राजा राममोहन राय ने कौन-कौन से सुधार किये?
राजा राममोहनराय का जन्म 22मई 1772को बंगाल के राधानगर मे हुआ था। वे आधुनिक भारत के पुर्नजागरण के प्रणेता और एक अथक समाज सुधारक थे। 18वीं और 19 वीं सदी मे भारत मे किये गये उल्लेखनीय परिवर्तनों के कारण उनका भारतीय पुनर्जागरण का
जनक कहा जाता है। उनके पिता का नाम रामाकांता और माता का नाम तारणी देवी था। उन्हें उच्च शिक्षा केलिए पटना भेजा गया। जहां उन्होंने फारसी और अरबी का अध्ययन किया। ।राजा राम मोहन ने बांग्लाभाषा, संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी भी सीख ली थी। वे वाराणसी गये। और वेदों उपनिषदों और हिंदू दर्शन का अध्ययन किया। उन्होंने ईसाई धर्म और इस्लाम का भी अध्ययन किया। धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में राजा
राममोहन ने 1815 में आत्मीय सभा,1821 में कोलकाता यूनिटेरियन एसोसिएशन और 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की। 1803 से 1814 तक ईष्ट इंडिया कम्पनी के लिए वुडफोर्ड और डिग्बी के अन्तर्गत दीवान के रूप मे काम किया।1814मे उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने जीवन को धार्मिक सामाजिक एवं
राजनीतिक सुधारों के लिए समर्पित कर दिया।और कलकत्ता चले गये। अपने एक संबोधन में टैगोर ने राम मोहन राय को भारत में कहा था कि वे उद्घाटनकर्ता के रूप में भारतीय इतिहास का एक चमकता सितारा कहा। इसीलिये उनको पुनर्जागरण का अग्रदूत आधुनिक भारत का कहा जाता है। राजा राममोहन राय ने अंधविश्वास और नकली दवाओं के उपयोग के खिलाफ अभियान चलाया उन्होंने बाल विवाह,विधवा विवाह महिलाओं के निरक्षरता के लिए अभियान चलाया। हिंदू समाज की कथित बुराई के खिलाफ लड़ाई लड़ी। भारतीय इतिहास के गुप्त
काल में 533 ईसवी के आसपास सती प्रथा के होने के प्रमाण मिलते हैं। महाराजा भानु प्रताप की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी पत्नी ने अपने प्राण त्याग दिए थे। महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने आवाज उठाई उन्हीं के प्रयासों से 4 दिसंबर 1829को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत में सती प्रथा पर रोक लगायी गयी। और राजा राममोहन राय भारत मे माहौल न बिगडे़ के कारण विदेश चले गये। उन्होने वंचितो,महिलाओं की शिक्षा का भी प्रबन्ध किया।
1835 मे उन्होने वेदान्त कालेज की स्थापना की। जहां भारतीय शिक्षण और पश्चिमी सामाजिक एवं भौतिक विज्ञान दोनों पाठ्यक्रमो को पाया जाता था। इसके साथ -साथ उन्होने आर्थिक सुधार, प्रेस की स्वतंत्रता, कराधान सुधार, प्रशासनिक सुधार भी किये। उनकी मृत्यु 27 मई 1833 को हुई।