नोबेल शान्ति सम्मानित दलाईलामा

31 मार्च 1959 को तिब्बत के धर्मगुरु ने भारत में कदम रखा था। 17 मार्च को  तिब्बत की राजधानी ल्हासा से पैदल ही निकले थे। और हिमालय की पहाडियों को  पार करते हुए 15 दिनों के बाद भारतीय सीमा में दाखिल हुए थे। यात्रा के दौरान उनकी और उनके सहयोगियों की कोई खबर नहीं आने पर कई लोगों की यह आशंका लगी थी।कि


 उनकी मौत हो गई होगी। दलाई लामा के साथ कुछ सैनिक और कैबिनेट के मंत्री भी थे। चीन की नजरों से बचने के लिए ये लोग सिर्फ रात को सफर करते थे।  87 साल के वे एक तिब्बती आध्यात्मिक नेता है।चीन तिब्बत पर अपना दावा पेश करता है। 87 साल के  दलाई लामा जिस देश मे जाते हैं वहां की सरकारों से चीन आधिकारिक तौर पर आपत्ति जताता है।चीन दलाई लामा को अलगाववादी मानता है। वह सोचता है कि दलाई लामा उसके लिए समस्या है। बौद्ध धर्म के अनुयाई दलाई लामा को एक दीपक की तरह देखते हैं। उन्हें शान्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। दूसरी तरफ इनके समर्थक अपने नेता के रूप में भी इन्हें देखते हैं। दलाई लामा को मुख्य रूप से शिक्षक के तौर पर देखा जाता है। लामा का मतलब गुरु होता है। जो अपने लोगों को


 सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं। तिब्बती बौद्ध धर्म के नेता दुनिया भर के सभी बौद्धौं का मार्गदर्शन करते हैं। दलाई लामा की चुनावी प्रक्रिया को लेकर ही विवाद रहा है। 40 सालों के बाद चीन के लोगों ने तिब्बत पर चीन का हक बनता है।करके तिब्बत कब्जा कर दिया। दलाई लामा को उनके अनुयाई एक जीवित ईश्वर के तौर पर देखते हैं।तो चीन उनको एक अलगाववादी खतरा मानता है। तिब्बत का इतिहास बहुत उथल- पुथल भरा रहा। कभी वह अपने को एक स्वतंत्र इलाका मानता था।  तो कभी मंगोलिया और चीन के ताकतवर राजवंश ने उस पर हुकूमत की। लेकिन साल 1950 में चीन ने इस इलाके पर अपना झंडा लहराने के लिए हजारों की संख्या में सैनिक भेज दिए तिब्बत के कुछ इलाकों को स्वायत्तशासी के क्षेत्र में बदल दिया। और बाकी भागों को चीन ने अपने प्रांतों में मिला दिया। लेकिन साल 1959 में चीन के खिलाफ हुई एक नाकाम विद्रोह के बाद जब 14 वें दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर


 भारत में शरण लेनी पड़ी।और भारत मे उन्होंने निर्वाचित सरकार का गठन किया। 60 और 70 के दशक में चीन की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान तिब्बत के ज्यादातर बौद्ध विहारों को नष्ट कर दिया गया। माना जाता है कि दमन और सैनिक शासन के दौरान हजारों तिब्बतियों की जाने गयी। चीन और तिब्बत के बीच का विवाद तिब्बत की कानूनी स्थिति को लेकर है। चीन कहता है कि तिब्बत 13 वी शताब्दी के मध्य से चीन का हिस्सा रहा है। लेकिन तिब्बतियों का कहना है कि तिब्बत कई शताब्दियों तक एक स्वतंत्र राज्य था। और चीन का उस पर निरंतर अधिकार कभी नहीं रहा। दलाई लामा को 1989 विश्व शांति का नोबेल सम्मान मिला। दलाई लामा का कहना है कि वह चीन से आजादी नहीं चाहते हैं लेकिन स्वायतत्ता चाहते हैं।
 1950 के दशक से चीन और दलाई लामा के बीच का शुरू हुआ विवाद अभी भी खत्म नहीं हुआ है। 1912 में 13वें दलाई लामा ने तिब्बत की स्वतंत्रता की घोषणा की थी। फिर 1951 में चीनी  सेना ने एक बार फिर तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया। दलाई लामा के भारत में रहने से चीन से  रिश्ते अक्सर खराब


 रहते हैं।   जब नोबेल समिति ने दलाई लामा को चुना तो समिति ने इस बात पर जोर दिया कि। उन्होंने अपने बौद्ध शांति दर्शन को सभी जीवित चीजों के प्रति सम्मान, और एक सार्वभौमिक जिम्मेदारी के विचार पर आधारित किया। जो मनुष्य और प्रकृति दोनों को गले लगाता है।

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