महाशिवरात्रि क्या है?और क्यों मनाते है?
महाशिवरात्रि का पर्व हर साल फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाते हैं। भगवान शिव और माता सती के विवाह को समर्पित एक हिंदू पर्व है। इस दिन शिव भक्त उपवास और शिव मंदिरों में पूजा अर्चना करते हैं । (उपवास का अर्थ है समीप वास करना अर्थात भगवान के समीप वास करना।) भगवान शिव और माता सती के विवाह की कहानी इस प्रकार है। कहते हैं कि एक बार दंड का रण मे भगवान राम और लक्ष्मण जी माता सीता की खोज में विचरण कर रहे थे। इस कथा का उल्लेख श्रीमद् भागवत कथा और रामचरितमानस में भी है ।तो जब भगवान राम और लक्ष्मण जी दंड का रण माता सीता की खोज में विचरण कर रहे थे। तो तभी माता सती की नजर उन पर पड़ी ।और माता सती ने भगवान शिव से पूछा कि ये कौन है ।तो भगवान शिव ने कहा कि ये भगवान श्री रामचंद्र जी और उनके अनुज लक्ष्मण जी हैं जो अपनी भार्या की खोज में विचरण कर रहे हैं। इस पर पार्वती जी ने कहा कि भगवान हो करके ।इस प्रकार ब्याकुल और विचरण?ये भगवान नहीं हो सकते?ये सामान्य मानव होंगे? जरूर मुझे इनकी परीक्षा लेनी चाहिए। और ऐसा करके भगवान शिव के मना करने के बाद भी माता सती माता सीता का रूप बदलकर विचरण कर रहे भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी के समीप प्रकट होती हैं ।भगवान श्री राम अंतर्यामी थे।वे माता को पहचान गये। और प्रणाम करके माता सती से पूछा माता आपके दर्शन प्राप्त कर हम धन्य हुए। माता सती को आभास हो गया और वे वापस शिवाजी के पास गये।तभी भगवान शिव ने माता सती से कहा आपने सीता माता का रूप धारण कर लिया है अब आप मेरे लिए भी मां स्वरूप हो गई है। अतः मैं आपको मै अपनी भार्या के रूप में अब स्वीकार नहीं कर सकता। यह सुनकर माता पार्वती व्याकुल हो गई और वह अपने मायके कनखल मैं चली गई ।जहां पर माता सती के पिता राजा दक्ष का बहुत बड़ा यज्ञ हो रहा था। अपने मायके कनखल में पहुंचते हैं तो देखा कि उनके पिता जी ने यज्ञ हेतु सभी देवी देवताओं को आमंत्रण दिया है। लेकिन भगवान शिव को आमंत्रण नहीं दिया है। तो इससे नाराज होकर माता सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने आप को भस्म कर दिया। और सती हो गयी। इसके बाद उनका अगला जन्म पिता हिम नरेश और माता ममैना के घर हुआ। उनके माता -पिता ने उनका नाम पार्वर्त रखा। पार्वती जी बचपन से ही भगवान शिव को प्राप्त करना चाहती थी। और विवाह करना चाहती थी। फिर बचपन से उनका संकल्प था कि मैं भगवान शिव के साथ मेरी शादी हो ।नहीं तो मैं आजन्म कुवांरी रहूंगी। और इस प्रकार से भगवान शिव से पुनः पार्वती जी का विवाह शिवरात्रि के दिन हुआ। तब से महाशिवरात्रि का पर्व हिन्दू धर्म मे आदि काल से भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के प्रतीक और प्रकटीकरण के रूप मे मनाया जाता है। ....
ऊँ नमः शिवाय