धरती पर बढता मरुस्थल और सूखा के कारण?
धरती लगातार मरुस्थल और सूखे की तरब बढती जा रही है। इस पर चिन्यध हेतु प्रत्येक वर्ष 17 जून को विश्व मरुस्थल और सूखा रोकथाम दिवस का आयोजन किया जाता है।विश्वंभर मे मरुस्थल और सूखा रोकथाम दिवस मनाने का मुख्य कारण है कि जिस प्रकार से लगातार भूमि क्षरण होती जा रही है। और धरती में लगातार सूखा बढ़ता जा रहा है पेड़- पौधों और फसलों को जब पर्याप्त मात्रा में वर्षान आने से जल की प्राप्त नहीं हो पाती है।और फसलें नष्ट होने लगती है। तो उसे सूखा कहते हैं। जल की कमी है और बिरिश के अनियमितता के कारण सूखा होता है।वर्षान होने से पानी की कमी होती है जो पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती है। जबकि सूखा स्वाभाविक रूप से होता है।
मानव गतिविधि जैसे कि पानी का उपयोग, औरसही जल प्रबंधन न होने से क्षेत्र मे शुष्क परिस्थितियों मे बढोतरी होती है।वर्ष 1992 के रियो पृथ्वी सम्मेलन के दौरान जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान के साथ मरुस्थलीकरण को सतत विकास के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में माना गया था।पिछले दो दशकों से लगातार सन 2000 से अब तक लगभग सूखे की घटनाओं और मरुस्थली करण मे 29% की वृद्धि हुई है। 55 मिलियन आबादी हर साल सूखे के कारण प्रभावित होती है। और वर्ष 2050 विश्व की तीन चौथाई आबादी के प्रभावित होने की आशंका है।विश्व में लगभग 2.3 अरब लोग पहले से ही जल संकट का सामना कर रहे हैं।
सूखा लोगों की आजीविका को खतरे में डालता हैं।भुखमरीफैलती है।लोग भोजन और जल की तलाश मे पलायन करते हैं।और बडे़ पैमाने पर पलायन को बढ़ावा मिलता है। आज पूरे विश्व में पानी की कमी ने विश्व की 40% आबादी को प्रभावित किया है।और 2030 तक 700 बिलियन लोगों को जल संकट का खतरा होगा। विश्व में सबसे अधिक सूखे से प्रभावित वाले देशों मे अल्प विकसित, और विकासशील देश हैं। और उनमे भी सबसे अधिक महिलाएं और लड़कियां प्रभावित हुए हैं।भारतीय कृषि क्षेत्र मुख्य रूप से मानसूनी वर्षा पर निर्भर है देश का लगभग 68% हिस्सा मानसूनी वर्षा पर निर्भर है।भारत मे अलग-अलग स्थानों पर आंकड़े बताते हैं।कि भारत के 35% क्षेत्र में 750 मिलीमीटर से 1125 मिलीमीटर तक वर्षा होती है।भारत में सूखे से सबसे अधिक प्रभावित राज्य हैं
राजस्थान महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश इसके अलावा गुजरात,उत्तर प्रदेश का कुछ क्षेत्र झारखंड और ओड़ीसा,तमिलनाडु़ का कुछ क्षेत्र, भारत में सूखे का मुख्य कारण मानसून के दौरान कब वर्षा का होना है।अगर भारत मे मानसून 10 से 20 दिनों तक देरी से पहुंचता है ।तो वर्षा कम होने से तब भी सूखा पड़ता है। भारत में पड़ने वाले सूखे का एक प्रमुख कारण है। यहां होने वाली वर्षा का असमान वितरण। में क्षेत्र में ज्यादा और कुछ क्षेत्र में बहुत कम वर्षा होती है। इसके अलावा सूखे का खतरा आज पूरे विश्व में है। कोई भी देश सूखे से सुरक्षित नहीं है।
80%वर्षा भारत मे 90 दिनों से कम दिनों में हो जाती है। जब कि केवल 20% वर्षा आन्य दिनों मे होती है। वर्ष 1995 में सूखे के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और पहचानने हेतु रेगिस्तानी क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधन को फिर से जीवित करने हेतु यह दिवस शुरू किया गया था। बाँन चुनौती एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत दुनिया के150 मिलियन हेक्टेयर मरुस्थल और बंजर भूमि को 2020तक बनीकृत करना है। और 350 मिलीयन हेक्टेयर भूमि पर वर्ष 2030 तक बनस्पति लगाने का निर्णय लिया गया है।
पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 2015 में भारत ने स्वैच्छिक रूप से इस चुनौती पर स्वीकृति दी थी। विश्व की इस चुनौती को स्वीकार करते हुए इसके लिए उपायों में मुख्य रूप से त्वरित वनीकरण और वृक्षारोपण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इसके साथ ही उचित जल प्रबंधन,जल को कई तरह से उपयोग,मे लाना,जैसे स्नानागार,प्रक्षालन मे प्रयोग जल को कीचन गार्डन मे डालना,आदि। वर्षा जल संचयन, वनीकरण या लवणीय पौधों के लिए समुद्री जल का प्रयोग। बरसात की रेत, बाढ़, हवा के झोंकों से होने वाले मृदा क्षरण को रोकना। मिट्टी के समृद्ध और पूर्व अधिकरण की आवश्यकता। पेड़ों की कटाई से उपलब्ध अवशेषों का उपयोग खेती को मल्चिंग प्रदान करने के लिए किया जा सकता है। जिससे मिट्टी में पानी की अवशोषित होने की क्षमता बढ़ जाती है। और वाष्पीकरण कम हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति द्वारा सूखे को कैसे रोका जा सकता है। इस पर प्रत्येक दिन व्यक्ति द्वारा उपयोग किये जाने वाली पानी की मात्रा का ध्यान रखना। सूखे को रोकने का एक शक्तिशाली तरीका हो सकता है। जब हम अपने दांतों को ब्रश करते हैं तो नल को बंद करना। अपने बगीचों में सुबह-सुबह पानी देना ताकि पानी कम वाष्पीकरण हो सके। और कम प्रभाव वाली क्षेत्र स्थापित करना पानी की बर्बादी को रोकने की अच्छी तरीके हो सखते हैं।
आज लगातार प्राकतिक संसाधनों के अनुचित दोहन से जैसे अत्यधिक जंगलो का कटान,जंगलों को आग लगाना,जल और नदियों को दूषित करना,पेयजल स्रोतों का ठीक से संरक्षण न करना।शहरों मे पानी का अनुचित दुरुउपयोग,वारिश के जल को जमीन के अन्दर न डालना,ग्रीन हाउस गैंसों का अत्यधिक उत्सर्जन,वायुमण्डल का प्रदूषित होना,आसमान मे कई दिनों तक बादलों के ठहराव के बाद भी वारिस नहीं होती है।कारण वायुमण्डलीय प्रदूषण,धरती के तापमान का बढना।आदि कारण हैं।