सरदार हरिसिंह नलवा क्यों एक महान योद्धा थे?

 


सरदार हरि सिंह नलवा महाराजा रणजीत सिंह की फौज के सबसे भरोसेमंद सैनिक कमांडर थे। हरिसिंह नलवा का जन्म 28अप्रैल 1791को पंजाब मे हुआ था। महाराजा रणजीत सिंह के शासन के दौरान 1807 ईस्वी से लेकर 1837 ईस्वी तक हरि सिंह नलवा ने लगातार अफगानों के  खिलाफ जटिल लड़ाईयां जीती। हरि सिंह



 नलवा ने पठानों के विरुद्ध कई युद्धों का नेतृत्व किया। रणनीति और युद्ध कौशलों की दृष्टि से हरी सिंह नलवा की तुलना भारत के श्रेष्ठ सेना नायकों मे की जा सकती है।   हरि सिंह नलवा ने 1813 में अटक, 1818 में मुल्तान  1819 में कश्मीर, और 1823, में पेशावर को महाराजा रणजीत सिंह की रियासत में मिला लिया था। इसके बाद सारे अफगान शासक हरिसिंह से खौफ खाने लगे। जब-जब हरिसिंह जंग के मैदान में उतरते और अपने दोनों हाथों में



 तलवार लेकर दुश्मन सैनिकों के सिर कलम करना शुरू करते तो दुश्मन डर के मारे बिना लड़े ही भाग जाते थे।हरि सिंह नलवा को लोग महान वीर योद्धा मानते थे और उनकी तुलना अंग्रेज नेपोलियन से किया करते थे। उनकी बहादुरी की वजह से उनको सरदार की उपाधि दी गई। वे कश्मीर ,हाजरा और पेशावर के गवर्नर रहे।उन्होंने कई अफगान योद्धाओं को शिकस्त दी और वहां के कई हिस्सों पर अपना वर्चस्व स्थापित किया ।उन्होंनेअफगानियों को खैबर दर्रे का इस्तेमाल करते हुए पंजाब में आने से रोका  19वीं सदी की शुरूआत तक खैबर दर्रा से ही विदेशी हमलावरों के लिए भारत आने का एकमात्र रास्ता था। इसी दरर्रे से अफगान लगातार पंजाब और दिल्ली आ रहे थे।तो महाराजा रणजीत सिंह ने अपने


 साम्राज्य की सुरक्षा के लिए दो तरह की सीमाएं बनाई एक सेना को व्यवस्थित रखने के लिए फ्रेंच,जर्मन, इटालियन, रशियन  युद्धक नियुक्त किए।  वहीं दूसरी सीमा हरिसिंह  नलवा के अंडर में थी। वह महाराजा रणजीत सिंह की सबसे बड़ी ताकत थे। हरी सिंह नलवा ने इस सेना के साथअफगानियों को कई बार मात दिया। नलवा की बहादुरी को सम्मान देते हुए 2013 में भारत सरकार ने उनके ऊपर एक डाक टिकट जारी किया था। हरि सिंह नलवा ने अफगानों के खिलाफ कई युद्धों मे हिस्सा लिया था। इन लड़ाइयों में



 उन्होंने अफगानों को कई  इलाकों से बेदखल कर दिया था। आज तक कोई भी इस तरह  से अफगानिस्तान पर पूरी तरह से काबिज नहीं हो पाया।  जैसा हरिसिंह नलवा हुए थे। उस समय अफगानिस्तानियों में हरि सिंह नलवा का बहुत बड़ा डर था।जब रात को वहां के बच्चे रोते थे। तो मां कहती थी चुप हो जाओ बच्चे वरना हरी सिंह नलवा आ जाएगा।हरिसिंह नलवा आ जायेगा।हरिसिंह नलवा को अफगानी सल्तनतों का कब्रगाह कहा जाता था।

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