छत्रपति शिवाजी महाराज और हिन्दू साम्राज्योत्सव क्यो?chatrapati Sivaji


आधुनिक भारत मे छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदू साम्राज्य को पुनः स्थापित किया था। छत्रपति शिवाजी महाराज ने रायरेश्वर (भगवान शिव) के मंदिर में अपनी उंगली काटकर अपने खून से शिवलिंग पर रक्ताभिषेक कर हिंदवी स्वराज्य की शपथ ली थी। उन्होंने श्री (ईश्वर) की इच्छा से स्थापित हिंदुओं के राज्य की संकल्पना को जन्म दिया। ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी सन 1674 को  शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया गया था। इसी दिन से मराठा शक्ति का उदय होने के साथ ही हिंदू साम्राज्य का भी उदय हुआ मराठों के पूर्वजों में हिंदू धर्म को जीवित और अक्षुण बनाये रखने के लिए अपनी आहुतियां दी थी। जिनकी वीरताओं की गाथा आज भी सुनाई जाती है। 
भारत में हिंदू संगठनों में से मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक वाले दिन को हिंदू साम्राज्योत्सव के रूप में मनाता है। हिंदू साम्राज्योत्सव दिवस मनाने का उद्देश्य है हिंदू साम्राज्य, संस्कृति, सभ्यता, और सौहार्द के प्रति हिंदू समाज को जागरूक करना। छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 की शुभ लग्न में जीजाबाई की कोख से हुआ था। शिवाजी महाराज भारतीय शासक और मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे। 1674 मे शिवाजी ने अत्याचारी,और क्रूर मुगल सम्राट औरंगजेब को हराकर खुद को महाराष्ट्र का एक स्वतन्त्र शासक और छत्रपति की उपाधि धारण की। और हिन्दुओं के स्वशासन की नींव रखी थी। उनके पास अपनी शाही मुहर थी। जो संस्कृत मे थी। उनकी दृढ इच्छा थी। कि एक हिन्दू एक बार फिर से राजा बन सकता है।इसीलिए उन्होने खुद का राज्याभिषेक करवाया।2024 मे उनका राज्याभिषेक स्थापना दिवस हिन्दू पंचागों के अनुसार 20जून को है। शिवाजी को गुलामी पसन्द नहीं थी। धार्मिक अभ्यासों मे शिवाजी की काफी रुचि थी। वे रामायण और महाभारत का अभ्यास बडे़ ध्यान से करते थे।छत्रपति का अर्थ है। जो अपने अनुयायियों को छतरी की तरह छाया देता है।और क्षत्रियों का प्रमुख। शिवाजी ने कोंकणी तट पर एक मजबूत सेना और नौसेना की स्थापना की। शिवाजी को भारत मे और विशेष रुप से महाराष्ट्र मे एक राष्ट्रीय नायक के रूप मे माना जाता है। उनके अन्दर मुगल शासन के खिलाफ लड़ने का अदम्य साहस था।शिवाजी ने 16 वर्ष की आयु मे पहला किला तोरण, आदिलशाह से जीता था। उन्होने 52 किले जीते।

संसार के गुण संपन्न महापुरुषों से उनकी तुलना की जाती है। जैसे सेना संचालन में सिकंदर से,गरीबों की निराशा तथा जनता के मनोबल के लिए लिंकन से। तथा चर्चिल से। प्रखर राष्ट्रवाद एवं संगठित करने के गुण के लिए वाशिंगटन से।शिवाजी संपूर्ण गुण -समुच्चय की दृष्टि से चारित्रिक दृष्टिकोण से बहुत महान थे। और आज तक भी उनकी तुलना में कोई भी सत्ताधीश टिक नहीं सकता। और न हीं सम्भव है। माओ और चे-ग्वेवेरा से लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व ही शिवाजी ने गोरिल्ला युद्ध तन्त्र आरम्भ कर दिया था। इतिहास के जिस कालखंड में एक सेकुलर राज्य की कल्पना पश्चिम में लोकप्रिय नहीं थी ।उस समय शिवाजी ने हिंदू परंपरा के अनुकूल संप्रदाय धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना की थी। 6 जून (ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी)1674 के दिन जो शिवाजी का राज्यारोहण हुआ। तो वह व्यक्ति का राज्य रोहण न मानकर हिंदू संस्कृति के पुनरुत्थान की और विश्व धर्म की पुनर्स्थापना थी। छत्रपति शिवाजी महाराज के कालखंड पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि आज की समस्यागत स्थिति और उस देश काल की स्थिति में तुलनात्मक रूप से अधिक विभेद नहीं था, आत्म विस्मृत समाज विगठित समाज सांस्कृतिक विभेद चारों और दिखाई दे रहा था, शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के समय तक इस राष्ट्र की सामाजिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण कर हिंदू राष्ट्र की बहु आयामी उन्नत करने के जो प्रयास चले थे वह बार-बार सफल हो रहे थे। इनके संरक्षण के लिए अनेकों राज्यों के शासकों का संघर्ष जारी था, साथ ही संत समाज द्वारा भी समाज में एकता लाने के लिए प्रयास किया जा रहे थे। जन समूह को एकत्रित एवं संगठित करने और उनकी श्रद्धा को बनाए रखने के लिए अनेक प्रकार के प्रयोग चल रहे थे। कुछ तात्कालिक तौर पर सफल भी हुए, और कुछ पूर्ण विफल हुए किंतु जो सफलता समाज को चाहिए थी वह कहीं नहीं दिख रही थी।
 इन सारे प्रयोगों एवं प्रयासों की अंतिम परिणति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक था। यह विजय केवल शिवाजी महाराज की विजय नहीं थी अपितु हिंदू राष्ट्र के लिए संघर्ष करने वालों की शत्रुओं पर विजय थी। शिवाजी के प्रयत्नों से तात्कालिक हिंदू समाज के मन में विश्वास का भाव का निर्माण हुआ, समाज को आभास हुआ कि पुनः इस राष्ट्र को सांस्कृतिक रूप से संपन्न बनाते हुए सर्वांगीण उन्नत के पथ पर अग्रसर कर सकते हैं। कवि भूषण जो की औरंगजेब के दरबार में कविता का पाठ करते थे, शिवाजी की कृति पताका को देखते हुए वह औरंगजेब के दरबार को छोड़कर शिवाजी के दरबार में गायन को उपस्थित हुए। लम्बे समय से हिंदू राष्ट्र ने जिस आदर्श को संस्थापित किया। वह आदर्श प्रत्यक्ष होकर सिंहासन पर विराजमान हो रहा था।और यही भावना उस समय जनमानस की भी थी।

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