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Showing posts from August, 2023

भारतीय संस्कृति में रक्षा बंधन क्यों है महत्वपूर्ण?Raksha bandhan2024

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  रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का प्रमुख त्यौहार है।यह त्यौहार भाई बहन के बीच अगाध स्नेह एवं अटूट विश्वास का प्रतीक है। रक्षाबंधन एक सामाजिक पौराणिक धार्मिक और ऐतिहासिक है।विश्वास की भावना के धागे से बना एक ऐसा पावन बंधन है जिसे रक्षाबंधन के नाम से केवल भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल और मॉरिशस में भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।राखी का त्योहार संपूर्ण भारतवर्ष में सदियों से मनाते चले आ रहे हैं।आइये जानते हैं, राखी से जुड़ा इतिहास-  भविष्य पुराण में राखी का वर्णन मिलता है जब देव और दानवों में युद्ध शुरू हुआ था।तब दानव भारी होते नजर आने लगे।भगवान इंद्र घबरा कर बृहस्पति के पास गए वहां बैठी इंद्र की पत्नी इन्द्राणी सब सुन रही थी।उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया संयोग से यह दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था। कहते हैं  कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे के मंत्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन से रक्षा धागा बांँधने की प्रथा चली आ रही है।  राजा बलि को भी  माता लक्ष्मी ने रक्षासूत्र बांधा था।दानव राजा बलि...

विश्व हाकी जादूगर मेजर ध्यानचन्दसिंहHockey

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  विश्व हॉकी के जादूगर मेजर  ध्यानचंद सिंह का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी माता का नाम शारदा सिंह और पिता का नाम सोमेश्वर सिंह था। पिताजी भारतीय ब्रिटिश सेना मे सुबेदार थे।और हाकी खेलते थे।इनके बडे़ भाई रूप सिंह भी हाकी के खिलाड़ी थे।1922 मे वे भारतीय ब्रिटिश सेना मे भर्ती हुए।1922  से 1926 तक उन्होने सेना की तरफसे हाकी खेली। 13 मई1926में मेजर ध्यानचंद सिंह ने न्यूजीलैण्ड मे सेना की टीम से मैच खेले।1932 मे उन्होने स्नातक की पढ़ाई विक्टोरिया कॉलेज ग्वालियर से पूरी की। मेजर ध्यानचंद सिंह हाकी के इतने कुशल खिलाड़ी थे। कि जब वह खेलते थे तो गेंद उनके हाकी स्टिक से चुंबक की तरह चिपक जाती थी। और लोगों को शक रहता था कि उन्होंने अपनी स्टीक में चुंबक लगा रखी है।लेकिन उनके इसी हॉकी खेलने के अंदाज से लोग उनके हाकी के कायल थे।उनकी हॉकी स्टिक में चुम्बक के शक के चलते एक बार नीदरलैंड में मैच के बाद उनकी हॉकी स्टिक तोड़कर देखी गई।जिसमे कोई चुम्बक नहीं मिला। मेजर ध्यान सिंह से ध्यान चन्द नाम मेजर ध्यान सिंह की जब ड्यूटी समाप्त हो जाती तो वे रात को चान्दनी र...

महिला समानता दिवस क्या है?women'sEquality day2024

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26 अगस्त को महिला समानता दिवस (Women's Equality day) है।यह दिन महिलाओं के अधिकारों और समाज में उनके योगदान को सम्मानित करने का अवसर प्रदान करता है वैसे तो आज विश्व भर मे महिलायें पुरषों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर चल रही हैं।घर के चूल्हे से लेकर आसमान की उडा़न,या ट्रक ड्राइवर से लेकर अन्तरिक्ष अनुसंधान तक, सभी जगह अवसर मिलने पर महिलायें अद्वितीय हैं। पुरुषवादी सोच के चलते महिलाओं को समानता से नहीं आंका जाता है।  जिससे अभी भी महिलायें समानता के लिए लड़ रही हैं। अन्तर्राष्ट्रीय महिला समानता दिवस हर वर्ष 26 अगस्त को मनाया जाता है। यह सर्वप्रथम अमेरिका मे 1853 में महिलाओं ने शादी के बाद संपत्ति पर अधिकार मांगने की शुरुआत की थी।  उस वक्त पश्चिमी देशों में महिलाओं को बहुत कम अधिकार दिए जाते थे। अर्थात महिलाएं पुरुषों की गुलाम समझी जाती थी। 1890 में अमेरिका में नेशनल अमेरिकन वूमेन सफरेज संगठन का गठन किया गया। यह संगठन महिलाओं के हितों के लिए लगातार काम कर रहा था। और 1920 में महिलाओं को अमेरिका में वोटिंग का अधिकार मिल गया।1971मे अमेरिकी संसद ने हर साल 26 अगस्त को वूमेन इक्वलिटी डे अ...

भारत के चन्द्रयान-3 की सफलता कैसेऔर क्यों?

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  भारत का चांद के दक्षिणी धुर्व पर साफ्ट लैण्ड करना बहुत बडी़ उपलब्धि है।पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों की नजर चांद के दक्षिणी धुर्व पर लंबे समय से है।वैज्ञानिकों का मानना है कि चांद पर हमेशा अंधेरे मे दिखने वाले क्रेटर्स मे पानी जमा हो सकता है। इस पानी का प्रयोग भविष्य मे राकेट फ्यूल के रुप मे हो सकता है। पृथ्वी से चन्द्रमा तक 3.84 लाख किमी और पृथ्वी तथा चन्द्रमा दोनों की कक्षाओं के चक्कर लगाकर कुल दूरी 55लाख किमी दूरी तय करने के बाद 40 दिन का इन्तजार खत्म करके भारत का चन्द्रयान-3 लैंडर विक्रम चांद की धरती पर कामयाबी के साथ 23 अगस्त 2023 को उतर गया।  बार-बार साफ्ट लैंडिंग  की बात हो रही थी।यह आसान न था। विक्रम लैण्डर 10 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चांद की सतह पर आकर बैठा है। चांद की सतह पर उतरने से पहले विक्रम लैंडर की रफ्तार कम करना भी एक चुनौती था। इसके लिए चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर को 125 * 25 किलोमीटर के  ऑर्बिट में रखा गया था इसके बाद इसे डिआर्बिट किया गया।इसके बाद जब उसे चांद की सतह की ओर भेजा गया तब उसकी रफ्तार 6000 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा थी।इसके बाद कुछ...

विश्व दास प्रथा उन्मूलन दिवस क्या है?SERFDOM

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  दास प्रथा मनुष्य के द्वारा मनुष्य को ही अपना गुलाम बनाकर उससे जबरन कार्य करवाना अपनी मनमर्जी से कार्य करवाना, अर्थात मनुष्य के हाथों,मनुष्य का ही बड़े पैमाने पर उत्पीड़न दास प्रथा कहलाती है।शोषण की पराकाष्ठा अमेरिका, एशिया, यूरोप,तथा अफ्रीका आदि सभी भूखंडों में उदय होने वाली सभ्यताओं की इतिहास में दास प्रथा ने सामाजिक राजनीतिक, तथा आर्थिक व्यवस्थाओं के निर्माण एवं परिचालन में महत्वपूर्ण योगदान किया है। मुख्य रूप से जो सभ्यताएं तलवार के बल पर बनी बढी और टिकी थी। उनमें दास प्रथा नग्न रूप में पायी  जाती थी। पश्चिमी सभ्यता के विकास के इतिहास में दास प्रथा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पाश्चात्य सभ्यता के सभी युगों में यूनानी, रोमन, मध्यकालीन तथा आधुनिक समय में दासों ने सभ्यता की भव्य इमारतों को अपने पसीने और रक्त से खडा़किया है। यूनान इतिहास में दास प्रथा व्यवस्था का उल्लेख मिलता है। 900 ई पू के महाकाव्य ओडिसी तथा इडिया में दास प्रथा के अस्तित्व तथा उनसे उत्पन्न नैतिक पतन का उल्लेख है। 800 ई पू  के पश्चात यूनानी उपनिवेशों की स्थापना तथा उद्योगों के विकास के कारण दासों की म...

जानिए वेस्ट प्लास्टिक कचरे का कैसे होगा सदउपयोग?

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  प्लास्टिक वेस्ट का निस्तारण विश्व की सबसे बडी समस्या है।प्लाई बोर्ड का विकल्प तैयार होने से ऐसे प्लास्टिक वेस्ट का भी दोबारा प्रयोग संभव हो सका जो अब तक कचरा ही था।यह एक ऐसा अनुसंधान है जो भविष्य के लिए उपयोगी है। जिस प्लास्टिक के कचडे़।को देखकर कबाडी़ भी मुंह फेर लिया करते हैं। जैसे चिप्स,बिस्कुट पैकेट,दूध-लस्सी व शीतल पेय के ट्रेटा पैक की बहुस्तरीय पैकिंग और प्लास्टिक की बेकार हो चुकी बोरियों का प्रयोग कर आई आई टी कानपुर मे इंक्यूबेटेड कंपनी नोवा अर्थ ने इस प्रकार के प्लास्टिक कचरे को उपयोगी बना दिया है।कम्पनी ने ऐसा हार्ड बोर्ड तैयार किया है। जो भवनों के निर्माण मे प्रयुक्त होने वाली शटरिंग का सर्वश्रेष्ठ विकल्प है।यह बोर्ड अग्निरोधी होने के साथ ही पानी मे डूबे रहने पर भी खराब नहीं होता। मैकेनिकल इंजीनियर सार्थक गुप्ता और शाहिद जमाल ने मिलकर वेस्ट को बेस्ट बनाने का फार्मूला तैयार किया है।सार्थक ने इंजीनियरिंग करने के बाद न्यूक्लियर टरबाइन क्षेत्र मे कार्य किया।कानपुर शहर मे बिखरे प्लास्टिक कचरे को देखकर सार्थक के मन मे ख्याल आया कि क्यों न इस कचरे के निस्तारण पर कार्य किया जाय...

जसवन्त सिंह रावत ( हीरो आफ नेफा) ने कैसे अकेले 300 चीनी सैनिकों को मारा ?Jaswant Singh Rawat Herro of Nefa ?1962

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  महावीर चक्र से सम्मानित जसवन्त सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को ग्राम बाड्यूं,ब्लाक वीरौंखाल,तहसील धुमाकोट,जिला पौडी़ गढवाल,मे हुआ था।1961 मे वे भारतीय सेना के चौथी गढवाल राइफल्स मे भर्ती हुए।इधर चीन ने तिब्बती विद्रोह के बाद जब दलाई लामा ने भारत मे शरण ली तो भारत चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं की एक श्रृखला कर शुरू दी।भारत ने फारवर्ड नीति के तहत मैकमोहन रेखा से लगी सीमा पर अपनी सैनिक चौकियां रखी थी।चीन ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किये। यह लडा़ई 14000 फीट से अधिक की ऊंँचाई पर लडी़ गयी।चौथी गढवाल भी मोर्चे पर थी।इस युद्ध मे राइफलमैन जसवन्तसिंह रावत ने नूरानाग रणक्षेत्र मे अकेले 72 घण्टे और अन्तिम सांस तक युद्ध कर 300 से अधिक चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारा था।  उन्होने अकेले 72 घण्टे तक चीनी सेना को रोककर रखा था। उनके साथी त्रिलोक नेगी,और गोपाल गुंसाई कवरिंग फायर दे रहे थे।और मशीन गन से ग्रेनेड फेंक रहे थे।लेकिन फायरिंग के दौरान दोनों शहीद हो गये। जसवन्त रावत भी घायल हुए थे। उनकी कम्पनी के काफी जवान मारे गये। लेकिन जसवन्त ने हिम्मत नहीं ह...

विश्व मानवता दिवस World Humanitarianday

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  विश्व मानवता दिवस प्रत्येक वर्ष 19 अगस्त को मनाया जाता है।गिरते मानव मूल्य इस दिवस की विशेष प्रासंगिकता एवं उपयोगिता है। यह दिवस उन लोगों को याद करने का है।जिन्होंने मानवीय उद्देश्यों के कारण दूसरों की सहायता के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी।यह दिवस विश्वभर मे मानवीय कार्यों एवं मूल्यों को प्रोत्साहन दिये जाने के अवसर के रुप मे भी देखा जाता है।इसको मानने का निर्णय संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्वीडिश प्रस्ताव के आधार पर किया गया।इस दिवस को विशेष रुप से 2003 मे संयुक्त राष्ट्र के बगदाद,इराक स्थित मुख्यालय पर  हुए हमले की वर्षगांठ के रूप मे मनाया जाना आरम्भ किया गया। उस समय संयुक्त राष्ट्र संघ के 22 सहकर्मी इस मुख्यालय के मारे गये थे। जो निंदनीय है।  विश्व मे मानवीय कार्यों एवं मानव मूल्यों को प्रेरित करने वाली भावना का जश्न मनाने का भी एक अवसर है।इसका उद्देश्य उन लोगों की पहचान करना है।जो दूसरों की मदद करने के लिए विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।एवं मानवता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।आज सारी दुनिया सबसे ज्यादा आतंकवाद से पीडि़त है।इसके साथ-साथ मानवीय मूल्यों पर ...

बाजीराव पेशवा कोई युद्ध न हारने वाला मराठा योद्धा।

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   बाजीराव पेशवा  प्रथम का जन्म 18 अगस्त 1700 को हुआ इनके पिता का नाम विश्वनाथ पेशवा था।तथा माता का नाम राधाबाई इनके पिता पेशवा बालाजी विश्वनाथ जी छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा थे। बचपन से बाजीराव को घुड़सवारी करना, तलवार भाला,बनेठी, लाठी, बन्चदूक आदि लाने का शौक था। 13 -14 वर्ष जब बच्चों के खेलने का समय होता है तो वे अपने पिता के साथ घूमते रहते थे।पिता के साथ घूमने से वह दरबार के रीति -रिवाजों को आत्मसात करते रहते थे। यह क्रम 20 वर्ष की आयु तक चलता रहा जब बाजीराव के पिता का अचानक निधन हो गया तो मात्र 20 वर्ष की आयु के बाजीराव को साहू जी महाराज ने पेशवा बना दिया।पेशवा बनने के बाद वे अगले 20 वर्षों तक मराठा साम्राज्य को बढाते रहे।अत्यन्त प्रभावशाली,उच्च रणकौशल,साहसी और कुशल नेतृत्व करने की क्षमता से उन्होंने मराठा साम्राज्य को भारत मे एक सर्वशक्तिमान साम्राज्य बना दिया।वे हर तरह से शस्त्र चलाने मे निपुण थे।रिचर्ड टैंपिल ने बाजीराव के बारे मे लिखा है।कि सवार के रूप में बाजीराव को कोई भी मात नहीं दे सकता था। युद्ध मे वह सदैव अग्रगामी रहता था। यदि कोई दुस्साहस होता तो वह सदै...

रैडक्लिप रेखा/Raidkilip line

 भारत के विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जो सीमा रेखा है उसे रेडक्लिप कहते हैं।14 अगस्त 1947 को भारतीय उपमहाद्वीप का विभाजन14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान (मुस्लिम राष्ट्र) जबकि भारत (रिपब्लिक आफ इण्डिया)मे घोषणा लार्ड माउन्टबेटन ने किया।उसके बाद सीमा विभाजन हुआ।गुजरात के कच्छ के रण से लेकर जम्मू कश्मीर तक एक अन्तर्राष्ट्रीय सीमा तक फैली है।यह रेखा इस आयोग के अध्यक्ष सिरिल रेडक्लिप के नाम से है। रैडक्लिप रेखा 17 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा बन गई।दोनो देशों के बीच यह सीमा 3323 किमी लम्बा है।यह सीमांकन 12 अगस्त को पूरा हुआ।और 17 अगस्त 1947 से लागू हुआ।इस पर भारत के4 राज्य जम्मू कश्मीर,पंजाब,राजस्थान,गुजरात राज्य है। इसमे सबसे छोटा जिला श्री गंगानगर,और सबसे बडा़ जिला जैसलमेर है।इसका अन्तिम बिन्दु बखासर शाह गढ बाड़मेर है।

महर्षि अरविन्द क्रान्तिकारी,योगी और एक शिक्षाविद

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महर्षि अरविन्द घोस स्वतन्त्रता  संग्राम के क्रान्तिकारी,एक योगी,शिक्षाविद और एक दार्शनिक थे।वे युवा अवस्था मे क्रान्तिकारी बन गये।और फिर एक योगी।अरविन्द के अनुसार शिक्षा वह है जो शिक्षार्थी को कर्मठ नागरिक बनाये एवं समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने मे समर्थ हो।अरविन्द ने अपने क्रान्तिकारी दस्तावेज मे कहा।कि कोई भी ब्यक्ति या राष्ट्र तब तक कमजोर नहीं हो सकता जब तक वह कमजोर होना स्वीकार न करे।कोई ब्यक्ति या राष्ट्र तब तक नहीं मिट सकता, जब तक वह अपनी इच्छा से मृत्यु का वरण न कर दे। अरविन्द का जन्म 15 अगस्त, 1872 को डा. कृष्णधन घोष के घर में हुआ था। उन दिनों बंगाल का बुद्धिजीवी और सम्पन्न वर्ग ईसाइयत से अत्यधिक प्रभावित था। वे मानते थे कि हिन्दू धर्म पिछड़ेपन का प्रतीक है। भारतीय परम्पराएँ अन्धविश्वासी और कूपमण्डूक बनाती हैं। जबकि ईसाई धर्म विज्ञान पर आधारित है। अंग्रेजी भाषा और राज्य को ऐसे लोग वरदान मानते थे।डा. कृष्णधन घोष भी इन्हीं विचारों के समर्थक थे। वे चाहते थे कि उनके बच्चों पर भारत और भारतीयता का जरा भी प्रभाव न पड़े। वे अंग्रेजी में सोचें, बोलें और लिखें। इसलिए उन्होंने अरविन्द...

अखण्ड भारत(जम्बूद्वीप) मे कितने देश थे?Akhand Bharat

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  प्राचीन काल मे सम्पूर्ण जम्बूद्वीप के आस-पास 6 द्वीप थे।थेपलक्ष्य,शाल्मलि,कुश,क्रौंच,शाक, पुष्कर ,जम्बूद्वीप धरती के मध्य मे स्थित है।और इसके मध्य मे इलावृत्तवर्ष नामक देश है।इस इलावृत्त के मध्य मे है सुमेरू पर्वत,और इसके दक्षिण मे कैलाश पर्वत के पास भारत वर्ष है।पश्चिम मे कुतुमाला,पूर्व मे हरिवर्ष,(रुस)भद्रावर्ष(जावा से ईरान तक)उत्तर मे रम्यक वर्ष,अर्थात मिस्र,,सऊदी अरब,ईरान,इराक,इजराइल,कजाकिस्तान,रूस मंगोलिया,चीन,वर्मा,इंडोनेशिया,मलेशिया,जावा,सुमात्रा,अफगानिस्तान,आदि यह सम्पूर्ण क्षेत्र जम्बूद्वीप मे आता था। वर्तमान में इस भू भाग को  एशिया महाद्वीप कहते हैं।यही आर्य संस्कृति थी।यहां के लोग वेदपूजक थे।आज भी अनुष्ठानों मे इस संकल्प को दोहराते हैं।जम्बूद्वीपे भरत खण्डे,आर्यवृत्त राज्ये नगरे..... इसीलिए भारतीय संस्कृति विश्व विजयी संस्कृति है। अखण्ड भारत की सीमायें हिमालय से हिन्दमहासागर तक ईरान से इंडौनेशिया,जावा सुमात्रा तक फैली हुई थी।महाभारत और रामायण काल मे मलेशिया,इंडौनिशिया,थाईलैण्ड,फिलीपींस,वियतनाम कम्बोडिया, जैसे देश भी भारत वर्ष के अटूट हिस्से थे।इसकी सीमायें इतनी वि...

खुदीराम बोस स्वाधीनता क्रान्तकारी/khudiram

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  भारत के स्वाधीनता संग्राम का इतिहास क्रान्तिकारियों के कारनामों से भरा पडा़ है।जिनमे से एक हुए महान क्रान्तिकारी खुदीराम बोस मात्र 18 साल की उम्र मे फांसी पर चढे खुदी राम बोस।जिनकी शहादत ने सम्पूर्ण भारत मे क्रान्ति की लहर पैदा कर दी।इनका बलिदान पश्चिम बंगाल के लोक गीतों मे मुखरित हुआ।खुदीराम बोस  का जन्म 3 दिसम्बर 1889को पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के मोहोबनी गांव मे हुआ था। पिता त्रिलोक्य नाथ और माता का लक्ष्मी प्रिय देवी था।माता पिता का साया बचपन मे ही चला गया।उनका लालन -पालन उनकी बडी़ बहिन ने ही किया।खुदीराम ने विद्यार्थी जीवन मे ही राजनीतिक गतिविधियों मे भाग लेना प्रारम्भ कर दिया था। पश्चिम बंगाल मे 1902 मे अरविन्द घोस के साथ भगिनी निवेदिता भी भारत की स्वाधीनता के लिए सभायें और  जन जागरण का कार्य कर रहे थे।वे युवाओं की गुपचुप बैठकें करते थे।खुदीराम भी उन युवाओं मे शामिल थे।जो भारत की स्वाधीनता के लिए इन बैठकों मे शामिल होते थे।उनके अन्दर देशभक्ति कूटकूटकर भर गयी।1905 मे अंग्रेजों ने बंगाल विभाजन हेतु कुटिल चाल चली गयी।जो असफल हुई।खुदीराम बोस 9वीं कक्षा से पढाई छ...

एटलस माँथ दुनिया का सबसे खूबसूरत कीट और बहुत उपयोगी

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  बेहद आकृषक और बहुत उपयोगी एटलस माँथ विश्व का सबसे बडा़ एटलस माँथ पिथोरागढ मे मिला है।पिथौरागढ़ जिले में वन विभाग के सहयोग से नेशनल माँथ सप्ताह के अंतर्गत इसकी शुरुआत हो गई है। विंग्स फाउंडेशन ने पहली बार नेशनल माँथ गणना सीजन एक शुरू किया है। इसके तहत विंग्स फाउंडेशन ने नेशनल माँथ सप्ताह में जिले में मिलने वाले माँथ की खोजबीन कर उनकी जानकारी जुटाई। पिथौरागढ़, मुंसियारी, मूनाकोट, डीडीहाट, अस्कोट क्षेत्र में फाउंडेशन के सदस्यों ने माँथ की खोजबीन की। जिले में मिलने वाले माँथ के बारे में जानकारी जुटाई गई इसके साथ ही जिन ब्यक्तियों ने अपने क्षेत्र में मिलने वाली माँथ की फोटो या कोई जानकारी दी उन्हें प्रमाण पत्र दिए गए।  विश्व में माँथ की  लगभग 16000 प्रजातियां पाई जाती है इनमें से 10000 प्रजातियां भारत में  ही हैं। पिथौरागढ़ में पहली बार माँथ के बारे में जानकारी जुटाई गई।विंस फाउंडेशन के सदस्यों को पिथौरागढ़ में माँथ दिखाई दी। इसे एंपरर ऑफ डार्कनेस भी कहा जाता है। इसकी उम्र 20 से 25 दिन तक होती है।इसके पंखों का फैलाव 24 सेंटीमीटर तक होता है।यह अपने अण्डे नींबू, अमरुद, और...

सात युद्ध लड़ने वाली बीरबाला तीलू रौतेली का जन्म कब हुआ?Veerbala Teelu Rauteli

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  बीर बाला तीलू रौतेली का जन्म 8 अगस्त 1661 को पौड़ी गढ़वाल चौंदकोट पट्टी के गुराड़ गांव में भोप सिंह रावत के घर हुआ था।भोपसिंह रावत गढवाल नरेश के प्रमुख सभासदों मे से एक थे। तीलू बचपन से ही अदभुद प्रतिभा से युक्त, बड़ी साहसी, निडर और  दृढ़ इच्छा शक्ति वाली बालिका थी।उसके अतुलनीय साहस, वीरता के कारण से उसे गढवाल की झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम से भी जाना जाता है। गढवाल में कत्यूरों का हमला  लगातार होता रहता था। एक हमले मे तीलू रौतेली के दोनों भाइयों द्वारा कत्यूरी सेना के सरदार को हराकर उसका सिर काटकर गढ़ नरेश को प्रस्तुत करने पर गढ नरेश ने दोनों भाइयों को  42-42 गांव जागीर के रूप मे दे दिये थे। फतेह सिंह का मुख्यालय पड़सोली पट्टी गुजडू़ और भगतसिंह रावत का मुख्यालय सिसई पट्टी खाटली मे था। जहां वर्तमान मे इनके वशंज है।कत्यूरों के हमले लगातार होते ही रहते थे।भोपसिंह रावत भी कत्यूरों के साथ युद्ध मे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये। इसके प्रातिशोध मे तीलू के दोनों भाई (भगतसिंह रावत, फतेहसिंह रावत )और मंगेतर भवानीसिंह नेगी भी कत्यूरों के साथ युद्ध मे लड़ते -लड़ते वी...

अमेरिका ने वापस किये भारत के 105 पुरावशेष

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  भारत से अतीत मे चोरी करके तस्करों द्वारा विभिन्न देशों को बेची गई भारत की प्राचीन वस्तुवें और कला कृतियां अब विदेशों से वापस भारत आने लगी हैं।इसी क्रम मे अमेरिका भारत को दूसरी,तीसरी ईस्वी से लेकर 18वीं और 19वीं शताब्दी तक की कुल 105 भारतीय पुरावशेषों को भारत को वापस भेज रहा है।अमेरिका में भारत के राजदूत रणजीतसिंह संधू महावाणिज्य दूत रणबीर जयसवाल और मैनहैटन जिला अटार्नी कार्यालय के अधिकारियों की उपस्थिति मे भारतीय वाणिज्य दूतावास में आयोजित एक विशेष प्रत्यावर्तन समारोह में अमेरिका द्वारा कुछ मूल्यवान भारतीय पुरावशेष सौंपे गये। भारत और अमेरिका भविष्य में सांस्कृतिक कलाकृतियों की अवैध तस्करी को रोकने के उद्देश्य से एक सांस्कृतिक संपत्ति समझौता पर काम करने के लिए भी सहमत हुए।समझौता होमलैंड सिक्योरिटी और दोनों देशों की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच घनिष्ठ सहयोग को बढ़ावा देगा। जिससे उनके द्विपक्षीय संबंध और बढ़ेंगे। ये वस्तुयें भारत के महावाणिज्य दूतावास के माध्यम से भारत पहुंच रही हैं।105 कलाकृतियां भारत में उनकी उत्पत्ति के संदर्भ में व्यापक भौगोलिक विस्तार का प्रतिनिधित्व करती है...

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस क्या है?/Handloom day

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  राष्ट्रीय हथकरघा दिवस यह भारत मे हर वर्ष 7अगस्त को मनाया जाता है। हथकरघा यानि हाथ से चलाना,बनाना,इसकी शुरुआत 2015 से हुई। इसमे आत्म निर्भर भारत का संकल्प लेकर हथकरघा उद्योग को मजबूत करना।और लोकल फोर भोकल,भारत मे कृषि के बाद हथकरघा ही दूसरा रोजगार प्रदाता बडा़ क्षेत्र है। इसमे 35.22लाख कर्मचारी रजिस्टर्ड हैं।यह भारत मे लाखों लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है। भारत मे 2.38 लाख हथकरघे उद्योग हैं।इसमे 70 प्रतिशत के लगभग महिलायें हैं।इसमे 2015 के बाद 184 उत्पाद श्रेणियों हेतु 1590 रजिस्ट्रेशन हुए। इस क्षेत्र मे भारत प्रतिवर्ष लगभग 2000करोड़ रुपये का निर्यात करता है।हथकरघा दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लघु और मध्यम उद्योग को बढावा देना है।बुनकर समाज का सम्मान और भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास मे उनके योगदान को सराहना भी इस दिवस का उद्देश्य है।आज भारत मे हथकरघा से बनी वस्तुएं देश और विदेशों के कोने कोने में जा रही हैं।और इससे भारत को अलग पहचान भी मिल रही हैं।अपने देश के अंदर बुनकर समाज को भी आगे बढ़ने का मौका मिल रहा है। सन 1905लॉर्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन की घोषणा की थी। इसका प्रतिकार करने क...

ग्रहयुद्ध से बर्बाद सीरिया ने क्यों अपनाया योग?

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  पिछले 12 सालों से ग्रहयुद्ध झेल रहे सीरिया बुरी तरह से बर्बाद हो गया है।इस युद्ध ने यहां के लोगों का सब कुछ छीन लिया है। उन्हें आर्थिक और शारीरिक कष्ट तो हुआ ही साथ ही साथ जो मानसिक कष्ट हुआ उसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। इस मुश्किल समय में सीरिया के लोगों का सहारा बना भारतीय योग। एक रिपोर्ट के अनुसार इन दिनों पूरे सीरिया में जंगलों, खेल के मैदानों, और स्टेडियमों  में बच्चे और वयस्क नियमित तौर पर योग कर रहे हैं।  उनकी हथेलियां प्रार्थना के लिए जुड़ती हैं। और भुजाएं पीछे की ओर झुकते हैं। वह सूर्य नमस्कार का जाप करते हैं इसी सूर्य नमस्कार को सीरिया के लोग अरबी में आशीर्वाद मानते हैं। लेकिन इसे संस्कृत मे यह सूर्य नमस्कार कहते है। सीरिया के ट्रेनर हिंदू साधु की वेशभूषा में प्रचार कर रहे हैं। यह आमतौर पर  माना जाता है कि योगी की शुरुआत भगवान शिव ने की थी। एक सीरियायी शिक्षक ने बताया कि ऐसा करके वह वास्तविक और आर्थिक तनाव से सीरिया के लोगों को राहत देने का काम कर रहे हैं।  सीरिया से दो दशक पहले माजेन ईसा नामक एक व्यक्ति को योग अध्ययन के लिए हिमालय की गोद में बसे ...

बाजार की भेंट चढते संयुक्त परिवार/joint family

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  भारत में कुटुंब व्यवस्था एक महत्वपूर्ण इकाई के रूप में रही है। इसीलिए भारत में संयुक्त परिवार देखने को मिलते हैं। परंतु आज पश्चिमी आर्थिक  दर्शन में संयुक्त परिवार लगभग नहीं के बराबर होते जा रहे हैं। विकसित देशों में सामान्यतः बच्चों की 18 वर्ष की आयु प्राप्त करते ही वे अपना अलग परिवार बसा लेते हैं। तथा अपने माता-पिता से अलग मकान लेकर रहने लगते हैं। इस चलन के पीछे संभवत आर्थिक पक्ष इस प्रकार से जुड़ा हुआ है कि जितने अधिक परिवार होंगे उतने ही अधिक मकानों की आवश्यकता होगी। कारों की आवश्यकता होगी। टीवी की आवश्यकता होगी।फ्रिज की आवश्यकता होगी।और अन्य संसाधनों की आवश्यकता होगी।और सभी तरह के खाद्य  उत्पादों की आवश्यकता बढेगी।  जो अंततः मांग में वृद्धि के रूप में दिखाई देगी। एवं इन वस्तुओं का उत्पादन बढ़ेगा ज्यादा वस्तुएं उत्पादन से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लाभ में वृद्धि होगी। कुल मिलाकर इससे आर्थिक वृद्धि दर तेज होगी।विकसित देशों में इस प्रकार की मान्यताएं समाज में अब सामान्य हो गयी हैं।और  अब बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नजर अब भारत में है।कि किस प्रकार से भारत में सं...

दादरा और नगर हवेली मुक्ति मे संघ की भूमिका

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  दादरा एवं नगर हवेली मुक्त दिवस 2 अगस्त को मनाया जाता है।भारत 1947 में आजाद हुआ था। अंग्रेजों के चले जाने से संपूर्ण देश स्वतंत्र नहीं हुआ था। दादरा और नगर हवेली तथा गोवा पर अभी पुर्तगालियों का नियंत्रण था 2 अगस्त 1954 को संघ के  स्वयं सेवकों ने दादरा और नगर हवेली की स्वतंत्रता के लिए पुर्तगालियों की बस्ती पर अचानक आक्रमण कर दिया। उनका नेतृत्व पुणे के माननीय संघचालक श्री विनायक राव आप्टे कर रहे थे। इसमें अनेक संघ कार्यकर्ताओं ने भाग लिया सिलवासा के पुलिस मुख्यालय पर आक्रमण करके वहां उपस्थित 175 सैनिकों का आत्मसमर्पण कराकर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहरा दिया इस प्रकार संघ के स्वयंसेवकों ने दादरा और नगर हवेली को स्वतन्त्र करा लिया।इससे पहले मुक्ति हेतु योजना बनायी गयी।आर्थिक और अन्य सहयोग जुटाये गये।  आजाद गोमन्तक दल,भी मुक्ति हेतु संघर्ष कर रहा था। इससे पहले डा राममनोहर लंहिया के आन्दोलन को पुर्तगाली शासक द्वारा दबाया गया।परन्तु संघ के स्वयं सेवकों के दल ने ऐसा नहीं होने दिया। और दादरा नगर हवेली को मुक्त कराने मे अहम भूमिका निभाई थी।