हल्दीघाटी का युद्ध क्यों और कब हुआ?
महाराणा प्रताप हिन्दुस्तान के एक ऐसे राजा थे। जिन्होंने अकबर की गुलामी को कभी स्वीकारा नहीं। अकबर की सेना के साथ हुए हल्दीघाटी का युद्ध सत्ता की लड़ाई के लिए लड़ा गया था। जगमाल अकबर के साथ जाकर मिल जाते हैं। अकबर बिना किसी विवाद के राणा प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था। और इस सिलसिले में मानसिंह कोडरमल को मनाने के लिए भेजा। लेकिन राणा अपनी बात पर अडिग रहते हैं।
और वे अकबर के प्रस्ताव को ठुकरा देते हैं राणा प्रताप को अपने अधीन लाने की हर कोशिश में असफल होने के बाद अकबर मान सिंह के नेतृत्व में लगभग 10,000 की फौज को पूरे दलबल के साथ आक्रमण करने के लिए भेजते हैं। अकबर ने बहुत से रियासतों को धीरे-धीरे अपने अधीन कर लिया था।और इन रियासतों ने भी अकबर की सत्ता को स्वीकार कर लिया था।और अकबर यही चाहता था कि महाराणा प्रताप मेरे अधीन हो जाये।उसने बहुत से राजपूत राजाओं मे तोड़ -फोड़ की।बडे़-बडे़ योद्धाओं को अपने साथ मिलाया।ताकि राणा को भी अपने अधीन कर लिया जाये।
परन्तु,महाराणा प्रताप ने उसकी सभी चालें,सभी प्रस्तावों, को दर किनारे कर दिया।अन्त मे उसने एक विशाल सेना राजा मानसिंह के नेतृत्व मे महाराणा प्रताप पर आक्रमण के लिए भेज दी।18 जून1576 को महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच युद्ध हुआ।अकबर की लगभग 10 हजार सेना थी।जबकि महाराणा प्रताप की 4000हजार की सेना थी।इस युद्ध मे सबसे बडी़ बात यह थी।
कि महाराणा प्रताप को भील जनजाति के 400 के लगभग धुनर्धारियों ने भी हल्दी घाटी के युद्ध मे साथ दिया था। अपने सीमित संसाधनों के बल पर महाराणा प्रताप ने युद्ध लड़ा। इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने अकबर की सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। इस युद्ध में महाराणा की वीरता और उनके शौर्य ने उनको महान बना दिया। यह युद्ध लगभग 3 घंटे से अधिक समय तक चला। और इस युद्ध में घायल होने के बावजूद भी महाराणा मुगलों के हाथ नहीं आए महाराणा प्रताप कुछ साथियों के साथ जंगल में चले गए और वहीं जंगल के कंदमूल,फल खाकर लड़ते रहे। महाराणा प्रताप एक पराक्रमी योद्धा कूटनीतिज्ञ राजनीतिज्ञ, मानसिक, और शारीरिक रूप से बहुत ताकतवर थे।उनकी लंबाई 7 फीट और 5 इन्च थी। और वजन 110 किलोग्राम था।
वह 72 किलो के कवच को छाती पर पहनते थे। उनका 81 किलो का भला होता था। जिसे वे एक हाथ से फेंकते थे। और उनका अचूक निशाना होता था। वह अपने पास हमेशा 208 किलो की दो वजनदार तलवारों को लेकर चलते थे।हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल को देखकर अकबर बहुत बुरी तरह से डर गया था। वह सपने में भी राणा के नाम से डरता था। यही नहीं लंबे समय तक राणा की तलवार अकबर के मन में डर के रूप में बैठे हुए थी। अकबर को इतना डर लगने लगा था। कि डर के मारे लंबे समय तक अकबर ने अपनी राजधानी पहले लाहौर बनायी।और राणा के मरने के बाद आगरा ले जाने का फैसला लिया। हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने अकबर की सेना को नाकों चने चबा दिए थे।
और कहते हैं कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत हुई थी। वह युद्ध रणनीति में कुशल और कभी हार न मानने वाली योद्धा थे। उन्होंने मेवाड़ की आन बान और शान के लिए कभी समझौता नहीं किया।वह विपरीत परिस्थिति में भी हार नहीं मानते थे। महाराणा ने जंगल में ही सैनिकों को एकत्रित किया। हालांकि तब तक एक अनुमान के मुताबिक मेवाड़ के मारे गए सैनिकों की संख्या 1600तक पहुंच गई थी। जबकि मुगल सेना में 350 घायल सैनिकों के अलावा हजारों सैनिकों की जान चली गई थी। 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बाद भी अकबर राणा को पकड़ न सका। अकबर ने आखिरकार राणा को पकड़ने का ख्याल दिल से छोड़ ही दिया था। महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक भी उनकी तरह बहादुर था।जब मुग़ल सेना महाराणा प्रताप का पीछा करने लगी थी।तब चेतक ने महाराणा को अपनी पीठ पर लिए 26 फीट के नाले को लांग दिया था। और चेतक इस छलांग में बुरी तरह घायल हो गया था।
बाद में चेतक की भी मौत हो गई थी। इस नाले को मुगल सेना पार न कर सकी।चेतक इतना ताकतवर था कि उसके मुंह के आगे हाथी की सूंड लगाई जाती थी। चेतक ने महाराणा को बचाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर की आंखें नम हो गई थी। क्योंकि इस महान योद्धा ने अकबर के दिल में बहुत गहरी छाप छोड़ी थी।