गौरैया संरक्षण अर्थात पर्यावरण संरक्षण
गौरैया करीब 10000 सालों से इंसानों के साथ सहजीवी बनकर रह रही है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में भारत के शहरी क्षेत्रों का विकास होने के कारण गौरैया विलुप्त होने के कगार पर है।एक वक्त था जब गौरैया का हर घर में बसेरा हुआ करता था।मगर आज यह प्रजाति संकट के कगार पर है। शहरों में तेजी से हो रहे निर्माण कार्यो के कारण इस बात की चिंता नहीं है कि लुप्त होती गौरैया को कैसे
बचाया जाए।एक दौर था जब पेड़ पौधे घर की छत वेंटिलेटर और खिड़कियां गौरैया के आशियाने हुआ करते थे। लेकिन पेड़ों की कटाई और अति निर्माण हो रहे भवनों और लोगों में पक्षियों के प्रति कम होते प्रेम के कारण आज उन्हें भोजन पानी मिलना भी दुश्वार हो गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार गौरया की संख्या में 60 से 80% की कमी आई है।लेकिन क्या आपको मालूम है कि अभी हमने थोड़ी सी कोशिश कर दी तो इस लुप्त होती प्रजाति को बचाया जा सकता है।
गौरैया पर्यावरण संरक्षण का कार्य भी करती है।पक्षी वैज्ञानिकों की मानें तो घोंसला बनाने की जगह में कमी आने के साथ साथ भोजन के लिए कीड़े और दानों की कमी आई है। और साथ ही रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग होने से गौरैया की जान जा रही है। बढ़ते शहरीकरण के अलावा मोबाइल टावर और मोबाइल फोन से निकलने वाले रेडिएशन से उनकी प्रजनन प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। गौरैया को बचाने की दिशा में कुछ बेहद कदम जरूरी है।
गौरैया को मिट्टी बहुत पसंद है। और वह उसके साथ सोती थी। इसमें बिल्डर्स की बड़ी अहम भूमिका हो सकती है। बिल्डर्स को चाहिए कि जब भी वह अपने प्रोजेक्ट डिजाइन करें तब उसमें ग्रीन एरिया जरुर छोड़ें।जहां पर बड़े आराम से गोरैया रह सके। मिट्टी में गोरैया को पसंदीदा कीड़े भी खाने को मिलते हैं। बिल्डर्स को यह सब करना जरूरी है। क्योंकि बडे-बडे अपार्टमेंट्स वे ही तैयार करते हैं। ग्राहकों को तो फ्लैट बस हवादार चाहिए। आज गौरैया के आशियाने और गौरैया को बचाने की जिम्मेदारी हम सबके कंधों पर है। गौरैया को बचाना अर्थात पर्यावरण को बचाना है।