जसवन्त सिंह रावत ( हीरो आफ नेफा) ने कैसे अकेले 300 चीनी सैनिकों को मारा ?Jaswant Singh Rawat Herro of Nefa ?1962

 


महावीर चक्र से सम्मानित जसवन्त सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को ग्राम बाड्यूं,ब्लाक वीरौंखाल,तहसील धुमाकोट,जिला पौडी़ गढवाल,मे हुआ था।1961 मे वे भारतीय सेना के चौथी गढवाल राइफल्स मे भर्ती हुए।इधर चीन ने तिब्बती विद्रोह के बाद जब दलाई लामा ने भारत मे शरण ली तो भारत चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं की एक श्रृखला कर शुरू दी।भारत ने फारवर्ड नीति के तहत मैकमोहन रेखा से लगी सीमा पर अपनी सैनिक चौकियां रखी थी।चीन ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किये। यह लडा़ई 14000 फीट से अधिक की ऊंँचाई पर लडी़ गयी।चौथी गढवाल भी मोर्चे पर थी।इस युद्ध मे राइफलमैन जसवन्तसिंह रावत ने नूरानाग रणक्षेत्र मे अकेले 72 घण्टे और अन्तिम सांस तक युद्ध कर 300 से अधिक चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारा था।
 उन्होने अकेले 72 घण्टे तक चीनी सेना को रोककर रखा था। उनके साथी त्रिलोक नेगी,और गोपाल गुंसाई कवरिंग फायर दे रहे थे।और मशीन गन से ग्रेनेड फेंक रहे थे।लेकिन फायरिंग के दौरान दोनों शहीद हो गये। जसवन्त रावत भी घायल हुए थे। उनकी कम्पनी के काफी जवान मारे गये। लेकिन जसवन्त ने हिम्मत नहीं हारी जसवन्त डटे रहे।वे अलग -अलग पोस्टों से फायरिंग करते रहे। कभी मशीन गन,कभी राइफल से तो कभी ग्रेनेड फेंककर।चीनी सेना ऊपर चढती और जसवन्त सिंह हमला करते। ऐसा करते -करते उन्होने चीनी सेना को भ्रम मे डाल दिया।और 72 घण्टे तक चीनी सेना को रोके रखा।
चीनी सेना को ये लगा कि यहां बडी़ मात्रा मे भारतीय  सैनिक हैं।परन्तु जसवन्त ने तो अकेला मोर्चा सम्भाल रखा था। वे कभी इस पोस्ट से तो कभी उस पोस्ट से फायरिंग कर रहे थे। इस दौरान उन्होने चीन के 300 से ज्यादा सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
इस युद्ध मे उनको रसद और भोजन उपलब्ध करवाने वाली सेला और नूरा नाम की दो लड़कियां थी।
जो मौनपाल का कार्य करती थी।चीनियों द्वारा पहले सेला को पकडा़ गया और पूछताछ के बाद सेला की हत्या कर दी गयी।और नूरा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भागते हुए पकड़ लिया गया।चीनी सेना को ये पता चल गया कि ऊपर पहाडी़ पर सेना नहीं।बल्कि जसवन्त ने अकेला मोर्चा सम्भाला है। फिर चीनियों ने जसवन्त की स्थिति पर हमला किया।फिर भी जसवन्त डटे रहे।और अन्त मे चीनी सेना के करीब पहुंचते ही खुद को गोली मार दी।
बाद मे सेला के नाम  से वहांँ।सेला दर्रा,सेला सुरंग,और सेला झील का नाम सेला के बलिदान की याद मे रखा गया है।और नूरा के नाम पर नूरा जलप्रपात रखा गया है।वहां सेना की चौकी का नाम जसवन्त रावत की बहादुरी,पर आतिथ्य जसवन्त गढ,और जसवन्त गढ युद्ध स्मारक बनाया गया। उन्हे दिया गया एक और सम्मान यह है कि।शहीद होने के बाद भी वे भारतीय सेना मे सेवा करते रहे। और उनको पदोन्नति भी मिलती रही।
उन्हे भारत सरकार ने महावीर चक्र से सम्मानित किया।उनके जूते हर रोज पाँलिस होते रहे।और हर रोज उनकी वर्दी प्रेस होती रही।उनकी बटालियन को भी बैटल आँनर नूरानाग का सम्मान दिया गया।जो किसी भी सेना इकाई को दिया जाने वाला एक मात्र युद्ध सम्मान है। बाद मे चीनी सेना ने उनके सम्मान मे उनकी मूर्ति बनाकर भारत को लौटाई।ऐसे वीरभूमि उत्तराखण्ड मे जन्मे महापराक्रमी,योद्धा,महावीर चक्र से सम्मानित, हीरो आफ नेफा जसवन्त सिंह रावत की जयन्ती पर उन्हें नमन।

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