्टि या शान्ति मिले।और उनका आशिर्वाद श्राद्ध कराने वालों पर बना रहे। पितरों को किया जाने वाले श्राद्ध दो तिथियां पर किए जाते हैं।प्रथम मृत्यु या क्षय तिथि पर और द्वितीय पितृ पक्ष में जिस तिथि को पितृ की मृत्यु हुई है। अथवा जिस तिथि को उसका दाह संस्कार हुआ है। वर्ष में उस तिथि को एकोदष्टि श्राद्ध में केवल एक पितृ की...