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Showing posts from May, 2023

तम्बाकू कितना खतरनाक है स्वास्थ्य के लिए?World No Tobacco 2024

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  हर साल 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य तंबाकू खाने से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और खतरों के बारे में जागरूकता फैलाना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आज पूरी दुनिया में 1.3 अरब लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। और हर साल इसकी वजह से 80 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। इस दिन संयुक्त राष्ट्र समेत कई वैश्विक संगठन मिलकर दुनिया भर  मे तंबाकू के इस्तेमाल को कैसे कम किया जाए। इस पर गोष्ठियां और विचार मंथन करके जागरूकता फैलाने का कार्य करते हैं। इस वर्ष 2024 विश्व तंबाकू निषेद दिवस की थीम है।बच्चों को तंबाकू उद्योग के निषेद से बचाना।हर साल विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर एक अलग थीम रखा जाता है। तंबाकू की खोज सर्वप्रथम मेसोअमेरिका और दक्षिणअमेरिका के मूल निवासियों द्वारा की गई थी। और बाद में यूरोप और शेष विश्व में इसकी शुरुआत हुई थी। पुरातात्विक खोजों से संकेत मिलता है कि अमेरिका में मनुष्यों ने 12,300 साल पहले ही से ही तंबाकू का उपयोग करना शुरू कर दिया था। तम्बाकू धीरे- धीरे शरीर को खोखला और कमजोर कर देता है। इसलिए इसे मीठा जहर भी कह...

क्यों है गोवा पर्यटकों के लिए आकृषण का केन्द्र ?

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  ः प्राचीन साहित्य में गोवा को कई नामों से जाना जाता है गुमांचला, गोपकपट्टन, सिंदापुर  गोमांतक आदि। गोवा के प्राचीन इतिहास का आरंभ तीसरी सदी ईसा पूर्व से शुरू होता है। जब यहां मौर्य वंश के शासन की स्थापना हुई थी। बाद में पहली सदी के आरंभ में इस पर कोल्हापुर के सातवाहन वंश के शासकों का अधिकार स्थापित हुआ।  और फिर बादामी के चालुक्य शासकों ने इस पर 580 ईस्वी से 750 ईसवी पर राज किया।और 1510 से शुरू हुआ पुर्तगाली शासन गोवा के लोगों को 451 सालों तक झेलना पड़ा। 19 दिसम्बर 1961 को गोवा आजाद हुआ।  यानी भारत की आजादी  के करीब साढे 14 साल बाद। वास्कोडिगामा ने 1498  को भारत और उसके पड़ोसी  राज्यों की यात्रा की। 12 सालों के भीतर  ही पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्जा जमा लिया।1510 मे पूर्तगालियों ने एक स्थानीय सहयोगी तिमय्या की मदद से सत्तारूढ बीजापुर के राजाओं को कराया, जिसके बाद (वेल्हा) गोवा मे एक स्थायी समझौता हुआ। मसालों के ब्यापार के कारण पुर्तगाली प्रभुत्व के दौरान गोवा अपने स्वर्ण युग मे आया। 17 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना गोवा में प्रवेश करती है।आपरेशन विप...

क्या वीर सावरकर जी सच्चे देशभक्त थे?

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  स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक के भागपुर गांव मे हुआ था। सावरकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होने स्नातक की पढाई फर्गयूसन कालेज से  पूर्ण की युवावस्था मे उन्होने मित्र मेला नाम से एक युवा समूह का आयोजन किया। उनके प्रेरणा के स्रोत लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक, और विपिनचन्दपाल जैसे गरम दल के नेता थे। वे भारत की स्वतन्त्रता के लिए कई क्रान्तिकारी गतिविधियों को चलाते रहते थे। और अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण अंग्रेजो ने उनको पचास साल की 1911मे  सजा सुनाई।  और उसमे भी उन्हें  काला पानी के नाम से मशहूर सेलुलर जेल मे बन्द कर दिया गया था। उन्हें जेल मे कठोर यातनायें दी जाती थी। फिर भी उन्होने हार नहीं मानी। अर्थात काला पानी की क्रूर यातनाओं को झेलकर भी अडिग भाव से राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए संघर्ष करते रहे। अंडमान की सेल्यूलर जेल  की कालकोठरी मे आज भी उनके राष्ट्र तप की अमिट स्मृतियां संचित हैं। एक कल्पना करने वाला विषय  सावरकर जी के बारे में है 30 वर्ष का पति जेल के सलाखों के भीतर खड़ा है। और बाहर उसकी युवा पत्नी...

हिंसालू किडनियों के लिए कैसे है गुणकारी?Hinsalu

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  हिंसालू उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके में पाए जाने वाला एक जंगली रस से भरा स्वादिष्ट फल है। यह देखने में जितना आकृषक होता है। उतना ही औषधीय गुणों से भी भरपूर भी होता है। यह फल अप्रैल से मई के महीने में पकता है।  रूखी सूखी जमीन पर होने वाली कंटीली झाड़ी पर होता है। इसका बॉटनिकल नाम रूबस एलिप्टिकस है। हिंसालु का फल 700 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर मिलता है।हिसालु फल दो तरह का होता है।  काला और पीला उच्च हिमालय क्षेत्र में पाया जाने वाला फल है।  इसका लेटिन नाम रबस इलिप्टिकस है। हिंसालू दो प्रकार के होते हैं। जो पीला और काले रंग का होता है पीले रंग का है हिंसालू आम है। लेकिन काले रंग का है इतना आम नहीं है। यह कम मात्रा मे मिलता है।  एक अच्छी तरह से पका हुआ हिसालु का स्वाद मीठा और कम खट्टा होता है। यह फल इतना कोमल होता है कि हाथ मे पकड़ते ही टूट जाता है। एवं जीव में रखो तो पिघलने लगता है। इसकी पत्तियों की ताजी कोपलों को ब्रह्मी की पत्तियों एवं दूर्वा के साथ मिलाकर के  रस निकालकर पेप्टिक अल्सर की चिकित्सा की जाती है। इसके फलों से प्राप्त रस का प्रयोग बुखार, पेट दर्द...

क्या किनगोडा़ मे है शुगर का रामबाण इलाज?

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  किनगोडा़ अर्थात दारूहल्दी उत्तराखंड के स्थानीय भाषा में इस पौधे को किनगोडा़ या किलमोडा़ कहा जाता है।इसकी पूरे विश्व मे लगभग450 प्रजातियां हैं यह पौधा समुद्रतल से लगभग 1200 मीटर से 1800 मीटर तक की ऊँचाई पर उगता है। और 2से 3 मीटर ऊंचाई तक इसका पौधा होता है। इसका फल अप्रैल से जून तक पकता है। यह एक बेहतरीन एंटीबायोटिक पौधा है। साथ ही इसमें अन्य औषधीय गुण भी हैं।  इसका वानस्पतिक नाम बेरवेरीज एरिस्टाटा है। इसकी जड़ों को रात को पानी में भिगोकर सुबह खाली पेट पीने से शुगर रोग को ठीक किया जा सकता है। अर्थात इसमे  शुगर का  रामबाण इलाज है।  साथ ही यह पीलिया के रोगियों के लिए भी लाभदायक होता है। इसके फलों का सेवन करने से मूत्र संबंधी बीमारियों से छुटकारा मिलता है। और इसके फल में विटामिन सी होता है जो त्वचा के रोगों के लिए बहुत फायदेमंद है। इसकी जड़ से बरवरिश नामक होम्योपैथिक दवाई बनाई जाती है।और एल्कोहल पेय भी बनाये जाते हैं।  दारूहल्दी एंटी इम्फलेन्ट्री,एंटीट्यूमर,और एंटी वायरल गुण पाए जाते हैं।इसके छाल से प्राकृतिक रंग भी तैयार किये जाते है।इसके फूलों से चटनी बनायी ...

राजा राममोहन राय ने कौन-कौन से सुधार किये?

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  राजा राममोहनराय  का जन्म 22मई 1772को बंगाल के राधानगर मे हुआ था। वे आधुनिक भारत के पुर्नजागरण के प्रणेता और एक अथक समाज सुधारक थे। 18वीं और 19 वीं सदी मे भारत मे किये गये उल्लेखनीय परिवर्तनों के कारण उनका भारतीय पुनर्जागरण का  जनक कहा जाता है। उनके पिता का नाम रामाकांता और माता का नाम तारणी देवी था। उन्हें  उच्च शिक्षा केलिए पटना भेजा गया। जहां उन्होंने फारसी और अरबी का अध्ययन किया। ।राजा राम मोहन ने बांग्लाभाषा, संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी भी सीख ली थी। वे वाराणसी गये। और वेदों उपनिषदों और हिंदू दर्शन का अध्ययन किया। उन्होंने ईसाई धर्म और इस्लाम का भी अध्ययन किया। धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में राजा  राममोहन ने 1815 में आत्मीय सभा,1821 में कोलकाता यूनिटेरियन एसोसिएशन और 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की। 1803 से 1814 तक ईष्ट इंडिया कम्पनी के लिए वुडफोर्ड और डिग्बी के अन्तर्गत दीवान के रूप मे काम किया।1814मे  उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने जीवन को धार्मिक सामाजिक एवं  राजनीतिक सुधारों के लिए समर्पित कर दिया।और कलकत्ता चले गये। अपने एक स...

क्या तिमला फल मे मिला कैंसर का इलाज?

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  तिमला एक ऐसा मौसमी फल  जिसका उपयोग बहुत प्रकार से किया जाता है। यह उत्तराखंड, हिमाचल, भूटान, नेपाल,म्यामार दक्षिणीअमेरिका, वियतनाम आदि जगहों पर पाया जाता है। इसको अंग्रेजी मे Elephant fig कहते है।उत्तराखंड मे इसके  पत्तों को शुद्ध माना जाता है इसलिए तिमला के पत्तों का प्रयोग  देवी देवताओं के पूजा पाठ में किया जाता है।  उत्तराखंड में इस फल को जंगली प्रजाति में रखा गया है। इसलिए इसकी विशेष रूप से बागवानी नहीं की जाती है। तिमला के अन्दर कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के रोकथाम के गुण होते हैं। तिमला एक मौसमी फल होने के कारण इसका कई उद्योगों में उपयोग किया जाता है।इसका उपयोग हम सब्जी जैम, जेली, तथा  फार्मासिटिकल,न्यूट्रास्यूटिकल, एवं बेकरी उद्योग में बहुतायत मात्रा में उपयोग किया जाता है।  उत्तराखंड में तिमला समुद्र तल से 800 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। यह एग्रोफोरेस्ट्री के अंतर्गत आता है।स्वतः ही खेतों की मेड़ पर उग जाता है।पाने फर जिसको बड़े चाव से खाया जाता है इसकी पत्तियों बड़े आकार के होने के कारण पशु चारे के लिए  उपयोग में किया जाता है।ति...

काफल बहुत गुणकारी और औषधीयफल

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  काफल उत्तरी भारत और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है। यह पौधा 1300 मीटर से 2100 मीटर अर्थात 4000 फीट से 6000 फीट तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। यह अधिकतर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर पूर्वी राज्यों मेघालय,त्रिपुरा और नेपाल में पाया जाता है। इसे बॉक्स मर्डर, और  बेबेरी भी कहा जाता है।यह स्वाद मे  खट्टा मीठा होता है। काफल का वैज्ञानिक नाम मिरिका एस्कुलेंटा है। ग्रीष्म काल में इस पर लगने वाले फलोंं को पहाड़ी इलाकों में विशेष रूप से लोग इसे बडे चाव से खाते है। गर्मी के मौसम में यह फल थकान दूर करने के साथ ही तमाम औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके सेवन से कैंसर जैसी बीमारी का खतरा कम हो जाता है। एंटीऑक्सीडेंट तत्व होने के कारण इसे खाने से पेट से संबंधित रोगों से निजात मिलता है। यह फल बाजार में 2 महीनों के लगभग उपलब्ध रहता है।यह पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार का भी एक अवसर देता है। गुठली से युक्त यह फल प्रारंभिक अवस्था में  हरा रंग का होता है।और अप्रैल माह के आखिर में यह फल पकना शुरू हो जाता है।पकने पर इसका रंग बेहद लाल हो जाता है आजकल बाजार में इसका...

विश्व दूर संचार दिवस 2024 की थीम क्या है? World Telecommunication day 2024

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  विश्व दूरसंचार का शुभारंभ 17मई 1969 को हुआ।दूरसंचार का अर्थ है सूचनाओं का आदान-प्रदान आज विश्व में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए बहुत प्रकार के माध्यम  विकसित हो चुके हैं दूर के लोगों को सूचना को पहुंचाना, किसी व्यक्ति द्वारा अपने विचार को दूसरों तक पहुंचाने को ही दूरसंचार कहते हैं। दूरसंचार के आज बहुत प्रकार के माध्यम बन गए हैं, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया,टेलीविजन  इंटरनेट  फेसबुक, रेडियो,मोबाइल  व्हाट्सएप,इन्टाग्राम,आदि वहीं प्रिन्ट मीडिया मे  दैनिक अखबार, विभिन्न पत्र-पत्रिकायें आदि। ये सारे संचार के साधन बन चुके हैं आज सूचना संचार के माध्यम से विश्व भर ने बहुत तरक्की कर ली है,आर्थिक,शिक्षा,स्वास्थ्य,सामाजिक विकास आदि।  विश्व संचार दिवस का मकसद वैश्विक स्तर पर टेक्नोलॉजी और इंटरनेट के बारे में सकारात्मकता फैलाना है।विश्व दूरसंचार दिवस का उद्देश्य सुदूर और ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए सूचना और संचार दोनों को आसान बनाना है। विश्व दूरसंचार और सूचना समाज दिवस इंटरनेट और अन्य सूचना और संचार प्रौद्योगिकी राष्ट्र समाज और अर्थव्यवस्थ...

सिक्किम का भारत मे विलय कब हुआ?

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  सिक्किम का प्रारंभिक इतिहास  13 वीं शताब्दी में उत्तरी सिक्किम के काबलुंगत्सोक लेप्चाराजा थेकान्गटेक और तिब्बती युवराज ख्ये बुसा के बीच  समझौते से होता है। सिक्किम की स्थापना 1642 में हुई थी। पहला राजा चोग्याल सॉन्ग नामग्याल था।  सिक्किम पर तिब्बत, भूटान और नेपाल का लगातार आक्रमण आधिपत्य जमाने के कारण होते रहे।  लॉर्ड विलियम बेंटिक ने 1835 में सिक्किम दरबार में आंतरिक राजनीतिक गडबडियों का लाभ उठाकर दार्जिलिंग का कुछ इलाका कंपनी ने अपने कब्जे में ले लिया। 1841 में दार्जिलिंग को  ब्रिटिश कंपनी ने खरीद लिया। और 1861 की संन्धि के बाद सिक्किम एक संरक्षित राज्य बन गया। सिक्किम पर नियंत्रण ब्रिटेन की तिब्बत नीति का हिस्सा था। और 1975 में एक जनमत संग्रह करवाया गया। इसमे 97 प्रतिशत जनता ने भारत मे विलय होने का मत दिया। 16 मई 1975 को सिक्किम का पूर्ण विलय भारत के 22वें राज्य के रूप में हो गया।  सिक्किम भारत के एक बहुत ही खूबसूरत राज्यों में से है।जो भारत के उत्तरी पूर्वी भाग में स्थित है।सिक्किम अपनी उत्कृष्ट प्राकृतिक सुंदरता भव्य पहाड़ों सुंदर झरनों नदियों औ...

महान क्रान्तिकारी सुखदेव का जन्म कहां हुआ?

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  भारत के महान  क्रांतिकारियों में से एक सुखदेव थापर का जन्म  पंजाब के शहर लुधियाना में 15 मई 1907 को हुआ था। उनके पिता का नाम श्री रामलाल थापर और माताजी का नाम श्रीमती रल्ली देवी था। सुखदेव जब छोटे थे तभी उनके पिताजी का देहांत हो गया था। उसके बाद उनके चाचा ने ही उनकी देखभाल की थी।सुखदेव की प्रारंभिक शिक्षा  लायलपुर से हुई थी लायलपुर के सनातन धर्म हाई स्कूल से मैट्रिक पास कर आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने लाहौर नेशनल कॉलेज में प्रवेश किया।यहां उनकी भेंट भगत सिंह से हुई। 1922 में एंट्रेंस पास की ।  1919 में हुए जलियांवाला बाग के भीषण नरसंहार के कारण देश में बडे उत्तेजना का वातावरण बन गया था। इस समय सुखदेव 12 वर्ष के थे। पंजाब के प्रमुख नगरों में मार्सल ला लगा दिया गया था।उस समय स्कूल और कॉलेजों में तैनात ब्रिटिश अधिकारियों को भारतीय  छात्रों को सैल्यूट करना पड़ता था। लेकिन सुखदेव ने दृढ़ता पूर्वक ऐसा करने से मना कर दिया था। जिस कारण उन्हें मार भी खानी पडी़।उनके अन्दर देश प्रेम और क्रान्तिकारी विचारों की दृढता बढती गयी। नेशनल कालेज लाहौर मे सुखदेव की भगत सिंह स...

जंगलोंं मे आग लगने के परिणाम?

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  जंगलों में आग लगने से जंगल की जैविक विविधता पर बहुत अस्थाई नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जंगल मे आग लगने से बहुत प्रकार के पेड -पौधों की प्रजातियाँ, औषधीय पौधे, आदि विलुप्त होते हैं। कई जलाशय, पनघट मे जल समाप्त हो जाता है। जीव जंतुओं के रहने के ठिकाने खत्म हो जाते हैं। उनके चारे के पेड- पौधे,पत्तियां ,घास और दुर्लभ वनस्पतियां खत्म हो जाती हैं। पशु-पक्षियों, के नवीन बच्चे,मर जाते है। कई समुदायों की आर्थिक स्थिति को सीधे प्रभावित करती है। और फिर जैव विविधता का तन्त्र विगड़ता है।  पर्यावरण प्रदूषण बढता है। स्वच्छ हवा,का अभाव बढता है। जो जीव -जन्तुओं और मानव समाज के लिए समस्या बनती है। अप्रैल-मई वह मौसम होता है जब देश के विभिन्न भागों में जंगल मे आग लगने की अधिक घटनायें बढती है।  एक अध्ययन के अनुसार भारत में आग लगना ज्यादातर मानव निर्मित है। बीडी, सीग्रेट पीना और माचिस की  तिली को लापरवाही से फेंकना, एक सर्वे के अनुसार उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने के कारण जीव जंतुओं की कम से कम 4.5 हजार से ज्यादा प्रजातियाँ का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। विश्व भर में और और भारत में व...

क्यों है जरुरी विश्व नर्सेज दिवस

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  विश्व नर्सेज डे यह 12 मई को मनाया जाता है।बीमार लोगों को जितना डाक्टर ठीक करने मे भूमिका निभाते है। ( रोग की पहचान, दवाई, आपरेशन आदि )कार्यों को करते हैं। उतना ही हास्पिटल के बैड पर दवाई कैसे लेनी है। गुलकोज, इन्जेक्शन को समय से लगाने आदि सेवाओं को वार्ड की नर्स ही करती हैं। नर्सों के सेवा,  समर्पण, भाव को सम्मान देने के लिए  ही विश्व नर्सेज दिवस मनाया जाता है।इस दिन फ्लोरेंस नाइटिंगेल जो एक नर्स थी जिसने क्रीमिया युद्ध के दौरान बहुत सेवा और सराहनीय काम किया।उसने  घायलों के इलाज के लिए पूरे रात और दिन समर्पण भाव से कार्य किया।  फ्लोरेंस नाइटिंगेल को दुनिया की पहली नर्स भी जाता है। उन्होंने नर्सिंग को एक विषय के रूप में स्थापित किया था।  यही वजह है कि उनके जन्मदिन को अंतर्राष्ट्रीय नर्सेज डे के रूप में मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय नर्सेज डे को मनाने की शुरुआत मरीजों के प्रति नर्सेज की सेवा, साहस,सयर्पण, और उनके सराहनीय कार्यों के प्रति सम्मान जगाने के उद्देश्य से हर साल मनाया जाता है हॉस्पिटलों में मरीजों को ठीक करने में डॉक्टर की एक अहम और बड़ी भूमिका हो...

भारत परमाणु सम्पन्न कब बना?

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  11 मई 1998 को भारत ने राजस्थान के पोखरण में जब परमाणु परीक्षण किए थे।अचानक किये गये इन परमाणु परीक्षणों से पूरी दुनिया हैरान रह गयी। अमेरिका के सेटेलाईट भी इन परीक्षणों को कैच नहीं कर पाये। और न ही  दुनिया के किसी भी देश को इसका पता चला। उसके बाद भारत का नाम न्यूक्ललियर हथियारों वाले देशों की लिस्ट में  शामिल हो गया था। 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस यानी नेशनल टेक्नोलॉजी डे के रूप में भी मनाया जाता है।इस परीक्षण का नाम ऑपरेशन शक्ति था। इन परीक्षणों का नेतृत्व भारत के पूर्व  राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था। उस समय भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई थे। जिनकी दृढ इच्छा शक्ति से ये परीक्षण हुए। पहले सुबह 11 मई को ही भारत के पहले स्वदेशी विमान हंसा ने भी उड़ान भरी थी।जब राजस्थान में परमाणु परीक्षण किये जा रहे थे। 11 मई 1998 से पहले भारत ने 18 मई 1974 को पहला परमाणु परीक्षण किया था। उस समय   परीक्षण का नाम था इस्माइल बुद्धा ।दुनिया का सबसे पहले परमाणु बम का परीक्षण 16 जुलाई 1945 को अमेरिका में और 4 साल बाद सोवियत संघ ने अपना पहला परमाणु प...

1857 महान विद्रोह के क्या कारण थे?

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  भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत 10 मई 1857 से शुरू हुआ था।  ।यह आंदोलन मेरठ के सदर बाजार से शुरू हुआ था। और फिर यह पूरे देश में भड़क गया था0। अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए रणनीति तय की गई थी।  एक साथ पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजाना था। लेकिन मेरठ में तय तारीख से पहले ही अंग्रेजो के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। राजकीय स्वतंत्रता संग्रहालय में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित रिकॉर्ड को देखें तो 10 मई 1857 को शाम 5:00 बजे जब गिरजाघर का घंटा बजा तब लोग घरों से निकलकर सड़कों पर  एकत्रित होने लगे थे। सदर बाजार क्षेत्र से अंग्रेजी फौज पर लोगों की भीड़ ने हमला बोल दिया 9 मई को कोर्ट मार्शल में चर्बी युक्त कारतूस उनको प्रयोग करने से इनकार करने वाले 85 सैनिकों का कोर्ट मार्शल किया गया था। उन्हें विक्टोरिया पार्क स्थित  जेल में बेडि़यों और जंजीरों से जगड़कर बंद कर दिया गया था। और 10 मई की शाम को ही इस जेल को तोड़कर 85  भारतीय सैनिकों को आजाद करा दिया गया था। कुछ सैनिक तो रात में ही दिल्ली पहुंच गए थे।और कुछ सैनिक 11 मई की सुबह यह...

कौन थे महाराणा प्रताप?

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  9 मई 1540 को राजस्थान के मेवाड राजपूत राजघराने मे जन्मे  महाराणा प्रताप जो एक पराक्रमी  योद्धा, कूटनीतिज्ञ राजनीतिज्ञ मानसिक और शारीरिक रुप से अद्वितीय थे। उनकी लंबाई 7 फीट और 5 इन्च थी। और वजन 110 किलोग्राम था। वे 72 किलो के  कवच को छाती पर पहने थे। उनका 81 किलो  का भाला होता था।  जिसे वे एक हाथ से फेंकते थे।और अचूक निशाना होता था। वे अपने पास हमेशा 208 किलो की दो वजनदार तलवारों को लेकर चलते थे। हल्दी घाटी के युद्ध मे महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल को देखकर अकबर बहुत बुरी तरह से डर गया था। वह सपने में भी राणा के नाम से डरता था। यही नहीं लंबे समय तक राणा की तलवार अकबर के मन में डर के रूप में बैठे हुए थे।  अकबर को इतना डर लगने लगा था कि डर के मारे  लंबे समय तक अकबर ने अपनी राजधानी पहले लाहौर बनायी और  राणा के मरने के बाद आगरा ले जाने का फैसला लिया। हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने अकबर को नाकों चने चबा दिए थे।और कहते हैं कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत हुई थी।वे युद्ध रणनीति मे कुशल और कभी हार न मानने वाले योद्धा थे। उन्होने आन, ...

नोबेल सम्मानित रवीन्द्र नाथ ठाकुर क्यों अमर हैं

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  रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई 1861को कोलकाता पश्चिम बंगाल में हुआ था।  वे एक विश्वविख्यात कवि, कहानीकार,गीतकार  संगीतकार  नाटककार, निबंधकार, चित्रकार,दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता थे। भारतीय संस्कृति की सर्वश्रेष्ठ रूप से पश्चिमी देशों को परिचय और पश्चिमी देशों की संस्कृति से भारत का परिचय कराने में टैगोर की बड़ी भूमिका रही। रविंद्र नाथ टैगोर को 1913 में उनके साहित्य गींताजलि के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। वह पहले भारतीय और गैर यूरोपीय व्यक्ति थे। जिनको नोबेल पुरस्कार मिला था। उन्होंने नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद नाइटहुड की उपाधि को लौटा दी थी।1911 मे उन्होने भारत के राष्ट्रगान की रचना जनगण मन की रचना की थी। उन्हें आमतौर पर आधुनिक भारत का असाधारण सर्जनशील कलाकार माना जाता है। टैगोर को प्रकृति से बहुत प्यार था।वह गुरुदेव के नाम से लोकप्रिय थे।बांग्लादेश के राष्ट्र गान के भी वे रचयिता है। वे एक अद्भुत प्रतिभा के धनी थे। उनके सम्पूर्ण जीवन से प्रेरणा ली जा सकती है। इस प्रकार के साहित्यकार कई  युगों मे धरती पर जन्म लेते हैं।   साहित्यकार...

महात्मा गौतम बुद्ध कौन थे? Mahatma gautam bhudh

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  बुद्ध पूर्णिमा महात्मा गौतम बुद्ध का जन्मदिवस है। महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व लुंबिनी नेपाल में पूर्णिमा के दिन हुआ था।उनको भगवान विष्णु का 9वाँ अवतार माना जाता है।बौद्ध धर्म के त्रिरत्न बुद्ध,धम्म,और संघ हैं। महात्माँ गौतम ही बौद्ध धर्म के संस्थापक थे।उन्हें एशिया का ज्योति पुंज भी कहा जाता है।23 मई 2024 को  गौतम बुद्ध जी की 2586 वीं जयन्ती है। जन्म 7 दिन बाद उनकी माता जी का स्वर्गवास हो गया  था। गौतम बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था उन्होंने गुरु विश्वामित्र से  वेद और उपनिषदों की शिक्षा ली राजकाज और युद्ध विद्या की भी शिक्षा ली कुश्ती घूडदौड तीर कमान रथ हांकने में भी वे बहुत सक्षम थे। उनका मन बचपन से ही करुणा भरा था उनसे किसी भी प्राणी का दुख नहीं देखा जाता था। गौतम बुद्ध ने पूरे संसार को शांति और अहिंसा का मार्ग दिखाया था।  जब पूरा भारत हिंसा,अशांति और अंधविश्वास की बेडियों से जकड़ा हुआ था।उस समय गौतम बुद्ध ने लोगों को इन दुःखों से मुक्त किया।  बौद्धकाल में शिक्षा मनुष्य के सर्वांगीण विकास का साधन था। इसका उद्देश्य मात्र पुस्तके ज्ञान प्...

ऊर्जा मे कोयले का महत्व

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  राष्ट्रीय कोयला खनिक दिवस 4 मई को मनाया जाता है। यह दिन उन हजारों कोयला खनन करने वाले श्रमिकों की कड़ी मेहनत और समर्पण को स्वीकार करने और सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। भारत विश्व के खनिज सम्पन्न  देशों मे से एक है। कोयला खनिज भी उनमे से एक है। कोयला एक ठोस कार्बनिक पदार्थ है। भारत मे मुख्य रूप से तीन प्रकार का कोयला मिलता है। 1- लिग्नाइट, 2-बिटुमिनस,3-एन्थ्रेसाइट,इनमे से सबसे उच्च गुणवत्ता का कोयला एन्थेसाइट है। भारत मे लगभग 319अरब टन का कोयला भण्डार है। भारत कोयले भण्डार मे विश्व मे 5वें स्थान पर है। कुल प्रयुक्त ऊर्जा का50-55प्रतिशत भाग कोयले से प्राप्त किया जाता है। कोयला श्रमिक जो इस खतरनाक क्षेत्र में काम करते हैं। और देश के नागरिकों को सुख-सुविधाओं से भरा जीवन जीने के लिए देते हैं। कोयला ऊर्जा के मूलभूत स्रोतों मे से एक है।  यह सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिक जीवाश्म ईंधनोंमें से एक है। जो कार्बन से भरपूर है। खनिक हर दिन सुरंग खोदकर और कोयला निकाल कर अपनी जान जोखिम में डालते हैं। कई खनिक फेफड़ों की बीमारियों का सामना करते हैं इसीलिए कोयला खनन सबसे खतरनाक व्यवसायों मे...

उत्तराखंड से पलायन भविष्य के लिए खतरे की घण्टी

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 उत्तराखंड से पलायन को रोकना एक  बहुत बडी चूनौती बन चुकी है। 9 नवम्बर 2000 को उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था। पलायन तो इससे पहले भी होता था। परन्तु वह बहुत कम स्तर पर था। विगत 15 सालों मे बहुत बडे पैमाने पर पलायन हुआ है। जो आज भी बहुत तेजी से जारी है।अगर हम उत्तराखंड के अतीत को देखेंगे तो बहुत उत्कृष्ट संस्कृति,रीती-रिवाज,खान-पान मीठी, बोली -भाषा,सौम्य, ईमानदार, और देश प्रेम की वेश -भूषा,सभी कार्य मिल-जुलकर करना। दुखःऔर सुख मे सबका एक साथ रहना। ये यहां की मूल संस्कृति है।  यहां पलायन के कारण- रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और सुविधाओं का अभाव(सडक,बिजली,पानी,) रोजगार- रोजगार हेतु, केवल कृषि, गोपालन, बकरी पालन, लघुउद्योग,कुटीर उद्योग आदि।  कृषि-  सभी जैविक खेती कोदा(मंडुवा), झंगोरा,धान ,मक्का, गेहूँ, जौ,चोलाई,ओगल,  गहत,सोयाबीन,राजमा,भट्ट,तोर,और सभी प्रकार की दालें मिर्च, अदरक, हल्दी,अरबी आदि।  बहुत प्रकार की शब्जियां-मूली, कद्दू, लौकी, तोरी, भिन्डी, ककडी, आदि।  बहुत प्रकार की जडी-बूटियां जिसको पारम्परिक आयुर्वैदिक चिकित्सा मे उपयोग किया जाता था। उस समय स...

भारत रत्न और आस्कर सम्मानित सत्यजित रे

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  सत्यजीत रे भारतीय सिनेमा को दुनिया में पहचान दिलाने वाले एक महान सख्सियत थे। सत्यजित रे का जन्म 2 मई 1921 को कोलकाता में हुआ था। सत्यजीत रे एक भारतीय फिल्म निर्देशक , लेखक, प्रकाशक, चित्रकार, सुलेखक संगीतज्ञ, कंपोजर ,ग्राफिक डिजाइनर,थे।जिन्हें 20वीं सदी का  सर्वोत्तम फिल्म निर्देशकों में गिना जाता है।  सत्यजीत रे ऐसे फिल्मकार थे जिन्होंने पश्चिमी जगत के फिल्म निर्देशकों को भी प्रभावित किया। उन्होंने कुल 36फिल्मों का निर्देशन किया। इनमें से 32 ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीते। 6 पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के थे। अकादमिक पुरस्कारों ने उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाजा गया। उनको 1992 में देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। फिल्म और लेखन के माध्यम से देश की सच्ची और मार्मिक तस्वीर प्रस्तुत करने वाले सत्यजीत रे ने अपने जीवन में कुल 29 फिल्में और 10डाक्यूमेन्ट्री फिल्में बनाई थी। सत्यजीत रे की पाथेर पांचाली फिल्म आदर्श फिल्म मानी जाती है। 32 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के विजेता सत्यजीत रे ने  प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल और विनोद बिहारी मुखर्ज...

क्या है अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस 2024 की थीम? International Labour Day 2024

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  विश्व के किसी भी क्षेत्र, देश और समाज के विकास मे श्रमशक्ति/मजदूरों की शक्ति का अहम रोल  होता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस सौ अधिक देशों में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। जो हमें लोकतंत्र के अधिकारों के लिए चल रहे संघर्ष, और काम का एक सहयोगी और भविष्य के निर्माण के महत्व की याद दिलाता है, सभी के लिए अच्छे कार्यों के अवसरों को बढ़ावा देने की पेशकश से लेकर, प्रस्ताव में लैंगिक समानता और स्थिरता की विचारधारा तक इस दिन को सकारात्मक बदलाव का एक मंच बनाया गया है। यह सामूहिक शक्ति न्याय के लिए चल रही लड़ाई और एक ऐसी दुनिया के निर्माण की महत्वपूर्ण याद दिलाती है, जहां हर किसी के योगदान को महत्व दिया जाता है,और संरक्षित किया जाता है। इसलिए 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है।  पहली बार मजदूर दिवस 1889 को अमेरिका मे मनाया गया। 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर मे मजदूर सड़कों पर आ गए अपने हक के लिए मजदूर हड़ताल पर बैठ गए इस आंदोलन का कारण मजदूरों की कार्य अवधि से था। उस समय मजदूरों से 1 दिन में 15 घंटे काम लिया जाता था। इस आंदोलन के दौरान मजदूरों पर पुलिस...