UCC भारत मे समान नागरिक आचार संहिता क्यों जरुरी?

 


भारत जो कि  विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। और यही नहीं भारत जिसकी आबादी एक अरब 40 करोड़ के लगभग है।और जिसमें विभिन्न धर्मों, संप्रदायों  के लोग रहते हो।बहुत प्रकार की विविधता हो।और वह सेक्युलर राष्ट्र हो तो फिर जरुरी है। समान नागरिक आचार संहिता। समान नागरिक आचार संहिता का अर्थ एक पंथनिरपेक्ष  कानून से होता है। जो सभी मत  पंथों  के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो अलग-अलग पथों के लिए अलग-अलग  कानून ना होना ही समान नागरिक संहिता की मूल भावना है। समान नागरिक कानून किसी भी पंथ जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। 


क्योंकि भारत जैसे विशाल देश की जनसंख्या को नियंत्रित करना है। या फिर रोजगार, प्राकृतिक,भौतिक  संसाधनों को देश के नागरिंको को समान रुप से पहुंचाना हो।तो भारत में समान नागरिक आचार संहिता कानून लाना बहुत जरूरी है। ऐसे विश्व के बहुत से देश है जो सेकुलर होते हुए भी यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल लागू किये हुए है। जैसे अमेरिका, आयरलैंड, बांग्लादेश, मलेशिया,तुर्की, इंडोनेशिया, इजिप्ट,सूडान, यहां तक कि पाकिस्तान का भी अपना यूसीसी  लागू है जो उसके अपने संविधान के अनुसार बना हुआ है।


भारत सामाजिक व्यवस्था, असमानता, भेदभाव, और अन्य विविधताओं से भरा है। स्वतंत्रता हमें इसलिए मिली है कि हम इस सामाजिक व्यवस्था में जहां हमारे मौलिक अधिकारों के साथ विरोध है। वहां सुधार कर सकें। राजनीतिक पार्टियां जो धर्म पंथ के आधार पर वोट बैंक जुटाते हैं।तब वे सामाजिक वैमनस्य न फैलाकर बोट बैंक नहीं जुटा पाएंगे। हर व्यक्ति को एक ही कानून के तहत सजा और न्याय मिलेगा। देश में एक ही कानून होने से जल्दी फैसले लिए जा सकेंगे।किसी भी वर्ग के लोगों या महिलाओं के लिए हक का हनन नहीं होगा। समान नागरिक आचार संहिता को एक राष्ट्र एक व्यक्ति और एक कानून के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। 


यह सभी धर्मों के सम्मान और सुरक्षा के लिए एक सुरक्षा कवच होगा।इससे भारत के किसी भी नागरिक को घबराना नहीं चाहिए। बल्कि इसका स्वागत करना चाहिए। समान नागरिक संहिता में सभी धर्मों के लिए समान कानून की व्यवस्था होगी। हर धर्म का पर्सनल ला है जिसमें शादी तलाक और संपत्तियों के लिए अपने-अपने कानून है। यूसीसी के लागू होने से सभी धर्मों में रहने वाले लोगों के मामले समान नियमों से ही निपटाए जायेंगे। इसमे देश में रहने वाले सभी धर्मों और समुदायों के लोगों के लिए एक ही कानून लागू किया जाना है। इसमें संपत्ति के अधिग्रहण और संचालन, विवाह,तलाक और गोद लेना आदि को लेकर सभी के लिए एक समान कानून बनाया जाना है। भारत में 1967 के आम चुनाव में भारतीय जन संघ ने अपने चुनावी मेनिफेस्टो में पहली बार समान नागरिक आचार संहिता का स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया था। 


समान नागरिक आचार संहिता भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 का हिस्सा है। और संविधान में भी इसी नीति निदेशक तत्व को शामिल किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक आचार संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है। यदि भारत के नागरिक इसका विरोध करते हैं।तो ऐसे मे सेकुलर शब्द भारत जैसे देश के लिए  प्रश्नचिन्ह खड़ा कर सकता है? क्योंकि जब हिंदू, जैन, बौद्ध,सिक्ख, के लिए अलग कानून और  मुसलमानों के लिए अलग कानून है। तो फिर भारत सेकुलर कैसे हो सकता है? अतः बदलती दुनिया के साथ यदि भारत को चलना है तो भारत मे समान नागरिक आचार संहिता का लागू होना बहुत जरूरी है। और सबको इसका स्वागत करना चाहिए।

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