क्यों जरूरी है विश्वरक्तदान दिवस?

 


रक्तदान एक महादान है। रक्तदान से कई लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है। रक्तदान दिवस मनाने की शुरुआत विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्तराष्टीय रेडक्रास संघ ने 14 जून 2004 से किया था। तब से हर साल 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जाता है। साल 1997 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 100% स्वैच्छिक रक्तदान नीति की नीव डाली थी। वर्ष 1997 में संगठन ने  विश्व के प्रमुख 124 देशों से आग्रह किया कि।वे अपने यहां रक्तदान को बढावा दें। 


 


रक्तदान का उद्देश्य यह था कि किसी को भी  रक्त की जरूरत पड़ने पर उसके लिए पैसे देने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए। रक्तदान के बाद पैसे ना लेने वालों में तंजानिया जैसे देश में 80% रक्तदाता पैसे नहीं लेते हैं। कई देश ऐसे हैं जहां लोग रक्तदान में पैसे लेते है। ब्राजील में तो यह कानून है कि आप रक्तदान के पश्चात किसी भी प्रकार की सहायता नहीं ले सकते हैं।आस्ट्रेलिया के साथ-साथ कुछ अन्य देश हैं जहां पर रक्तदाता पैंसा बिल्कुल नहीं लेते है।विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के तहत भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत होती है।


लेकिन भारत में 75 लाख यूनिट ही रक्त मिल पाता है।  यानी करीब 25 लाख यूनिट रक्त के अभाव में हर साल सैकड़ों मरीज दम तोड़ देते हैं। भारत की जनसंख्या भले ही 140 करोड़ों गई हो परंतु रक्त दाताओं की संख्या कुल आबादी का 1% भी नहीं पहुंच पाती है। दुनिया के कई सारे देश है जो इस मामले में भारत को काफी पीछे छोड़ देते हैं।जिनमें नेपाल में कुल रक्त की जरूरत का 90 प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान से पूरा होता है। 


श्रीलंका में रक्दान होता है थाईलैंड में रक्तदान बडे़ स्तर पर होता है।रक्तदान के  विषय में चिकित्सा विज्ञान कहता है कि कोई भी स्वस्थ व्यक्ति जिसकी उम्र 18 से 65 वर्ष है। और वजन 45 किलोग्राम से अधिक है।और रक्तदाता जो कि एचआईवी पोजेटिव,हेपेटाइटिस बी या हेपेटाइटिस सी जैसी बीमारी से  मुक्त हो। वह रक्तदान कर सकता है। एक बार में जो रक्तदाता 350 मिलीग्राम रक्त देता है।


 उसकी रिकवरी शरीर में 24 घंटे के अंदर हो जाती हैं ।और गुणवत्ता की पूर्ति 21 दिनों के भीतर हो जाती हैं। जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं उन्हें हृदय संबंधी बीमारियां कम होती हैं। रक्त की संरचना ऐसी है कि उसमें सम्माहित लाल रक्त कोशिकाएं 3 माह में यानि 120 दिन स्वयं ही भर जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति 3 माह में एक बार रक्तदान कर सकता है।भारत में सुरेश कानदास एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने 1962 से 2000 तक 150 बार रक्तदान किया है।और इनको सम्मानित भी किया जा चुका है।आस्टेलियाई वैज्ञानिक कार्ल लेड स्टाइनर थे। जिन्होंने ब्लड ग्रुपों की खोज की थी। और इनका जन्म 14 जून को हुआ था इनको इस खोज के लिए नोबेल पुरस्कार से भी  सम्मानित किया गया था। 


इसलिए इनके जन्म दिवस पर विश्व रक्तदान दिवस मनाया जाता है। विश्व में अब तक लगभग 50 देशों ने इस पर अमल किया है।हर वर्ष रक्तदाता दिवस की एक थीम  होती है।वर्ष 2023 के लिए इसकी थीम है"रक्त दो. प्लाज्मा दो, जीवन साझा करो अवसर साझा करो"  खून की एक बूंद किसी की जिंदगी को बचा सकती है।खून के बिना शरीर मांस और हड्डियों से बना सिर्फ एक कंकाल रह जाता है। देश और दुनिया में हजारों लोग खून की कमी के कारण अपनी जान गंवा देते हैं। जरूरतमंद को उस समय पर अगर खून मिल जाए तो किसी की जान को बचाया जा सकता है।


 हर दिन हजारों लोग सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।और उनका सारा खून बह जाता है। ऐसे मरीजों को अगर समय पर इलाज नहीं मिले और शरीर  में खून की कमी पूरी नहीं हो तो। उनके शरीर की जान चली जाती है। लोगों में रक्तदान करने के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल साथ 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जाता है। ब्लड डोनेशन एक दर्द रहित क्रिया है जो किसी जरूरतमंद की जिंदगी बचा सकता हैं। विश्व भर में इस दिन को मनाने का उद्देश्य सभी को रक्तदान करने के लिए प्रोत्साहित करना है। ताकि अधिक लोगों की जान बचाई जा सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि 2023 में इस विचार पर जोर है।कि 


जीवन में जीने के लिए प्लाज्मा और रक्त देने के विचार का व्यापक प्रचार- प्रसार  हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लगभग 118.54 मिलियन तक रक्तदान एकत्र किया जाता है। इनमें से लगभग 40% उच्च आय वाले देशों में एकत्र किया जाता है। जहां दुनिया की 16% आबादी रहती है।169 देशों में लगभग  कुल 106 मिलियन रक्तदान एकत्र करने की रिपोर्ट हैं।भविष्य मे विश्वभर मे रक्तदाताओं की संख्या बढे। यह आग्रह है।

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