विश्व दास प्रथा उन्मूलन दिवस क्या है?SERFDOM

 


दास प्रथा मनुष्य के द्वारा मनुष्य को ही अपना गुलाम बनाकर उससे जबरन कार्य करवाना अपनी मनमर्जी से कार्य करवाना, अर्थात मनुष्य के हाथों,मनुष्य का ही बड़े पैमाने पर उत्पीड़न दास प्रथा कहलाती है।शोषण की पराकाष्ठा अमेरिका, एशिया, यूरोप,तथा अफ्रीका आदि सभी भूखंडों में उदय होने वाली सभ्यताओं की इतिहास में दास प्रथा ने सामाजिक राजनीतिक, तथा आर्थिक व्यवस्थाओं के निर्माण एवं परिचालन में महत्वपूर्ण योगदान किया है। मुख्य रूप से जो सभ्यताएं तलवार के बल पर बनी बढी और टिकी थी। उनमें दास प्रथा नग्न रूप में पायी  जाती थी। पश्चिमी सभ्यता के विकास के इतिहास में दास प्रथा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पाश्चात्य सभ्यता के सभी युगों में यूनानी, रोमन, मध्यकालीन तथा आधुनिक समय में दासों ने सभ्यता की भव्य इमारतों को अपने पसीने और रक्त से खडा़किया है। यूनान इतिहास में दास प्रथा व्यवस्था का उल्लेख मिलता है। 900 ई पू के महाकाव्य ओडिसी तथा इडिया में दास प्रथा के अस्तित्व तथा उनसे उत्पन्न नैतिक पतन का उल्लेख है। 800 ई पू  के पश्चात यूनानी उपनिवेशों की स्थापना तथा उद्योगों के विकास के कारण दासों की मांग तथा पूर्ति में बहुत अभिवृद्धि हुई थी।दासों की प्राप्ति का मुख्य स्त्रोत युद्ध में प्राप्त बंदी,और माता-पिता द्वारा संतान विक्रय,अपहरण तथा संगठित दास बाजारों से क्रय - विक्रय द्वारा भी दास प्राप्त होते थे।या जो व्यक्ति अपना कर्ज नहीं दे पाता था उसे दास बना दिया जाता था।

एथेंस,साइप्रस, तथा सिमोस के दास बाजारों में अफ्रीका तथा यूरोपीय धातुओं के बदले दासों का क्रय विक्रय होता था। घरेलू कार्यों अथवा कृषि तथा उद्योग धन्धों से सम्बंधित कार्यों के लिए दास रखे जाते थे। दास अपने स्वामी की निजी संपत्ति समझी जाती थी।और निजी  संपत्ति के आधार पर ही उसका क्रय- विक्रय होता था।दासों तथा नागरिकों मे भेद का आधार प्रजाति न होकर सामाजिक स्थिति थी। अरस्तु के अनुसार दास प्रथा स्वामी तथा दास दोनों के लिए हितकर है। किंतु अफलातून ने दास प्रथा का विरोध किया था। क्योंकि इसे वह अनैतिक समझता था। रोमन साम्राज्य तथा व्यवस्था की स्थिरता एवं पतन का एक मुख्य कारण दास प्रथा ही थी। दासों का लगातार उत्पीड़न,और शोषण, हो रहा था।स्वाभाविक था ऐसी स्थिति में रोमन व्यवस्था की जुड़े सामाजिक दृष्टि से अधिक मजबूत न हो सकी। 73 ई पूर्व के करीब ग्लेडिएटर्स की वीरता स्पार्टाकस के नेतृत्व में हुआ रोमन का विघटन।दास प्रथा का विरोध करने से यूरोप तथा पश्चिमी एशिया पर होने वाले आक्रमणों से पश्चिमी यूरोप को पुनः युद्ध बंदियों की प्राप्ति होने लगी।
 मध्ययुग के अंतिम चरण में राष्ट्रवाद और कट्टर धार्मिकता के कारण से युद्ध बदियों के प्रति सहिष्णुता बढती गयी। और गैर ईसाईयों को यीशु का शत्रु घोषित कर दासों के रूप में उन्हें क्रय करने का आदेश एक बार सर्वोच्च धर्मगुरु ने स्वयं जारी किया था।15वीं शताब्दी के मध्य पुर्तगाली नागरिकों ने हब्सी,दास व्यापार में अरबों  का एकाधिकार समाप्त कर दिया।

 पहली बार अफ्रीकी दासों का व्यापार समुद्री मार्ग से आरंभ हुआ। पुर्तगाल में दासों की मांग निरंतर बढ़ती जा रही थी। क्योंकि युद्ध एवं औपनिवेशिक प्रचार-प्रसार के कारण पुर्तगाली जनसंख्या घटती जा रही थी। 16वीं शदी में पुर्तगाल के अनेक क्षेत्रों में अन्यों की अपेक्षा हब्सियों की संख्या अधिक हो गई थी। पश्चिमी सभ्यता के आधुनिक युग में प्रदार्पण करने पर एक बार फिर रोमन युग की तरह दास प्रथा तब बढने लगी जब साहसिक यूरोपीय नागरिकों ने अमेरिकी महाद्वीपों की खोज की तथा उपनिवेशों की नींव रखी। 
नई दुनिया के पश्चिमी द्वीप समूह मेक्सिको, पेरू ब्राजील आदि देशों में उत्पादन करने कपास तंबाकू जैसे वस्तुओं की मांग यूरोप में होने लगी।इन वस्तुओं का सबसे अधिक उत्पादन दासों की मेहनत के आधार पर होता था। इन क्षेत्र में पुर्तगालियों ने बड़े पैमाने पर व्यापार चलाया था। हब्शियों को वस्तुओं के बदले प्राप्त कर और जहाज में जानवरों की तरह ठूंस कर अटलांटिक पार कर अमेरिका ले जाया जाता था। वहां से जूट कपास चीनी चावल आदि से लदे जहाज यूरोप लौटते थे। इंग्लैंड,अमेरिका,तथा यूरोपीय पूंजीवाद का एक प्रमुख आधार दास व्यापार था। एक अनुमान के अनुसार सन 1680 से 1786 के बीच लाखों दासों को अटलांटिक पार ले जाया गया। दासों को अपने विभिन्न यूरोपीय स्वामियों की भाषा तथा धर्म को भी ग्रहण करना पड़ता था। संयुक्त राज्य में 18वीं, 19वीं शताब्दी में जब हब्सियों के विद्रोह की कुछ संभावना होने लगी तो वैधानिक रूप से हब्सियों के लिए शस्त्र धारण ढोल, नगाड़े, रखने तथा रात्रि में सड़कों पर निकलना वर्जित कर दिया गया था। 
उत्तरी अमेरिका तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के इतिहास में हब्सियों दासों का विशेष महत्व था।दास प्रथा के कारण ही वहां तंबाकू कपास आदि के उत्पादन मे  आश्चर्यजनक प्रगति हुई। तथा भूमि से अप्रत्याशित खनिज संपत्ति निकली।18 वीं शताब्दी में अमेरिकी महाद्वीपों के सभी देशों में दास प्रथा विरोधी आंदोलन प्रबल होने लगा। अमेरिका के उदारवादी उत्तर राज्यों में दास प्रथा का  विरोध जितना प्रबल होता गया उतनी ही प्रतिक्रियावादी दक्षिण के दास प्रथा राज्यों में दासों की प्रति कठोरता बढती जाने लगी।तथा यह तनाव इतना बढ़ गया कि अंततः उत्तरी तथा दक्षिणी राज्यों के बीच गृह युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में अब्राहम लिंकन के नेतृत्व में दास विरोधी एकतावादी उत्तरी राज्यों की विजय हुई। सन 1828 के अधिनियम के अनुसार संयुक्त राज्य में दास प्रथा पर खड़ी पुर्तगाली, ब्राज़ील,साम्राज्य का पतन हुआ।धीरे-धीरे अमेरिकी महाद्वीपों के सभी देशों से दास प्रथा का उन्मूलन होने लगा। 1890 में ब्रसेल्स के 18 देशों के सम्मेलन में हब्स दासों के समुद्री व्यापार को वैधानिक घोषित किया गया।1919 के सेंट जर्मन सम्मेलन में तथा 1926 के लीग आँव नेशंस के तत्वाधान में किए गए सम्मेलन में हर प्रकार की दासता तथा दास व्यापार की संपूर्ण उन्मूलन संबंधी प्रस्ताव पर सभी प्रमुख देशों ने हस्ताक्षर किये।
 ब्रिटिश अधिकृत प्रदेशों में सन 1833 में दास प्रथा समाप्त कर दी गई। और दासों को मुक्त करने के बदले में उनके मालिकों को 2 करोड़ पोंड हर्जाना दिया गया। अन्य देशों में कानून इसकी समाप्त के कानून इन वर्षों में लागू हुए भारत 1843, स्वीडन 1859, ब्राजील 1871, अफ्रीकन संरक्षित राज्य, 1897, फिलिपाइन 1902, और इस प्रकार से 20 वीं सदी में लगभग सभी राष्ट्रों से दास प्रथाओं को अमानवीय तथा अनैतिक संस्था मानकर उसके उन्मूलन के लिज कदम उठाए गये।और इस प्रकार से पाश्चत्य सभ्यता की समृद्धि तथा वैभव का एख मुख्य आधार रहा दास प्रथा का उन्मूलन हुआ।

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