उत्तराखंड से पलायन भविष्य के लिए खतरे की घण्टी
उत्तराखंड से पलायन को रोकना एक बहुत बडी चूनौती बन चुकी है। 9 नवम्बर 2000 को उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था। पलायन तो इससे पहले भी होता था। परन्तु वह बहुत कम स्तर पर था। विगत 15 सालों मे बहुत बडे पैमाने पर पलायन हुआ है। जो आज भी बहुत तेजी से जारी है।अगर हम उत्तराखंड के अतीत को देखेंगे तो बहुत उत्कृष्ट संस्कृति,रीती-रिवाज,खान-पान मीठी, बोली -भाषा,सौम्य, ईमानदार, और देश प्रेम की वेश -भूषा,सभी कार्य मिल-जुलकर करना। दुखःऔर सुख मे सबका एक साथ रहना। ये यहां की मूल संस्कृति है।
यहां पलायन के कारण-
रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और सुविधाओं का अभाव(सडक,बिजली,पानी,)
रोजगार- रोजगार हेतु, केवल कृषि, गोपालन, बकरी पालन, लघुउद्योग,कुटीर उद्योग आदि।
कृषि- सभी जैविक खेती
कोदा(मंडुवा), झंगोरा,धान ,मक्का, गेहूँ, जौ,चोलाई,ओगल,
गहत,सोयाबीन,राजमा,भट्ट,तोर,और सभी प्रकार की दालें
मिर्च, अदरक, हल्दी,अरबी आदि।
बहुत प्रकार की शब्जियां-मूली, कद्दू, लौकी, तोरी, भिन्डी, ककडी, आदि।
बहुत प्रकार की जडी-बूटियां
जिसको पारम्परिक आयुर्वैदिक चिकित्सा मे उपयोग किया जाता था। उस समय सभी वर्ष भर अपनी खेती से ही अपना अनाज उगाकर परिवारों का पालन -पोषण करते थे।अर्थात शुद्ध कृषि आधारित जीवन पद्धति थी। बडी और गम्भीर बीमारियां बहुत दूर थी। कारण था। शुद्ध जैविक खेती के अनाज का खान-पान।
आज ये सब विलुप्त के कगार पर हैं।
क्योंकि इनको सम्भालने और संवर्द्धन करने वाले सभी पलायन कर गये।
कारण रहे। आम जनता, सामाजिक संगठनों, और सरकारी नीतियों की नीरसता से।
जहां यहां के मूल निवासी पलायन कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ भूमाफियाओं की गिद्ध नजर इन पहाडो पर है और काफी हदतक खरीद -फरोक्त चल रही है।
आज स्थिति यह है कि उत्तराखंड के गांव के गांव खाली, हो गये है। वीरान गांव, टूटे मकान, बंजर होते खेत -खलियान, बढते जंगल और झाडियां,
और इनमे जंगली जानवरों का बसेरा,जो कृषि और मानव के लिए बहुत खतरे बन गये हैं।
आज सरकार ने गांवों-गांवों मे रोड पहुंचा दी है। और विद्यालय खोले हैं। मगर गांवों मे लोग नहीं। और विद्यालयों मे छात्र नहीं।पलायन होने से कई सरकारी रोजगार के अवसर,/पद कम हो गये। सरकारी/प्राइवेट विद्यालय बन्द हो गये। शिक्षकों, पटवारी,पंचायत मंत्री, स्वास्थ्य सेवाओं, कृषि से सम्बधित पद स्वतः ही कम हो गये है। इनसे सम्बधित, कार्यालय /बिल्डिंग खण्डर
बन रहे हैं। ग्राम विकास से सम्बधित मकान, गौशाला खेत, खलियान, नाले, धारे, कृषि खेत, सब खण्डर और बन्जर होते जा रहे हैं।
इन सबके लिए सामूहिक रुप से सब जिम्मेदार है। आम जनता, सामाजिक संगठन, और सरकारें।
पलायन रोकने हेतु यदि हम सब सामूहिक रूप से धरातल पर कार्य नहीं करेंगे तो फिर भविष्य का बहुत बडा खतरा सबके सामने खडा है।
पलायन रोकने हेतु उपाय-
आम जनता गांवों मे ही स्वरोजगार की तरफ कार्य करे।
1-जैसे-नगदी फसल-मिर्च, अदरक, हल्दी, लहसुन, प्याज, धनिया, को उगाये
2- शुद्ध जैविक और पारम्परिक खेती-मंडुवा, झंगोरा, सरसों जौ, गेहूं,विभिन्न,दालों का उत्पादन, और मौसमी शब्जियों कि उत्पादन
3-बागवनी,नींबू,मौसमी,नाशपाती,आडू,आखरोट आदि फलों की बागवानी और उत्पादन।
4-बकरी पालन, गोपालन, मौन पालन, भैंस पालन और डेरी का कार्य
5-सरकार की नीतियां यदि समस्यानुकूल बने तो जरुर अच्छे परिणाम आ सकते हैं
1-न्याय पंचायत/ग्रामसभा स्तर पर ग्राम विकास समितियों का गठन।
2-ग्राम विकास योजनाओं का सरलीकरण और उपरोक्त स्तर पर स्वरोजगार हेतु युवाओं को मानदेय सहित ग्राम विकास/कृषि,स्वरोजगार आधारित लक्ष्य ।
3-सरकारी संस्थाओं मे पर्याप्त कर्मचारी जैसे -विद्यालयों, ग्रामविकास, स्वास्थ्य केन्द्रों आदि पर
यदि गांवों से पलायन रूकेगा तो जनसंख्या गांवों मे होगी और सरकारी संस्थान तरक्की करेंगे। विद्यालयोंमे छात्र संख्या बढेगी।
ऐसे मे सबकी सामूहिक जिम्मेदारी बनती है। पलायन को रोकना।