क्रान्तिकारी राम सिंह तोमर उर्फ राम प्रसाद बिस्मिल की अन्तिम इच्छा क्या थी?Ram parsad bismil
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल मे है,देखना है कि जोर कितना बाजू ए-कातिल मे है।
इस नारे को बोलने वाले क्रान्तिकारी अमर शहीद (राम सिंह तोमर) उर्फ राम प्रसाद बिस्मिल जी का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मू़लमती था ।उनके पिता एक राम भक्त थे ।19 वर्ष की आयु में उन्होंने क्रान्ति के रास्ते पर अपना पहला कदम रखा।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है। वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमां।
एक महान क्रांतिकारी वीर राम प्रसाद बिस्मिल ने न सिर्फ इसे लिखा बल्कि मुकदमों के दौरान अदालत में अपने साथियों के साथ सामूहिक रूप से गाकर इसे लोकप्रिय भी बनाया।बिस्मिल ने इन पंक्तियों को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नौजवान स्वतंत्र सेनानियों के लिए संबोधित गीत के रूप में लिखा था। इन पंक्तियों को बाद मे स्वतंत्रता सेनानियों की नौजवान पीढ़ी जैसे शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, के साथ भी जोड़ा जाता रहा।ये अमर पंक्तियां अंग्रेजों के खिलाफ भारत के स्वतन्त्रता संग्राम का नारा बन गयी थी।चंद्रशेखर आजाद जैसे महान क्रांतिकारी भी राम प्रसाद विस्मिल को अपना गुरु मानते थे।
अपने 11 वर्ष के क्रांतिकारी जीवन में उन्होंने कई किताबें भी लिखी। और उन्हें प्रकाशित कर प्राप्त रकम का प्रयोग उन्होंने हथियार खरीदने मे किया। अपने भाई के फांसी का समाचार सुनने के बाद बिस्मिल ने ब्रिटिश साम्राज्य को समूल नाश करने की प्रतिज्ञा की। मैनपुरी षडयंत्र में शाहजहांपुर जिले मे चार-पांच युवा पकडे़ गये।
जिनके लीडर राम प्रसाद बिस्मिल थे। लेकिन वे पुलिस के हाथ नहीं लगे।इसकी सुनवायी का फैसला आने के बाद वह बीच में 2 साल तक भूमिगत रहे। और एक अफवाह की तरह उन्हें मृत मान लिया गया। इसके बाद उन्होंने किसी गांव में शरण ली और अपना लेखन कार्य जारी रखा।
9 अगस्त 1925 को लखनऊ के काकोरी नामक स्थान पर देश भक्त क्रान्तिकारियों ने रेलगाडी को लूटा। रेल के डिब्बे में रखे। लोहे की तिजोरी को तोड़कर क्रान्तिकारी 4000₹ लेकर फरार हो गए।इस डकैती में अशफाक उल्ला खां, चंद्रशेखर आजाद, राजेंद्र लाहिड़ी,सचिंद्र नाथ, और राम प्रसाद बिस्मिल आदि शामिल थे।अपने जीवन के अंतिम दिनों में गोरखपुर जेल में उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी। फांसी के तख्ते पर झूलने के 3 दिन पहले तक वे अपनी आत्मकथा लिखते रहे। राम प्रसाद बिस्मिल चाहते तो हवालात से भाग सकते थे। और फांसी के फंदे से बच सकते थे। लेकिन जेल गार्ड द्वारा फांसी के दौरान उन पर किए गए विश्वास को उन्होंने टूटने नहीं दिया। और हंसते हुए फांसी के फंदे पर लटक गए। इस प्रसंग से यह प्रेरणा मिलती है कि अगर जान भी जा रही हो तब भी किसी का विश्वास नहीं तोड़ना चाहिए। राम प्रसाद बिस्मिल ने 1918 के मैनपुरी षड़यन्त्र मे भाग लिया था।और 1925 की काकोरी साजिश और ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।।इस प्रकार 19 दिसंबर 1927 को भारतीय स्वतन्त्रता के क्रांतिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी को 30 वर्ष की आयु मे अंग्रेजों ने फांसी दे दी। उनके मन मे था ऐ मातृभूमि तेरी जय हो,सदाविजय हो प्रत्येक भक्त तेरा सुख-शान्ति और क्रान्तिमय हो।उनकी अन्तिम इच्छा थी, कि वे अपनी मां के चरण स्पर्श कर सके। लेकिन ये हो न सका।
फांसी पर लटकने से पहले उन्होने कहा था। मै ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूँ।