काफल बहुत गुणकारी और औषधीयफल
काफल उत्तरी भारत और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है। यह पौधा 1300 मीटर से 2100 मीटर अर्थात 4000 फीट से 6000 फीट तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। यह अधिकतर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर पूर्वी राज्यों मेघालय,त्रिपुरा और नेपाल में पाया जाता है। इसे बॉक्स मर्डर, और
बेबेरी भी कहा जाता है।यह स्वाद मे खट्टा मीठा होता है। काफल का वैज्ञानिक नाम मिरिका एस्कुलेंटा है। ग्रीष्म काल में इस पर लगने वाले फलोंं को पहाड़ी इलाकों में विशेष रूप से लोग इसे बडे चाव से खाते है। गर्मी के मौसम में यह फल थकान दूर करने के साथ ही तमाम औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके सेवन से कैंसर जैसी बीमारी का खतरा कम हो जाता है।
एंटीऑक्सीडेंट तत्व होने के कारण इसे खाने से पेट से संबंधित रोगों से निजात मिलता है। यह फल बाजार में 2 महीनों के लगभग उपलब्ध रहता है।यह पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार का भी एक अवसर देता है। गुठली से युक्त यह फल प्रारंभिक अवस्था में हरा रंग का होता है।और अप्रैल माह के आखिर में यह फल पकना शुरू हो जाता है।पकने पर इसका रंग बेहद लाल हो जाता है आजकल बाजार में इसका मूल्य लगभग 400₹ प्रति किलो के
हिसाब से हैं।इसके फलों का रस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।काफल के छाल, फल,बीज,फूल ,सभी का इस्तेमाल आयुर्वेविज्ञान में किया जाता है। काफल सांस संबंधी समस्याओं डायबिटीज, पाइल्स, मोटापा, सूजन, जलन, मुंह में छाले,मूत्र दोष बुखार ,अपच और शुक्राणु के लिए फायदेमंद होने के साथ ही दर्द निवारण में भी उत्तम है। इसका इस्तेमाल मानसिक बीमारियों के इलाज के लिए भी होता है। उत्तराखंड मे पौडी, लैन्सडौन, गुमखाल, नैनीताल, अल्मोडा, पिथौरागढ आदि क्षेत्रों मे सडको के किनारों पर यह फल बिकता रहता है। अवसर मिलने पर इस फल का सेवन जरूर करना चाहिए।