शेर ये पंजाब महाराजा रणजीत सिंह
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 13 नंबर 1780 को पंजाब के गुंजरावाला में हुआ था। महाराजा रणजीत सिंह ने 10 साल की उम्र में ही पहला युद्ध लडा़ था। और 12 साल की उम्र में इन्होंने गद्दी संभाली थी। महाराजा रणजीत सिंह खुद तो पढ़े-लिखे नहीं थी लेकिन वे शिक्षा के महत्व को जानते थे। इसलिए उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला पर बहुत जोर दिया। साथ ही उन्होंने पंजाब में कानून व्यवस्था को कायम करने के लिए उत्कृष्ट नियम बनाये।महाराजा रणजीत सिंह ने हिंदू और सिखों से वसूले जाने वाले जजिया पर रोक लगा दी थी।वे सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते थे। और कभी भी उन्होंने अपने शासनकाल में किसी को भी सिक्ख धर्म अपनाने के लिए जोर नहीं दिया था।
महाराजा रणजीत सिंह ने 40 वर्षों से अधिक समय तक पंजाब मे शासन किया था।उन्हे शेर ए पंजाब के नाम से जाना जाता है। उनके शासनकाल में अंग्रेजों ने कभी भी पंजाब पर आक्रमण नहीं किया। पूर्व में अंग्रेजों और पश्चिमी दुर्रानी के राज्य के बीच में उनका राज्य था।महाराजा रणजीत सिंह एक मिसलदार थे। उन्होने अन्य सरदारों को हराकर अपना राज्य बढ़ाना शुरू किया था।रणजीत सिंह ने अफगानों के खिलाफ भी कई लड़ाई लड़ी। और पेशावर सतलज पश्चिम क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।ऐसा पहली बार हुआ जब पश्तैनों पर किसी गैर मुस्लिम ने राज किया हो।बाद में पेशावर,जम्मू कश्मीर पर भी अधिकार कर लिया।
अंग्रेजों ने उस समय कहा था कि यदि रणजीत सिंह एक पीढ़ी पुराने हुए होते तो रणजीतसिंह पूरे भारत को जीत लेते। जमान शाह के पंजाब से लौट जाने के बाद रणजीत सिंह ने लाहौर पर अपना अधिकार कर लिया। धीरे-धीरे सतलज से सिंधु तक जितनी मिसलें राज कर रही थी। सबको अपने कब्जे में कर लिया था। सतलज और यमुना के बीच फुलकियां मिस्र के शासक राज्य कर रहे थे। उस समय अंग्रेजों का राज्य यमुना तक हो गया था। और फुलकियां भी अंग्रेजों के प्रभुत्व को मानने लगे थे।रणजीतसिंह ने फ्रांसीसी सैनिकों को बुलाकर उसकी सैनिक कमान में अपनी सेना को उनके साथ प्रशिक्षित कर तैयार किया। 10 वर्षों में रणजीत सिंह ने मुल्तान पेशावर और कश्मीर को अपने राज्य में मिला लिया।
रणजीत सिंह जम्मू और कश्मीर को एक करके यह राज्य तिब्बत के पश्चिम और खबर दर्रे से लेकर यमुना नदी के पश्चिमी तट पर एक भौगोलिक और राजनीतिक इकाई के रूप में था। उन्होंने अंग्रेजों से बिना युद्ध किये अंग्रेजों की सेना को अपने राज्य के अंदर नहीं घुसने दिया। 1849 में अंग्रेजों के अधिकार में आने तक यहां सिक्खों का अधिपत्य था।महाराजा रणजीत सिंह पर 11 साल की उम्र में एक घातक हमला हसमत खान ने किया था। उस किशोरावस्था में भी रणजीत सिंह ने हसमत खान को मौत के घाट उतार दिया था। उनके शासन की खास बात यह है कि उनके राज में कभी भी किसी अपराधी को मृत्युदंड नहीं दिया गया।वे उदारवादी राजा थे। किसी राज्य को जीत कर भी वो अपने शत्रू को बदले में कुछ न कुछ जागीर दिया करते थे। ताकि वह अपना जीवन निर्वाह कर सके। गोल्डन टेंपल का जीर्णोद्धार करने वाले महाराजा रणजीत सिंह ही थे।
महाराजा रणजीत सिंह ने पहली लड़ाई 7 जुलाई 1799 में जीती।चेत सिंह की सेना को हराकर पहली जीत हासिल की। और लाहौर पर कब्जा किया था। अहमद शाह, के पौत्र जमान शाह दुर्रानी को कोहिनूर हीरा मिला और उनके छोटे भाई शुजाह दुर्रानी के पास यह रत्न था। शुजाह दुर्रानी ने अपनी पारिवारिक साम्राज्य को खो देने के बाद इस कोहिनूर हीरे को रणजीत सिंह को दे दिया था। बेशकीमती हीरा कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह के खजाने की रौनक थी। सन 1839 में महाराजा रणजीत सिंह का निधन हो गया। उनकी समाधि लाहौर में बनवाई गई। जो आज भी वही कायम है। उनकी मौत के साथ ही अंग्रेजों का पंजाब पर शिकंजा कसना शुरू हो गया। अंग्रेजों और सिक्खों के युद्ध के बाद 30 मार्च 1849 के दिन पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना दिया गया और कोहीनूर हीरा महारानी विक्टोरिया के लिए पेस कर दिया गया।जो आज भी इग्लैण्ड मे टावर आफ लन्दन के ज्वेल हाउस मे सार्जनिक प्रदर्शन पर है।